तेरापंथी सभा की ज्ञानशालाओं के बच्चों का सम्मान समारोह
उदयपुर। शासन श्री मुनि राकेश कुमार ने कहा कि आज के युग में बच्चों में संस्कार बहुत जरूरी हैं। ज्ञानशालाएं बच्चों के लिए बहुपयोगी हैं। उदयपुर में ज्ञानशालाओं का संचालन इस बात को सिद्ध करता है।
वे रविवार को आनंद नगर स्थित मदनलाल तातेड़ के निवास पर श्री तेरापंथी सभा के तहत चलने वाले ज्ञानशाला प्रकोष्ठ के आयोजित सम्मान समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बिना हिले शांत चित्त से बैठे रहना भी अपने आप में एक संस्कार है। हाथ-पांव हिलाने से शरीर से उर्जा बाहर निकलती है। हाथ-पांव स्थिर रखें। मनुष्य को अन्य प्राणियों के मुकाबले अधिक इन्द्रियां मिली हैं। संयम का पहला सिद्धांत है कि इन्द्रियों का सही उपयोग करें।
उन्होंने कहा कि अजैन विद्वान भी जैन सिद्धांतों से प्रभावित हैं। अनुशासन व्यवस्था के लिए अन्य समाजों के लोग हमसे प्रेरणा लेते हैं। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि सृष्टि को किसी ने नहीं बनाया। व्यक्ति खुद के भाग्य का निर्माता है। भगवान कुछ नहीं करता, जैसा आप बोएंगे, वैसा ही पाएंगे। जैन धर्म के सिद्धांत वैज्ञानिक हैं। आचार्य भिक्षु ने जो सिद्धांत दिए, वे वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं। आज आचार्य महाश्रमण का दीक्षा दिवस भी है। समाज के सभी अभिभावक प्रयास करें कि अपने बच्चों को ज्ञानशाला में भेजें। आज चतुर्दषी के दिन उन्होंने हाजरी व्याख्यान पर महाव्रत, क्रिया, मर्यादा की भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि समग्रता से ही रहने का संकल्प करें।
मुनि दीप कुमार ने कहा कि जीवन की पहचान संस्कारों से होती है। संस्कार की अवधारणा बताते हुए उन्होंने कहा कि संस्कार एक अप्रकल्प दीपशिखा है जो हर अंधेरे मोड़ पर प्रकाश फैलाती है। संस्कारों का जीवन में बड़ा महत्व है। भटकन बहुत है लेकिन उन्हें सही राह दिखाने के लिए ज्ञानशालाएं काफी उपयोगी हैं। अभिभावकों में जागरूकता हो ताकि वे अपने बच्चों को ज्ञानशाला में भेजें। आचार्य महाश्रमण के दो प्रिय विषय उपासक वर्ग और ज्ञानशाला हैं। मुनि सुधाकर ने कहा कि जीवन में कुछ करने, कुछ भी पाने की पहली शर्त अच्छे संस्कार हैं। समय का सही प्रबंधन कर पाते हैं। बच्चों के साथ उन्होंने उदाहरण देकर छोटे मोटे संस्मरण सुनाकर उन्हें अपनी डिक्षनरी में से किंतु-परंतु-अगर-मगर शब्द निकाल देने को कहा।
सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने कहा कि पूर्व में शहर में 13 अलग अलग ज्ञानशालाएं चलती थीं लेकिन सभी को मिलाकर कुल छह ज्ञानशालाएं की गईं। समाज की प्रषिक्षिकाएं उन्हें निखार रही हैं। समाज की ओर से उन्होंने सभी प्रशिक्षिकाओं का साधुवाद किया। उन्होंने कहा कि आचार्य महाश्रमण के गत वर्ष लाडनूं में चातुर्मास के दौरान यहां से ज्ञानशाला के करीब सौ बच्चों का दल गया और अपनी प्रस्तुतियां दी। प्रस्तुतियां देखकर आचार्य श्री ने काफी सराहना करते हुए कहा कि इन बच्चों ने उदयपुर के साथ मेवाड़ का नाम भी गौरवान्वित किया है। उदयपुर ज्ञानशालाएं वाकई में अच्छा कार्य कर रही हैं।
ज्ञानशाला निदेशक फतहलाल जैन ने कहा कि सभाध्यक्ष फत्तावत की प्रेरणा से ज्ञानशाला के बच्चों का वार्षिकोत्सव आयोजित किया गया। अब उसके प्रतिभागी बच्चों को पुरस्कृत किया जा रहा है। समाज के श्रावक-श्राविकाओं को चाहिए कि वे अपनी नजदीकी ज्ञानशाला में बच्चों को अवश्य भेजें।
ज्ञानशाला की मुख्य संयोजिका सुनीता बैंगानी ने कहा कि वार्षिकोत्सव के प्रतिभागी बच्चों को प्रोत्साहनस्वरूप यह सम्मान समारोह हो रहा है। बच्चों को ज्ञानशालाओं में धार्मिक संस्कार दिए जाते हैं। उसके अलावा नए युग के अनुरूप आचरण करना भी सिखाया जाता है। गत दिनों हुए वार्षिकोत्सव में नाट्य मंचन, नृत्य आदि के माध्यम से प्रषिक्षिकाओं ने बच्चों को तैयार किया और उनकी प्रतिभा को निखारकर मंच प्रदान करने में सभा ने अपनी महती भूमिका निभाई। उन्होंने बताया कि शहर में छह ज्ञानशालाएं चल रही हैं।
समारोह का संचालन करते हुए संगीता पोरवाल ने बताया कि वार्षिकोत्सव में ज्ञानशाला 1 से 21, दो से 36, 3 से 14, चार व पांच से 15-15 तथा ज्ञानशाला नं. छह से नौ बच्चों यानी कुल 121 बच्चों ने हिस्सा लिया। इसके बाद सभी प्रतिभागी बच्चों को पारितोषिक वितरण किया गया। आरंभ में ज्ञानशाला के बच्चों ने अर्हम की वंदना करें… से मंगलाचरण किया। आभार सभा के मंत्री सूर्यप्रकाश मेहता ने व्यक्त किया।