देश भर से तपस्वियों का उमड़ा हुजूम
उदयपुर। वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ उदयपुर के तत्वावधान में श्रमणसंघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि एवं प्रवर्तक मदन मुनि के सानिध्य में महान चमत्कारिक पूर्व मेवाड़ आचार्य मानजी स्वामी का जन्म, दीक्षा एवं देवलोकगमन महोत्सव तीन दिवसीय सामूहिक तेले तप की आराधना के रूप में पूरे देश में एक साथ मनाया गया।
सामूहिक पारणे पंचायती नोहरे में हुए। आज 1680 तपस्वियों के पारणे कराये गये। शेष के पारणे बुधवार को होंगे। मुख्य अतिथि बेंगलोर के केसरीमल बुरड़ थे जबकि अध्यक्षता अहमदाबाद के महेन्द्र कुमार रांका ने की।
सौभाग्य मुनि ने कहा कि भरतीय संस्कृति संत व सैनिक की संस्कृति की है। सैनिक देश के बाह्य परिवेश का संरक्षण करता है जबकि संत देश के आन्तरिक परिवेश में व्याप्त बुराईयों को नष्ट कर वातावरण को श्ुाद्ध बनाते है। संत पारम्परिक,धािर्मक एवं महान मूल्यों का संरक्षण करते है। यह देश का सौभाग्य है कि देश में सैकड़ों सम्प्रदायों के रूप में संतों एवं मुनियों की एक विशाल परम्परा विद्यमान है। जैन मुनि उसी परम्परा के अन्तर्गत श्रमण संस्कृति से अनुप्राणित साधु संत होते है। त्याग, तप व साधना में यह परम्परा बेजोड़ है। इसी परम्परा के अन्तर्गत मानजी स्वामी नामक महान आचार्य राजस्थान के भू-भाग में अवतरित हुए। इनके द्वारा करीब 250 वर्ष पूर्व मेवाड़ अंचल में धार्मिकता का सादगी व सदाचार का जो विस्तार किया वह आज भी इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ है।
इन्होंने भी किया सम्बोधित-समारोह को केसरीमल बुरड़, महेन्द्र कुमार रांका,कन्हैयालाल मेहता, अम्बालाल नवलखा,ओंकारसिंह सिरोया, मानसिंह रांका, शिवा सिंघवी,युवक परिषद के अध्यक्ष नरेन्द्र सेठिया ने भी महान गुरू के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त की। प्रारम्भ में श्री वद्र्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ उदयपुर के अध्यक्ष वीरेन्द्र डांगी ने अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर महामंत्री हिम्मत सिंह बड़ाला ने आचार्य मानजी स्वामी के कृतित्व एंव व्यक्तित्व प्रकाश डाला।
इनसे किया पारणा- श्रीसंघ की ओर तपस्वियों ने काली मिर्च का पानी, केर का पानी व केर, मूंग व मूंग का पानी, हलवा सोंठ की गोठी, दूध आदि पदार्थो से पारणा सम्पन्न किया। समारोह में बेंगलोर, सूरत, मुंबई, अहमदाबाद, भीलवाड़ा, नाथद्वारा, कांकरोली, फतहनगर सहित विभिन्न स्थानों से 4 हजार से अधिक श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लिया। वीरेन्द्र डांगी एंव हिम्मत बड़ाला ने बताया कि तीन दिन निराहार रह कर इन तपस्वियों ने तेले किये।