शिल्पग्राम में मृण कला कार्यशाला प्रारम्भ, हेण्ड मेड पेपर कार्यशाला 5 से
उदयपुर। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से हवाला गांव के शिल्पग्राम में बुधवार से दस दिवसीय ‘मृण कला कार्यशाला’ आरम्भ हुई जिसमें राजसमन्द जिले के मोलेला गांव के दस मृदा शिल्पी भाग ले रहे हैं।
केन्द्र निदेशक शेलेन्द्र दशोरा, अतिरिक्त निदेशक फुरकान खान व मृदा शिल्पियों ने दीप जला कर कार्यशाला का शुभारम्भ किया। उद्घाटन अवसर पर भग्गालाल ने मृण पट्टिका पर गणेश की की मूर्ति का सृजन किया। दशोरा ने बताया कि कार्यशाला में केन्द्र के सदस्य राज्य राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र तथा गोवा की विभिन्न कला शैलियों को उभारा जायेगा। तीन गुना दो फीट आकार की मृण पट्टिकाओं पर मोलेला के मृण शिल्पकार नृत्य करती नर्तकी, पिरामिड बनाता कलाकार दल, वाद्य वादन करते लोक संगीतज्ञ आदि के चित्रों को रूपायित करेंगे। कार्यशाला में धनराज, नारायण लाल, मन्ना लाल, केसू लाल, ओंकार लाल, लोकेश, हिम्मत, पारस कुम्हार आदि भाग ले रहे हैं।
सिखाएंगे और बनायेंगे देसी कागज़ और उसके उत्पाद
केन्द्र की ओर से हवाला गांव स्थित ग्रामीण कला परिसर शिल्पग्राम में एक ऐसी कार्यशाला की कल्पना की गई जो पुश्तैनी कला के पोषण के साथ स्वच्छ भारत की कल्पना को रचनाशीलता से जोड़ने वाले सेतु का कार्य करेगी। केन्द्र द्वारा शिल्पग्राम में हस्तनिर्मित कागज़ (हैण्डमेड पेपर) शिल्प कला पर एक कार्यशाला का आयोजन 5 से 17 नवम्बर तक किया जाएगा। केन्द्र में पुराने व अनुपयोगी प्रकाशनों तथा विभिन्न प्रकार की स्टेशनरी की छंटनी कर रद्दी में देने के बजाय केन्द्र ने इससे उपयोगी व सजावटी सामग्री के सृजन का मानस बनाया। चित्तौड़गढ़ के घोसुण्डा गांव की प्राचीन हैण्ड मेड पेपर बनाने की शिल्प को पुनर्जीवित करने तथा इस विलुप्त कला में आधुनिकता का पुट देते हुए फिर से प्राण फूंकने का विचार किया। घोसुण्डात में कागजी परिवार द्वारा पुश्तैनी रूप से हैण्डमेड पेपर बनाने का कार्य किया जाता था। यहां के मिर्जा अकबर बेग कागजी व उनके दादा परदादा व अन्य रिश्तेदार पिछले कई दशकों ने टिकाऊ हैण्डमेड पेपर बनाने का काम करते आये हैं। बढ़ते मशीनी युग तथा फर्निश्ड व ग्लेज्ड पेपर के चलने में आने से इनकी यह कला विलुप्त प्रायः हो गई थी।
शिल्पग्राम के संगम सभागार के समीप इन पुश्तैनी शिल्पकारों ने तकरीबन 3-4 फीट का गड्डा खोद कर उसमें कागज़ बनाने की प्रक्रिया पिछले दिनों से प्रारम्भ की है। दो चरणों में आयोज्य कार्यशाला के पहले चरण में केन्द्र के अनुपयोगी कागज़ों की छंटनी कर उन्हे लगभग 48 घंटे तक पानी में गला कर उसकी लुग्दी तैयार की जायेगी। फिर इस लुग्दी में कपड़े की लुग्दी व अन्य आवश्यक सामग्री मिला कर कागज़ बनाने योग्य लुग्दी तैयार की जायेगी।
हैण्ड मेड कागज के सृजन के लिये ‘छपरी’ बनाने का कार्य की मिर्जा अकबर बेग व उनके साथियों द्वारा किया जा रहा है। इसके लिये लकड़ी की फ्रेम पर बारीक मछली पकड़ने के तार बांध कर उसमें सिकी बारीक घास जो विशेषतया नदी में पाई जाती है को चटाई जैसे बुना जाता है। इस छपरी पर लुगदी का घोल बना कर उस पर परत दर परत डाला जाता है तथा सूखने पर हस्त निर्मित कागज़ तैयार हो जाता है। इस प्रकार से बने कागज़ को रंगीन बनाने के लिये इसमे पसंदीदा रंग का प्रयोग भी किया जाता है। इससे फाइल कवर, पेपर बैग्स, लैम्प शेड्स, लिफाफे, डायरी इत्यादि का सृजन आसानी से किया जा सकता है।