अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना का उद्घाटन
उदयपुर। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संघटक राजस्थान कृषि महाविद्यालय में अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा प्रायोजित चार दिवसीय, द्वितीय समूह परिचर्चा हुई।
मुख्य अतिथि आईसीएआर के उपमहानिदेशक (उद्यान विभाग) डॉ. एनके कृष्णाकुमार ने कहा कि आज हमारे देश में उद्यानिकी फसलों का उत्पादन 280 मिलियन टन तक पहुंच चुका है। इसमें 28 से 29 प्रतिशत फलों की भागीदारी है। उन्होने बताया कि विकसित समाज में फलों का उपभोग अधिक होता है क्योंकि इससे प्रति किलोग्राम अधिक पोषण मिला है। अतः भारत जैसे विकासशील देश में बढ़ते हुए सामाजिक स्तर को देखते हुए फलों के उत्पादन को अधिक से अधिक बढ़ाना होगा। उन्होंने माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा हाल ही में जारी मृदा स्वास्थ्य कार्ड परियोजना का जिक्र करते हुए कहा कि हमें सीमित जल संसाधनों को देखते हुए प्रति बूंद अधिक उत्पादन देना होगा। अतः हमें वैज्ञानिक रूप से खेती करनी होगी। साथ ही उन्होने फलों की गुणवत्ता, उद्यानों में प्रयुक्त खाद बायोफर्टिलाइजर्स, बायोपेस्टीसाईज्ड एवं जनन द्रव्य के विकास की बात भी कही।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि आईसीएआर के उपमहानिदेशक (उद्यान विज्ञान) डॉ. टी. जानकीराम ने उद्यानिकी व फल उत्पादन में किसानों के समक्ष उपस्थित विभिन्न चुनौतियों का जिक्र करते हुए बताया कि आईसीएआर, जनन द्रव्य विकास के साथ ही बेहतर फल उत्पादन तकनीकों, लागत संसाधनों के उचित उपयोग, पौध स्वास्थ्य, प्रसंस्करण एवं विपणन के दृष्टिगत विभिन्न आयामों पर कार्य कर रही है। उन्होने फसल विविधता के उपाय स्वरूप उद्यानिकी के विकास के लिए इस समय को स्वर्ण युग की संज्ञा दी।
अध्यक्षता कर रहे एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. ओ. पी. गिल ने बताया कि हमारे देश का स्थान उद्यानिकी फसल उत्पादन में विश्व में चीन के बाद दूसरा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की अनुशंसा के अनुसार प्रति व्यक्ति 400 ग्राम फल और सब्जी का प्रतिदिन उपयोग करना चाहिए परन्तु हमारे देश में यह औसत 150 ग्राम और राजस्थान में तो और भी कम 10 ग्राम फल तथा 50 ग्राम सब्जी प्रतिदिन तक ही सीमित है जो कि राजस्थान के लोगों के स्वास्थ्य की दृष्टि से एक विचारणीय बिन्दु है। उन्होंने बताया कि हमारे प्रदेश के झालावाड़ में नागपुरी संतरा, श्री गंगानगर में माल्टा एवं किन्नु तथा चित्तौड़गढ़ और राजसमन्द में सीताफल तथा शुष्क क्षेत्रों में अनार, बेर, आंवला इत्यादि फलों का बेहतर उत्पादन हो रहा है। उन्होने बताया कि सीताफल के क्षेत्र में विभिन्न अनुसंधान कार्यो व तकनीकी विकास के फलस्वरूप विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी है, उन्होने कहा कि वैज्ञानिकों को फलोत्पादन की चुनौतियों से निपटने के लिए इस समूह चर्चा में हल खोजने होंगे। अनुसंधान निदेशक डॉ. पीएल मालीवाल ने स्वागत उद्बोधन दिया। परियोजना निदेशक, आईसीएआर, डॉ. प्रकाश पाटिल ने समन्वित फल अनुसंधान परियोजना की प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत की। संचालन डॉ. दीपक शर्मा ने तथा धन्यवाद की रस्म कार्यक्रम समन्वयक डॉ. आरए कौशिक ने अदा की।