– सामर को भी किया दरकिनार, कटारिया बना रहे हैं नई टीम
उदयपुर। निकाय चुनाव के लिए प्रत्यााशियों की घोषणा हो चुकी है। गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने अपनी चिर-परिचित शैली में पुराने पुराने विश्वोस्त साथियों को पीछे छोड़कर नई टीम बनानी शुरू कर दी है। गत दिनों पार्टी कार्यालय में पहले कट्टर समर्थक और बाद में धुर विरोधी रहे ताराचंद जैन गुट का पार्टी कार्यालय में आना और कटारिया से गलबहियां कर मिलना, बलबीर दिग्पादल, गजेन्द्र जैन, राजकुमार चित्तौिड़ा जैसे युवाओं को वापस अपने साथ जोड़ने के संकेतों ने एक बार तो नए संकेतों की ओर इशारा किया लेकिन प्रत्याशियों की सूची ने सब कुछ साफ कर दिया कि कटारिया जिससे एक बार खुन्नस पाल लेते हैं, ताजिन्दगी नहीं भूलते।
उल्लेयखनीय है कि अब तक प्रमोद सामर को कटारिया का दायां हाथ माना जाता रहा है जबकि वास्तयविकता यह बताते हैं कि सामर का इन्वॉथल्वरमेंट कहीं नहीं रहा। सामर पर वसुंधरा राजे का हाथ बताते हैं। इसी कारण उन्हेंं लोकसभा का प्रभारी बनाया गया था। कटारिया सामर को अपने उत्त राधिकारी के रूप में कदापि खड़ा नहीं देखना चाहते। शायद यही कारण रहा कि हाल ही प्रदेशाध्य।क्ष अशोक परनामी द्वारा घोषित कार्यकारिणी में भी सामर को कोई स्थालन नहीं मिल पाया। महाराष्ट्र् चुनाव में मेवाड़ से प्रचार करने सिर्फ दो ही नेताओं कटारिया एवं सामर का ही पहुंचना भी इन संकेतों को पुख्ताा कर रहा है। संभवतया ताराचंद जैन से हटकर वसुंधरा का वरदहस्ते सामर पर आ गया है।
हालांकि आज सामर के पास कोई पद नहीं है। वे या तो पूर्व प्रदेश मंत्री लिखते हैं या फिर लोकसभा प्रभारी लेकिन लोकसभा प्रभारी का पद चुनाव समाप्तप होने के बाद स्वयत: ही समाप्ता हो गया। कटारिया के कट्टर समर्थक माने जाने वाले चन्द्रतसिंह कोठारी, लोकेश द्विवेदी, कुंतीलाल जैन, रजनी डांगी, शांतिलाल चपलोत, गीता पटेल, नानालाल वया, पारस सिंघवी, किरण जैन, मांगीलाल जोशी सहित कई नेताओं से अंदर ही अंदर अकेले सामर लोहा ले रहे हैं। पार्टी में बिना किसी पद के काम कर रहे सामर को अपने अस्तित्वल के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
गत दिनों दीपावली पर समाचार-पत्रों में खेरवाड़ा विधायक नानालाल अहारी द्वारा प्रकाशित फुल पेज के आभार व शुभकामना के विज्ञापन में भी कटारिया, वसुंधरा के साथ देहात जिलाध्याक्ष की बजाय पूर्व देहात जिलाध्यिक्ष का फोटो प्रकाशित हुआ जबकि अमूमन ऐसे विज्ञापनों में वर्तमान जिलाध्यतक्ष का फोटो आता है। अहारी भी इन दिनों कशमकश में हैं कि किसका दामन थामें? मेवाड़ में रहना है तो कटारिया से बैर नहीं कर सकते और मैडम से बनाएं तो कटारिया खुद छोड़ देंगे।
कटारिया ने पूर्व में पार्षद रहे सामर को शहर की कमान सौंपकर उन्हेंन इस दौड़ से दूर ही रखना उचित समझा। महापौर चुनना कटारिया के लिए भी संकटमय होगा। इस बार क्षत्रिय में से भी निर्विवाद रहे प्रेमसिंह शक्ताकवत तक को टिकट नहीं दिया गया। अगर महापौर की कुर्सी जैन/ब्राह्मण में उलझी तो फिर यूआईटी चेयरमैन की कुर्सी क्याी किसी राजपूत या ओबीसी के खाते में जाएगी? हालांकि यह अभी भविष्यै के गर्भ में है, लेकिन फिलहाल के परिदृश्य से तो कुछ ऐसे ही हालात उभरकर आ रहे हैं। उधर कर्नल सोनाराम जैसी स्थिति कहीं उदयपुर में भी हो चुकी है क्योंरकि कांग्रेस पार्षद रेहाना जर्मनवाला और दो बार कांग्रेस से चुनाव हार चुके वेणीराम सालवी को भी भाजपा ने टिकट दिया है जिससे स्थालनीय भाजपा कार्यकर्ताओं में रोष है।