ग्रामीण महिलाओं को सामाजिक व आर्थिक सशक्तिकरण व गांवों के घरों में शौचालयों का निर्माण
उदयपुर। राजस्थान राज्य में प्रगति की मुख्य धारा गांवों से होकर गुजरती है। गांवों का विकास पर्याय है राज्य के विकास का। ग्रामीण घरों में विकास की डोर महिलाओं के सामाजिक व आर्थिक सशक्तिकरण से जुड़ी हुई है। महिलाओं का सशक्तिकरण पूरे परिवार को सशक्त बनाता है तथा परिवार के साथ पूरा गांव व अन्ततः पूरा देष सषक्त होने के मार्ग पर चल पड़ता है।
हिन्दुस्तान जिंक पांच जिलों के लगभग 200 गांवों में अपने सामाजिक सेवा के विभिन्न कार्य कर रहा है। एक सम्पूर्ण सोच से हिन्दुस्तान जिंक के सामाजिक कार्य एक नवजात शिशु से लेकर गांव के बढ़े बुजर्गों तक पहुंच रहे हैं।
इसी कड़ी में हिन्दुस्तान जिंक ने राजस्थान की ग्रामीण महिलाओं के लिए दो अद्भुत अभियान की शुरुआत की है। पहला अभियान ‘सखी’ जिसके अंतर्गत हिन्दुस्तान जिंक ने 6000 ग्रामीण व आदिवासी महिलाओं को जोड़ा है तथा उनको उद्यमी बनाने की पहल की है। व्यवस्थित कार्यशालाओं से इन महिलाओं को कृषि, पशुपालन, साज-सज्जा, वस्त्र, घर के सामान, टेरीकोटा से बना सामान, जूट से बना सामान आदि का प्रशिक्षण दिया गया है जिसके उपरान्त इन महिलाओं की मासिक आमदनी में प्रषंसनीय बढ़ोतरी हुई है।
हिन्दुस्तान जिंक ने ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए वर्ष 2005-06 में स्वयं सहायता समूहों का गठन शुरू किया था। प्रत्येक समूह में 12 से 15 ग्रामीण एवं आदिवासी महिलाओं को शामिल किया जाता है। स्वयं सहायता समूह की इन महिलाओं को बचत करने, उन्हें बैंकों से जोड़ने एवं उनकी इच्छानुसार प्रशिक्षण दिया जाता है। वर्तमान में हिन्दुस्तान ज़िंक के पास पांच जिलों-उदयपुर, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा और अजमेर में 450 से अधिक ‘सखी’ स्वयं सहायता समूह कार्यरत है जिनसे 6000 से अधिक ग्रामीण व आदिवासी महिलाएं जुड़ी हुई हैं।
व्यावसायिक प्रशिक्षण मिलने के उपरान्त इन महिलाओं को विभिन्न कस्बों के साथ बड़े शहरों से भी ऑर्डर मिलने लगते हैं। हिन्दुस्तान जिंक की ओर से एक क्लस्टर के प्रबंध के लिए एक समन्वयक रखा जाता है जो आर्डर लाने में इनकी मदद करता है।
हर महिला कपड़े, सामान, घर की सामग्री या अन्य उत्पादों में प्रशिक्षित नहीं होना चाहती बल्कि अपने परंपरागत कृषि और पशुधन विकास में प्रशिक्षण चाहती हैं। ऐसी महिलाओं के लिए विशेष प्रोजेक्ट्स एवं प्रशिक्षण शिविर लगाए जाते हैं। इनमें नकदी फसल की खेती, जल संचयन, ग्रीन-हाउस डवलपमेंट, बीज चयन जैसे आयोजन प्रशिक्षण प्रजनन और कृत्रिम गर्भाधान के प्रबंध पशुधन एवं टीकाकरण पर प्रशिक्षण दिया जाता है।
हिन्दुस्तान जिंक का दूसरा अभियान है ‘मर्यादा’, जिसके अंतर्गत तीन जिलों के दूरदराज गांवों में शौचालयों का निर्माण किया जा रहा है तथा साफ-सफाई व स्वच्छता के प्रति जागरूकता लाई जा रही है।
गांवों के घरों में शौचालयों न होने का कुरूप्रभाव महिलाओं पर अधिक पड़ता है। महिलाओं का खुले में शौच जाना, सुरक्षा, लज्जा एवं मर्यादा का प्रश्न है। अधिकतर ग्रामीण महिलाएं जो खुले में शौच जाती या तो सूर्योदय से पहले जाती है, या सूर्यास्त के बाद। गर्भवती महिलाओं के लिए कठिनाइयां और भी बढ़ जाती है। खुले में शौच जाने से एवं स्वच्छता के अभाव से इन महिलाओं में डायरिया, कोलेरा, टायफायड आदि व स्वच्छता से संबंधित अनेकों बीमारियां होने का खतरा लगा रहता है।
राजस्थान सरकार की पहल पर हिंदुस्तान जिंक ने 30 हजार शौचालय बनाने के एमओयू पर हस्ताक्षर किये हैं। अब तक हिंदुस्तान जिंक 30,000 में से 10,000 शौचालयों का निर्माण पूरा कर चुका है। खुले में शौच करने वाले देशों में भारत की एक बड़ी आबादी शामिल है। यूनिसेफ की रिपोर्ट्स के अनुसार भारतीय ग्रामीण आबादी के केवल 48 प्रतिषत क्षेत्र में स्वच्छ शौचालयों की सुविधा हैं। भारतीय आबादी के 50 प्रतिशत से अधिक खुले में शौच करते हैं। भारत की ग्रामीण आबादी का केवल 21 प्रतिशत हिस्सा स्वच्छ शौचालय की सुविधा का उपयोग करता हैं। बांग्लादेश और ब्राजील जैसे देशों में भी उनकी जनसंख्या का केवल 7 प्रतिशत खुले में शौच करता है। चीन में जनसंख्या का केवल 4 प्रतिशत हिस्सा खुले में शौच करता है।
हिन्दुस्तान जिंक के हेड-कार्पोरेट कम्यूनिकेषन पवन कौषिक ने बताया कि भारत विशेष रूप से राजस्थान की आबादी का 60 प्रतिशत हिस्सा खुले में शौच करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार देश में 50 करोड़ से अधिक लोग गटर, नालों एवं झाड़ियों के पीछे खुले में शौच जाते हैं। इसके पीछे मुख्य कारण जागरूकता की कमी एवं आधारभूत ढांचे का अभाव है। इसमें कोई दो राय नहीं कि ग्रामीण भारत के लिए ये आंकड़े काफी अधिक हैं। परन्तु बड़े शहर और महानगर भी पीछे नहीं हैं।