उपचुनाव के नतीजों से कांग्रेस में उत्साह
उदयपुर। चार कार्यकाल से नगर निगम पर काबिज भाजपा बोर्ड को हराना कांग्रेस के लिए मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं, क्योंकि प्रचंड बहुमत हासिल कर प्रदेश की सत्ता में आई भाजपा को नौ माह बाद हुए उपचुनाव में जबरदस्तो पटखनी मिली है। प्रदेश में चार में से महज एक सीट पर जीत भाजपा का गिरता ग्राफ बता रही है, वहीं उदयपुर के सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय में भी एनएसयूआई की जीत से भी युवाओं का झुकाव कांग्रेस की तरफ कांग्रेस की तरफ दिखाई पड़ता है।
उदयपुर नगर निगम भाजपा का कब्जा पिछले चार कार्यकाल से लगातार चला आ रहा है। पिछले चुनाव में सभापति का चुनाव भी आम मतदाता ने किया था, फिर भी जीत भाजपा की हुई थी, लेकिन इस बार नगर निगम बनने के बाद महापौर का चुनाव पार्षद करेंगे। विश्वविद्यालय पर जीत और उसके बाद राज्य में हुए उपचुनाव में अप्रत्याशित सफलता से उत्साहित कांग्रेस कार्यकर्ता अब नगर निगम चुनाव को जीतने की जुगत में जुट गए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि कांग्रेस कार्यकर्ता गुटबाजी एवं मतभेदों को नकार कर एकजुट हो जाए, तो यह राह आसान हो सकती है। वर्तमान में निगम के 55 वार्ड है, जिसमें से कांग्रेस के पास 18 वार्ड हैं और एक माकपा के पास है। अन्य वार्ड बीजेपी के है।
गुटबाजी का शिकार कांग्रेस : कांग्रेसी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि निष्पक्ष रूप से पार्टी के अंतरकलह से ऊपर उठकर जिताऊ प्रत्याशियों को टिकट दिया गया, तो कांग्रेस बोर्ड बनाने की ओर कदम बढ़ा देगी। आज की परिस्थिति में शहर में कांग्रेस की स्थिति काफी अच्छी है। पिछले नौ माह में वसुंधरा सरकार द्वारा जिस तरह से जनहित की योजनाओं को ठंडे बस्ते में डाला गया और जिस तरह से जनता का तिरस्कार किया गया है। उससे जनता बेहद नाराज है। आमजनों का मानना है कि भाजपा बोर्ड के पिछले पांच साल कार्यकाल में विकास कार्य तो कम हुए, स्वकयं के विकास पर महापौर का ध्या न अवश्यल रहा। पांच साल तक शहर में अवैध निर्माण और अतिक्रमण ही करवाये है। वरिष्ठ कांग्रेसियों का कहना है कि निश्चित रूप से कांग्रेस की स्थिति मजबूत है, जो बहुत जल्द नगर निगम चुनाव में दिखाई पड़ेगी।
भाजपा में बनेगी खींचतान की स्थिति : जहां कांगे्रस में गुटबाजी है, वहीं भाजपा में भी इसका असर कम नहीं है। हालांकि भाजपा में भाई साहब यानि पंचायती राज सेवक गुलाबचंद कटारिया की ही चलती है और उनके कहे अनुसार ही सारा काम होता है, लेकिन एक गुट भाई साहब के भी खिलाफ है, जो सीधे मुख्य सेवक वसुंधरा का कृपापात्र है। इधर, 2009 में भाई साहब द्वारा अपनाया गया फार्मूला वार्ड जिसका वहीं लड़ेगा चुनाव लागू किया गया तो महापौर का सपना संजोए बैठे कई दावेदार भाई साहब की खिलाफत करने से नहीं चूकेंगे।