फतहसागर, गोवर्धनसागर की पाल पर दिया सूर्य को अर्घ्य
उदयपुर। सोलह शृंगार किए महिलाएं, सिर पर देउरा’ लिए पुरुष, मन में छठ माता के प्रति श्रद्धा, पारंपरिक छठ गीतों की गूंज और उत्साह का माहौल…। कुछ ऐसा ही नजारा था सुबह फतहसागर और गोवर्धनसागर की पाल का जहां सूर्य को अर्घ्य देने फतहसागर के घाट पर जब जनसैलाब उमड़ा तो नजारा देखने लायक था। कल शाम अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया गया। दूसरा अर्घ्य आज सुबह उगते सू्र्य को दिया गया।
सत घोड़वा के रथ चढक़े सुरुज चले भिनुसार, दुअरिया छठ मइया के…, सकल जगतारिन हो छठी मैया… और कांच बांस की बहंगिया लचकत जाए…’, केरवा के भरेला जैसे अन्य पारंपरिक गीतों के साथ फतहसागर, गोवर्धन सागर सहित अन्य झील के किनारे जुटे सैकड़ों श्रद्धालुओं ने सूर्य को अर्घ्यस दिया। झील किनारे गन्ने का मंडप तैयार किया गया, जहां रह-रह कर छठ मइया के जयकारे गूंजते रहे। साथ ही महिलाओं और पुरुषों ने पूरी श्रद्धा से भोजपुरी भाषा में छठ मइया के भजन भी गाए गए। कुछ श्रद्धालु तो घर से जलाशय के तट तक दंडवत प्रणाम करते हुए भी पहुंचे, जिनकी श्रद्धा और उत्साह देखते ही बनता था। आज सुबह फतहसागर के देवाली छोर किनारे तडक़े चार बजे से ही श्रद्धालु पहुंचने लगे थे।
इससे पहले लोगों ने घरों में कोसी पूजा की। छठव्रती पूजन सामग्री से सजा हुआ देउरा (सूपा) सिर पर लेकर नंगे पांव फतहसागर पहुंचे, जिसमें गेहूं के आटे से बने ठेकुआ के साथ नारियल, नींबू, सेब, केला, अदरक, कच्ची हल्दी, चना, दीप सहित अन्य पूजन सामग्री थी। सजी-धजी महिलाएं परिवार के पुरुष सिर पर देउरा रखकर अगुवा बने और महिलाएं छठ गीत गाते हुए पीछे चलीं। ज्यादातर लोग फतहसागर रानीरोड तक नंगे पांव पैदल ही उगते सूर्य को अर्घ्य देने पहुंचे, वाहनों में आने वालों की संख्या सीमित रही। कल शाम भी फतहसागर पर श्रद्धालुओं की कतार लगी रही। शाम पांच बजे झील किनारे के सजी धजी महिलाएं और पुरुष झील में कमर तक पानी में उत्तर कर परंपरा अनुसार पूजा शुरू की। सूर्य को अघ्र्य देने के साथ छठघाट पर आतिशबाजी भी की गई। दोपहर से रात तक पुल के आस-पास छठव्रतियों का मेला लगा रहा।
सीमाओं से बाहर त्योहार : मूल बिहार का त्योहार छठ उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में भी मनाया जाता है, लेकिन अब राज्यों की सीमाओं को पार कर सभी जगह पहुंच चुका है। छठ घाट पर जनसमूह को देखकर इसका अंदाज आसानी से लगाया जा सकता था। घर से बाहर निकले बिहारी लोग छठ पर घर जाने के बजाय अपने शहर में मनाना ज्यादा पसंद करने लगे हैं।