उदयपुर। श्रावण मास की समाप्ति यानी रक्षाबंधन और फिर भाद्रपद की शुरूआत यानी मेवाड़ के लिए लोक परंपराओं का महीना। सोमवार से आसपास के इलाकों में गवरी के आयोजन शुरू हो जाएंगे। राज्यस्तरीय स्वतंत्रता दिवस समारोह के तहत भंडारी दर्शक मंडप में भी गवरी के कलाकारों की मूर्तियां खड़ी की गई है जिससे इनकी सामयिकता प्रतीत हो।
गवरी आदिवासियों का परम्परागत नृत्य अनुष्ठान है जो दक्षिणी राजस्थान की संस्कृति का अभिन्न अंग है। प्रतिवर्ष यह खेल खेलने का गांव के लोग संकल्प करते हैं. प्रति वर्ष अलग-अलग गांवों में गवरी ली जाती है और अलग-अलग गांवों में इसका मंचन किया जाता है। इस खेल में महिला कलाकार कोई नहीं होती. महिला का किरदार भी पुरुष उसकी वेशभूषा धारण कर निभाते हैं। इन्हें खेल के लिए गांवों में आमंत्रित भी किया जाता है जहां दिन भर गवरी मंचन के बाद कलाकारों को खीर खिलाई जाती है। इस दौरान खेतुड़ी, कालू कीर, हट्टिया, वरजू कांजरी, काना गूजरी, मीणा बंजारा युद्ध व चौथमाता आदि खेल होते हैं। राईबुढिय़ा नामक पात्र अपनी प्रस्तुतियों से हंसा-हंसाकर लोगों का मनोरंजन करता है।