पंचायती नोहरा में श्रमणसंघ ने मनाया संवत्सरी पर्व
उदयपुर। श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि कुमुद ने कहा कि प्रत्येक पदार्थ की तरह संवत्सरी के भी दो पक्ष है। एक बाह्य और दूसरा आन्तरिक पक्ष। बाह्य पक्ष की साधना में हम उपवास, पौषध आदि साधनाएं करते है। ये सारी साधनाएं भी भावनात्मक पक्ष का ही सम्पोषण करती है किन्तु संवत्सरी का एक भाव पक्ष है आत्म शुद्धि और विश्व मैत्री का।
वे शनिवार को संवत्सरी पर पंचायती नोहरा में आयोजित सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं की मौजूदगी में धर्म सभा को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हम अपने जीवन में व्याप्त अधर्म पूर्ण विसंगतियों को ठीक ठीक समझें और उनसे छुटकारा ले लें। आसपास जो मानव समाज फैला है, उन सभी के साथ अपना सौम्य और मैत्रीपूर्ण व्यवहार रहे। संवत्सरी मनाने के साथ ही अपने व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन लाएं। क्रूरता कठोरता और विद्वेष के सारे विकल्पों को समाप्त कर उनके स्थान पर प्रेम, स्नेह और सद्भाव का सृजन करें। आज हमारा राष्ट्र भ्रष्टाचार की आग में झुलस रहा है। हम संवत्सरी पर प्रण करें कि नैतिकता पूर्वक जीवन जीएंगे, भ्रष्टाचार से बचेंगे। जहां हैं, वहीं अपने कर्तव्यों को पूर्ण सच्चाई के साथ संपन्न करेंगे।
मुनि श्री ने बताया कि संवत्सरी शुद्ध आध्यात्मिक पर्व है। इसकी आराधना भावना के स्तर पर करें। आडम्बर को प्रश्रय न दें। तपाराधना में भी सादगीपूर्ण व्यवहार रखे। प्रदर्शन से बचें। संवत्सरी असांप्रदायिक रूप से विश्व मैत्री का पर्व है। अभेदभावपूर्वक आत्मीयता की साधना ही इसका मौलिक संदेश है।
मुनिश्री का कहना था कि मानव के पास क्षमाभाव विद्यमान है ही, वह उसका अपने पुत्र पत्नी पारिवारिक एवं प्रियजनों के लिए प्रयोग भी करता है किन्तु उसका प्रयोग करने की सीमाएं बहुत छोटी है। यदि मानव क्षमा भाव के प्रयोग की सीमाएं अपने चारों और फैले संपर्कों तक कर ले, जो उसकी हजारों उलझने समाप्त हो जाएगी और वह तनाव मुक्त होकर जी सकेगा। व्यक्ति अपने क्रोध की समीक्षा करना सीख जाए तो क्षमाभाव का विस्तार सहज ही हो जाएगा।
मुनि ने बताया कि क्रोध ने मानव को सर्वदा हराया है। उसे उलझनों में डाला है, इस सत्य को मानव क्रोध के परिणामो की समीक्षा करके बहुत जल्दी समझा सकता है। क्षमा भाव का अध्यात्मिक धार्मिक महत्व तो है। व्यावहारिक स्तर पर भी शांतिपूर्ण प्रगतिशील जीवन जीने के लिए यह बहुत आवश्यक है। क्रोध, कषाय और उग्रता में मानव की सारी कार्य शक्तियां कुंठित हो जाती हैं।