देश-विदेश के प्रख्यात इन्टरवेन्शनल पल्मोनोलॉजिस्ट भाग लेंगे
उदयपुर। टीबी एवं चेस्ट विभाग, बड़ी के तत्वावधान में तीन दिवसीय 20-जी नेशनल कान्फ्रेन्स ऑफ ब्रोंकोलॉजी एवं इन्टरवेन्शनल पल्मोनोलॉजी 3 अप्रेल से आरंभ होगी। सम्मेलन के आर्गेनाईजिंग चेयरमैन विभाग के सह-आचार्य डॉ. महेन्द्र कुमार (इन्टरवेन्शनल पल्मोनोलॉजिस्ट) हैं।
सम्मेलन में देश-विदेश के प्रख्यात इन्टरवेन्शनल पल्मोनोलॉजिस्ट भाग लेंगे। इसमें यूएसए से डॉ. अतुल सी. मेहता एवं डॉ. चक्रवर्ती रेड्डी, डेनमार्क से डॉ. मार्क क्रासनिक, इंग्लैण्ड से डॉ. एम. मुनावर एवं सिंगापुर से डॉ. पेंग ली, मरीजों की ईबीयूएस-टीबीएनए व अन्य ब्रोकोस्कोपिक प्रोसिजरों एवं थोरेकोस्कोपी तकनीको द्वारा फेफड़ों की जांच कर इस सम्मेलन में भाग लेने आये देश-विदेश के श्वास रोग विशेषज्ञों (चेस्ट फिजिशियन) को इन विधियों की जानकारी देंगे। विदेशों से आये चिकित्सकों के अलावा भारत से आने वाले प्रख्यात इन्टरवेन्शनल पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. राजीव गोयल, डॉ. वी.आर. पट्टाभीरमण, डॉ. अरविन्द कुमार (एम्स), डॉ. प्रशान्त छाजेड़, डॉ. राकेश चावला, डॉ. एस.पी. शाह, डॉ. रविन्द्र मेहता, डॉ. प्रतिभा सिंघल, डॉ. जयचन्द्र एवं अन्य के द्वारा ब्रोंकोस्कोपी एवं थोरेकोस्कोपी प्रोसिजरों के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी देंगे।
तीन दिवसीय सम्मेलन के प्रथम दिवस पर एक कार्यशाला का आयोजन किया जायेगा, जिसमें ब्रोंकोस्कोपी, रिजिड थोरेकोस्कोपी एवं फ्लेक्सिबल सेमिरिजिड थोरेकोस्कोपी एवं इनसे जुड़ी तकनीकों का मरीजो पर परीक्षण कर देश-विदेश से आए चेस्ट फिजिशियनों को प्रषिक्षित किया जायेगा। सम्मेलन के दूसरे एवं तीसरे दिवस देश-विदेश से आने वाले इन्टनवेन्शनल पल्मोनोलॉजिस्ट द्वारा फेफड़ों से संबंधित बिमारियों के निदान की विभिन्न तकनीकों के उपयोग के बारे में व्याख्यान प्रस्तुत करेंगे।
ब्रोंकोस्कोपी, फेफड़ों से संबंधित बीमारियों जैसे केन्सर की गांठ, टीबी की गांठ, मीडिया स्टीनम की गांठ एवं अन्य की जांच की अत्याधुनिक तकनीक है, जिसके द्वारा इन गांठ में होने वाले रोग का पता लगाया जाता है। यह तकनीक महंगी होने के साथ भारत के कुछ ही उच्च चिकित्सा संस्थानों पर उपलब्ध है। टीबी एवं चेस्ट अस्पताल बड़ी के चिकित्सकों द्वारा इस संस्थान पर उक्त तकनीक लाने का अथक प्रयास किये जा रहे हैं, जिससे सम्भाग के मरीजों को इस जांच की सुविधा मिल सके। उक्त तकनीक की कीमत करीब एक करोड़ रूपये है एवं इस विभाग द्वारा सरकार से उक्त जांच के लिए बजट मांगा गया है और सरकार ने बजट का आश्वासन भी दिया है।
इस कार्यशाला एवं सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण तकनीक थोरेकोस्कोपी का भी मरीजो पर प्रदर्शन कर चेस्ट फिजिशियनो को प्रषिक्षित किया जायेगा। यह तकनीक उन मरीजों के लिए वरदान साबित हुई है, जिनके फेफड़ों में बीमारी की वजह से बार-बार पानी भरता है एवं जिनका निदान करना मुश्किल होता है। यह तकनीक ऐसे मरीजों की बीमारी की जांच के साथ-साथ उपचार के लिए भी काम आती है। यह जांच टी.बी. एवं चेस्ट अस्पताल, बड़ी में डॉ. महेन्द्र कुमार, सह-आचार्य एवं इन्टरवेन्शनल पल्मोनोलॉजिस्ट द्वारा विगत चार वर्षों से की जा रही है। इन चार वर्षों से करीब 150 मरीजों का निदान एवं उपचार इस तकनीक द्वारा किया जा चुका है। डॉ. महेन्द्र कुमार राजस्थान के प्रथम चिकित्सक है, जिन्होंने थोरेकोस्कोपी करना प्रारम्भ किया था।