बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे भवदत मेहता
उदयपुर। साहित्यिक संस्था युगधारा की ओर से रविवार को प्रख्यात साहित्यकार स्व. भवदत महता की तृतीय पुण्यतिथि के अवसर पर स्व. भवदत मेहता स्मृति में अशोका पैलेस में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें स्व.महता की स्मृति में प्रथम सम्मान प्रख्यात वयोवृद्ध रंगकर्मी एवं साहित्यकार 79 वर्षीय मंगल सक्सेना को प्रदान किया गया। पुरूस्कार स्वरूप उनका माल्यार्पण कर, शॉल ओढ़ाकर एवं स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया।
इस अवसर पर सभी साहित्यकारों ने एकजुट हो कर मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे से राजस्थान साहित्य अकादमी की ओर से किसी भी विधा में भवदत महता की स्मृति में पुरूस्कार देने की मांग को लेकर ज्ञापन देने का निर्णय लिया। साहित्यकारों ने स्व. महता को बहुआयामी व्यक्तित्व का धनी बताते हुए कहा कि वे सिर्फ लेखक ही नहीं उपन्यासकार, साहित्यकार, रंगकर्मी,नाट्य लेखक थे। वे आंचलिकता के बहुत बड़े रचनाकार थे।
समारोह के मुख्य अतिथि मंगल सक्सेना ने कहा कि यादों व दर्द को रोशनी देने लायक बनाना चाहिये। भवदत मेहता जैसा इंसान मिलना बहुत मुश्किल है क्योंकि उन्होनें जीवन में हर किसी को आगे बढ़ाया, चाहे वह उनसे परिचित हो या न हो। समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात कथाकार डॉ. राजेन्द्र मोहन भटनागर ने साहित्यकारों की पीड़ा प्रकट करते हुए कहा कि देश में चौथा स्तम्भ पत्रकारों को कहा गया है वहीं साहित्यकारों को देश में कोई स्थान न देना उनके प्रति अपमान है। साहित्यकारों का स्थान एक राजनेता से भी ऊपर होना चाहिये। उन्होंने कहा कि साहित्यकार की कृति पुस्तक उसकी सरस्वती होती है और वह किसी को दी नहीं जाती है। किसी को पढऩे की ईच्छा हो तो उसे बाजार से खरीदकर पढऩी चाहिये। वर्तमान में देश में साहित्य पढऩे वालों की कमी और लिखने वालों की संख्या बढ़ गयी है। साहित्यकार लेखन से पूर्व दूसरे के दिल व मन को टटोलता है।
विशिष्ठ अतिथि साहित्यकार डॉ. भगवतीलाल व्यास ने कहा कि भदत महता की कृतियों पर रचनात्मक कार्य होना चाहिये। लेखन भी एक कर्म है लेकिन देश का यह दुभज्र्ञग्य हे कि उसे कर्म को को कोई तवज्जो नहीं दी जाती है। साहित्यकार के कर्म इतने श्रेष्ठ होने चाहिये कि वह उसे नाम के बजाय उसके कर्म से पहिचाना जाए। कहानीकार किशन दाधीच ने कहा कि भवदत महता उस संघर्ष की दीप शिखा है, जिस समय राजस्थान देश में अपनी सांस्कतिक,साहित्यिक सहित हर क्षेत्र में अपनी पहिचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहा था। देश में चरित्र पर नहीं वरन् पुस्तकों पर कार्य हुआ है जबकि साहित्यकार के जीवन पर कार्य होना चाहिये कि, वह उस शिखर पर किस संघर्ष के साथ पहुंचा है। समारोह को विष्णुनंद भार्गव, हेमशंकर दीक्षित, डॉ. विजयकुमार कुलश्रेष्ठ, सोहन सुहालका ने भी संबोधित किया।
इस अवसर पर कवि एवं साहित्यकार पुष्षोत्तम पल्लव ने ‘नींव भरी नफरत की तुमने, मुस्कानों का क्या होगा, व्यथा व्यर्थ में जन्मेगी और अरमानों का क्या होगा..’ खुर्शीद नवाब ने ‘तुम जीवन को सुहानी भोर दो,श्वांस की ये श्रृख्ंाला झकझोर दो,इस अटल अविराम से अस्तित्व को ढूंढकर ऊचाईयों की छोर दो…’,कविताएं प्रस्तुत कर भवदत महता को श्रद्धाजंलि दी।
समारोह में स्व. भवदत महता द्वारा लिखित पुस्तक ‘मैं हवा का झोंंका हूं’ का अतिथियों ने लोकार्पण किया। इस पुस्तक का परिचय युगधारा की उपाध्यक्ष डॉ. नीता कोठारी ने दिया। समारोह मेें साहित्यकारों ने स्व. महता द्वारा लिखित उपन्यास ‘आस्था के बंध’ श्रेष्ठ उपन्यास बताया। प्रारम्भ में युगधारा के महासचिव मुकेश पण्ड्या ने स्वागत उद्बोधन दिया। कार्यक्रम का संचालन लालदास पर्जन्य ने किया। कार्यक्रम में साहित्यकार डॉ.ज्योति प्रकाश पण्ड्या ‘ज्योति पुंज’ ने भी सहयोग दिया। युगधारा की ओर से अनिल महता, रेणु महता व परिजनों ने अतिथियों सहित लालदास पर्जन्य, ज्योतिप्रकाश ज्योतिपुंज,पुरूषोत्तम पल्लव,खुर्शीद नवाब को स्मृतिचिन्ह प्रदान किये। अंत में अनिल महता व मुकेश मधवानी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।