उदयपुर। तीन सौ वर्ष पूर्व अमृता देवी, उनकी तीन अल्पवयस्क लड़कियों व 363 ग्रामीणों द्वारा अपनी जान देकर भी पेड़ों को बचाने के लिए दिये संदेश का सजीव मंचन किया। पेसिफिक विश्वविद्यालय के पर्यावरण सहिष्णुता क्लब के छात्र-छात्राओं द्वारा प्रस्तुत नाटक ‘पेड़ बचाओ-बचाओ आधार, प्रकृति, संस्कृति करे पुकार’’ ने।
पेसिफिक विश्वविद्यालय के फैकल्टी ऑफ मैनेजमेन्ट की डीन प्रो. महिमा बिड़ला ने बताया कि नाटक का मंचन विश्वविद्यालय के पर्यावरण सहिष्णुता क्लब के सदस्यों ने पेसिफिक इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेन्ट द्वारा विश्व पर्यटन दिवस पर भारतीय लोक कला मण्डल में आयोजित कार्यक्रम में किया गया।
featuredनाटक के दृश्यों में बतलाया गया कि किस प्रकार सन् 1730 में जोधपुर के महाराजा ने वृक्षों को काटने का आदेश दिया। परन्तु, जब राजसैनिक वृक्षों को काटने के लिए खेजरली गांव पहुंचे तो गांव की जागरूक, साहसी महिला अमृता देवी अपनी तीन पुत्रियों एवं अनेक ग्रामवासियों के साथ गॉंव के वृक्षों से लिपट गई। उन्होंने सैनिकों को चेतावनी दी कि यदि वह वृक्षों को काटेंगे तो उन्हें पहले उनकी एवं गांववासियों की जान लेनी पड़ेगी। सैनिकों ने राज्यादेश का पालन करने के उद्देश्य से अमृता देवी एवं उनकी तीन पुत्रियों का वध कर दिया। फिर भी पर्यावरण के प्रति जागरूक गांववासी टस से मस नहीं हुये। वह पेड़ों से चिपके रहे। एक-एक कर उस दिन 363 ग्रामीणों ने अपने जान की बलि दी। अन्ततः राजा को उनके आगे झुकना पड़ा एवं तभी से वृक्षों को बचाने का सन्देश देने वाला चिपको आन्दोलन भारत एवं विश्व में हर तरफ प्रसारित हुआ।
उक्त नाटक का मंचन क्लब के 16 छात्र-छात्राओं द्वारा क्लब संयोजिका नयना पोरवाल के निर्देशन में किया गया। क्लब के सदस्य छात्र-छात्रा अक्षय पोरवाल, अर्चना मालपानी, प्रिया छिपा, प्रियंका जोशी, अर्पिता अग्रवाल, काव्या, प्रीतेश चौबीसा, अहमद, अभिनव, बुरहान, निलम पुर्बिया, रीना, गौरव जैन, मिनाक्षी एवं सुन्दरलाल साहू ने नाटक में भुमिका निभाई। उल्लेखनीय है कि पेसिफिक पर्यावरण सहिष्णुता क्लब द्वारा संतुलित वृक्षारोपण, ऊर्जा संरक्षण, ई-वेस्ट आदि ज्वलंत समस्याओं के प्रति सामाजिक जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से विभिन्न गतिविधियाँ समय-समय पर आयोजित की जाती हैं।