आमजन की मानसिकता में बदलाव जरूरी, जेंडर आधारित हिंसा पर कार्यशाला
उदयपुर। महिलाएं कल भी खतरे में थीं, आज भी हैं और कल भी रहेगी। अपराधों की प्रकृति बदलती है तो अपराध करने का तरीका भी। लिंग विभेद के चलते महिला नीतियां भी बनाई गई, बदलाव भी किए गए। आज भी इसके सफल क्रियान्वयन को लेकर संशय की स्थितियां है।
ये विचार कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने व्यक्त किए। वे उदयपुर स्कूल ऑफ सोशल वर्क एवं श्योर संस्थान बाड़मेर के तत्वावधान में मंगलवार को ‘‘जेंडर आधारित हिंसा पर शहरी युवाओं को संवेदनशील बनाने हेतु’’ विषयक पर आयोजित सेमीनार को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जब तक व्यक्ति की मानसिकता में बदलाव नहीं होगा तब महिला उत्पीड़न के कानून बनाने से कुछ नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि वर्षों से हम कहते आ रहे है कि नारी शक्ति का रूप है, नारी देवी है, नारी की पूजा की जानी चाहिए जबकि वास्तविकता में यह कोसों दूर है। अध्यक्षता करते हुए सुखाड़िया विश्वविद्यालय के कला संकाय के पूर्व अधिष्ठाता प्रो. अरूण चतुर्वेदी ने कहा कि महिलाओं के लिए कानूनी बनाना सरल है जब उसका सही रूप में पालन नहीं होगा ऐसे कानून बनाना निरर्थक है। विशिष्ट अतिथि प्रो. एसके मिश्रा, समापन सत्र के मुख्य अतिथि पीजी डीन प्रो. प्रदीप पंजाबी एवं प्रो. सुमन पामेचा ने भी विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में समन्वयक सत्यदेव बारहठ ने अतिथियों का स्वागत कर सेमीनार की विस्तृत जानकारी दी। संचालन डॉ. वीना द्विवेदी ने किया। धन्वाद सत्यदेव बारहठ ने दिया।
इनका सम्मान : सेमीनार में विभिन्न प्रतियोंगिताओं में प्रथम, द्वितिय व तृतीय रहे छात्र छात्राओं को प्रमाण पत्र एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। जिसमें कृष्णाकुंवर राठौड़, ममता शक्तावत, रोहित जैन, विनोद मेनारिया, वसीन खां एवं त्रजन खां प्रथम रहे।