हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने कहा, बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपया, दूरदराज के इलाकों में अध्यापक जाते तक नहीं
उदयपुर। बेबाक बातों और निर्णय के लिए प्रसिद्ध हाइकोर्ट के जस्टिस गोविंद नारायण माथुर ने कहा कि आज के इस युग में न्याय उसी को मिलता है, जो पैसा देता है। एक जमाना था जब देश के जिम्मेदार लोगों ने हमें जिम्मेदारी सौंपते हुए कहा था कि हम लाये हैं, तूफ़ां से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के। तब हमारे मन में भी कुछ ऐसी ही भावनाएं नन्हा मुन्ना राही हूं, देश का सिपाही हूं… लेकिन आज के हालात कुछ ऐसे हो गए हैं कि बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपया।
वे शनिवार को फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज में लॉ कॉलेज और लीगल एड द्वारा चाइल्ड प्रोटेक्शन पर आयोजित व्याख्यानमाला को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज बार के मुख्य पदों पर सिर्फ पैसे वालों का राज है। न्याय की सुविधा उन्हीं को मिलती है, जो पैसा देता है। आम आदमी तक न्याय पहुंचाने में हम सब फेल हो गए हैं। पैसा ही सबका ईमान हो गया है।
उन्होंने कहा कि चाइल्ड प्रोटेक्शन को चार रुपों में देखा जा सकता है। जीने का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार, विकास का अधिकार और सहभागिता। सहभागिता को छोड़ कर बाकी तीनों के लिए कई क़ानून हैं लेकिन पालना नहीं होती। माथुर ने कहा कि चाइल्ड लेबर पर कई क़ानून हैं लेकिन कुछ बड़ी कंपनियों को छोड़ कर कहीं भी क़ानून की पालना नहीं की जाती। उन्होंने राजस्थान में बीकानेर और उदयपुर के उदहारण देते हुए बताया कि यहां सोप स्टोन की माइंस, मार्बल आर्टिकल और कालीन बनाने में बच्चों से श्रम करवाया जाता है। गोआ जैसी जगह पर वेश्यावृत्ति तक करवाई जाती है। हर जगह क़ानून की अवमानना हो रही है। सिर्फ दो वक्त की रोटी और एक छत के लिए वेस्ट बंगाल और झारखंड से बच्चों को राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश लाया जाता है। माथुर ने बाल विवाह पर भी सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि राजस्थान में 16 जिले ऐसे हैं जहां शारदा एक्ट की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जाती हैं। बाल विवाह सबसे अधिक होते हैं।
माथुर ने बच्चों में शिक्षा पर कहा कि दूरदराज के गांवों में सरकार अध्यापकों की नियुक्ति तो करती है, लेकिन वहां स्कूल आज भी बिना अध्यापक के ही चलते हैं। अध्यापक घर बैठे तनख्वाह उठाते हैं। आधा पैसा उनका वहां जाता है जो नौकरी की हाजरी लगाता है और आधा उनके पास आता है। व्याख्यानमाला में सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आईवी त्रिवेदी ने भी विचार व्यक्त किए।