’पगली हवा पगलाया दिन, पागल मेरा मन नाचे’ रवीन्द्र संगीत की सरस प्रस्तुति
उदयपुर। विश्व कवि नोबल पुरस्कार से सम्मानित गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की स्मृति में जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान संकाय की ओर से मंगलवार को श्रमजीवी महाविद्यालय के सिल्वर जुबली सभागार में कवि टैगोर के संगीत व साहित्य पर केन्द्रित एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
वैशाख की दोपहर में कवि रवीन्द्र के गीत व संगीत की रामकृष्ण बोस व उनकी टीम द्वारा की गई सरस प्रस्तुति से मानो आषाढ की बयार ही बह चली व श्रोतागण लगभग तीन घण्टे तक मंत्रमुग्ध से संगीत व साहित्य के विविध रंगों का रस लेते रहे। रवीन्द्र संगीत के मर्मज्ञ विश्व भारती शान्ति निकेतन से दीक्षित रामकृष्ण बोस ने रविन्द्र संगीत के सैद्वान्तिक पक्षों का वर्णन करते हुए उनके विविध रसों से युक्त भिन्न भिन्न रागों में निषद्व गीतों को मूल बांग्ला व हिन्दी में सुमधुर कण्ठ से प्रस्तुत किया। शुरूआत रवीन्द्रनाथ के प्रसिद्ध गीत’ आनन्द लोक, मंगल लोक से हुई। उसके बाद रवीन्द्र रचित पूजा गीत, प्रकृति गीत, अनुष्ठानिक गीत प्रस्तुत किए गए। बोस ने दोपहर की गर्मी को इंगित करते हुए वर्षा की उन्मत्त घटाओं और हवा का चित्रण करते गीत ’पगली हवा, पगलाया दिन, पागल मेरा मन नाचे’ जब प्रस्तुत किया तो प्रतीत हुआ मानों वास्तव में आसमान में मेघ घिर आए हों । रवीन्द्र संगीत की विश्व प्रसिद्व रचना ’एकला चलो रे’ का बांग्ला व हिन्दी में गायन अत्यन्त आकर्षक व प्रभावी रहा। इस संगीतमय प्रस्तुति में हारमोनियम पर जीवन भट्टाचार्य, सारंगी पर विजय धांधड़ा व तबले पर सूरज व अशोक ने संगत दी । इससें पूर्व महाराणा कुम्भा कला केन्द्र के कलाकारों ने मनीषी पंडित जनार्दन राय नागर द्वारा रचित संस्था गीत को सुमधुर स्वरों में प्रस्तुत किया ।
प्रमुख वक्ता प्रो. सच्चिदानंद जोशी ने रवीन्द्रनाथ टैगोर के कथा साहित्य ’गल्प-गुच्छ’ से चुनी हुई कहानियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि रचनाकार रचना करते समय कैसे अपने जीवन की घटनाओं और अनुभवों से कथा बुन लेता है। मुख्य अतिथि जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत थे। विशिष्ट अतिथि प्रो. सीपी अग्रवाल थे। अंग्रेजी विभाग के प्रो. हेमेन्द्र चण्डालिया ने टैगोर की कला दृष्टि पर प्रकाश डालते हुए उनके वैश्विक सरोकारों से परिचय कराया। संचालन डा. मेहजबीन सादड़ीवाला ने किया तथा संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डा धीरज प्रकाश जोशी ने धन्यवाद दिया।