सागर की सालगिरह पर हुआ मुशायरा
उदयपुर। तामीर सोसायटी की ओर से होटल रामप्रताप पैलेस में शायर डॉ. इकबाल सागर की 70 वीं सालगिरह पर मुशायरा व कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें राज्य के नामचीन शायरों एवं कवियों ने अपने अपने कलाम पढ़े और कविताएं प्रस्तुत की।
कार्यक्रम अध्यक्षता कवि ओंकारसिंह राठौड़ ने की। मुख्य अतिथि फखरुद्दीन चक्कीवाला थे। विशिष्ट अतिथि मयकश अजमेरी एवं डॉ. सालेह मोहम्मद कागजी थे। कार्यक्रम में चित्तौडग़ढ़ के कवि अब्दुल जब्बार ने जब जिंदगी ही कम है मोहब्बत के वास्ते, लाऊं कहां से वक्त नफरत के वास्ते.. सुनाकर श्रोताओं की दाद लूटी वहीं नाथद्वारा के प्रमोद सनाढ्य ने अपनी सीडी इकबाल सागर को समर्पित करते हुए शॉल ओढ़ाकर अभिनंदन किया।
शायर मयकश अजमेरी ने कैद-ए-तनहाई में रह लूंगा खुशी से, लेकिन मुझको कमजर्फ की सोहबत से बचाया जाए सहित प्रसिद्ध कलाम पढ़े। इकबाल हुसैन इकबाल ने रफीकों को लड़ा डाला, रकीबों का हुनर देखो तरन्नुम प्रस्तुत की। हबीब अनुरागी ने मेरे मेहबूब यह है तमन्ना मेरी, ताफलक तेरी अजमत सलामत रहे गजल सुनाई। खुर्शीद शेख ने डॉ. इकबाल सागर का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए हुए हम ऐसे सौदागर जो सौदा करते हैं, हुआ करते थे, जिंसों के अब हम जिस्मों का करते हैं गजल सुनाई। मुकेश पण्ड्या ने गजल दिल जिसे बारहा बुलाता है, वो ख्यालों में मुस्कराता है तथा जगदीश तिवारी ने किनारों पे रहकर मिलेंगे ना मोती, जरा गहरे उतरो समुंदर तो देखो की प्रस्तुति दी। मुख्य अतिथि फखरुद्दीन ने भी अपने कलाम से श्रोताओं का दिल जीत लिया।
इकबाल सागर ने चारों संस्थाओं बज्म ए सागर, युगधारा और नवकृति, तामीर सोसायटी का शुक्रिया अदा किया जिन्होंने इस कार्यक्रम का आयोजन किया। इस अवसर पर उन्होंने गज़ल प्रसतुत करते हुए कहा कि शहर में देखों जिसे हर शख्स डरा लगता है,फूल भी कोई बढ़ाए तो छुरा लगता है, लोगों के दिल को छू गई। इस अवसर पर लाइफ प्रोग्रेसिव सोसायटी के डॉ. खलील अगवानी भी मौजूद थे।