सेक्टर 4 में हुआ संस्कार विषयक व्याख्यान
उदयपुर। ज्ञान प्राप्ति के चार उद्देश्य् बताए गए हैं। अगर इन चारों उद्देश्य और लक्ष्य का ध्यान रखे तो आदमी का जीवन सफल हो सकता है। ज्ञानी व्यक्ति अपने ज्ञान से लोगों को सुसंस्कारी बनाता है।
ये विचार शासन श्री मुनि राकेष कुमार ने रविवार को संस्कार विषयक व्याख्यान में व्यक्त किए। व्याख्यान का आयोजन श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के तत्वावधान में हिरणमगरी सेक्टर 4 स्थित तुलसी निकेतन में हुआ। मुनि राकेष कुमार ने कहा कि ज्ञान प्राप्ति के चार उद्देष्यों में सत्य का साक्षात्कार करने, एकाग्रचित्त होकर काम करने, आत्मा को धर्म के र्मा पर स्थिर करने तथा अच्छे संस्कारों पर स्थित रहते हुए दूसरों को इस ओर प्रेरित करना है। जिस प्रकार भोजन का अजीर्ण हो जाता है ठीक उसी प्रकार ज्ञान का भी अजीर्ण हो जाता है। ज्ञान का अजीर्ण होने पर आदमी में अहंकार नामक रोग उत्पन्न हो जाता है। हकीम लुकमान ने भी कहा था कि आदमी को चार बातें हमेषा याद रखनी चाहिए। मौत को कभी नहीं भूलें, भगवान को कभी नहीं भूलें, अपने उपर उपकार करने वाले उपकारी को कभी नहीं भूलें तथा ज्ञानदाता (गुरु) को भी हमेषा याद रखें।
उन्होंने कहा कि परिवार में बच्चे को अनुषासन, सहनषीलता, खानपान की शुद्धि, व्यसनमुक्त जीवन की षिक्षा देनी चाहिए। आज के इस युग में हम इतना तो कर ही सकते हैं। बच्चों को संस्कार ध्यान षिविर में अवष्य भेजना चाहिए। भक्ति इसलिए की जाती है कि संस्कार उच्च हों। जैसी भक्ति होगी, वैसा ही भविष्य होगा। महान वह है जो कष्ट को भी अमृत की तरह जीना जानता है। बोलना एक कला है लेकिन मौके पर चुप रहना भी एक कला है। घर में सोफासेट, डायमंड, गोल्ड सेट हो या नहीं, जरूरी नहीं लेकिन माइंड सेट होना चाहिए। अगर माइंड सेट होगा तो फिर इनकी जरूरत ही महसूस नहीं होगी। व्यक्ति अपने भाग्य का स्वयं निर्माता हैं बौद्धिक एवं संस्कार दोनों की योग्यता होनी चाहिए। बच्चे चाहे घर में हों या विदेष में, जैन धर्म के आदर्षों को बरकरार रखना चाहिए। प्रतिदिन नौ बार णमोकार महामंत्र का जाप करना चाहिए। इसका एकमात्र लक्ष्य चित्त शुद्धि है। नौ बार बोलने से आभामंडल शुद्ध हो जाता है। मन में कोई गलत विचार नहीं आता और अगर मन में कोई गलत विचार हो भी तो वह भी शुद्ध हो जाता है।
मुनि सुधाकर ने कहा कि मन को कैसे जीतने के बजाय मन को कैसे जीने पर विचार करना चाहिए। जीता तो उसे जाता है जो दुष्मन हो। उस पर विजय प्राप्त करनी हो। जीया उसे ही जाता है जो अपना हो। मन को जैसे जैसे दबाएंगे, वह बार बार उपर आएगा। उसे उध्र्वगामी बनाने का प्रयास करें। ये वह घोड़ा है जिस पर लगाम लगाना मुष्किल है। मन को जीने के लिए संयम पथ पर चलना आवष्यक है। मन को वष में करने के लिए अभ्यास और वैराग्य पथ पर चलना होगा। मन लिफ्ट के समान है जिससे अंडरग्राउंड में भी जा सकते हैं तथा सबसे उपर 50 वीं मंजिल पर भी जाया जा सकता है। जरूरत है कि मन को प्रषिक्षित करें।
इससे पहले मुनि दीप कुमार ने जल पर सारगर्भित उद्बोधन देते हुए कहा कि अगर जल है तो कल है। जैसा कि कई बार पूर्व में भी कहा जा चुका है कि तृतीय विष्व युद्ध हुआ तो वह पानी के लिए होगा। जल को लेकर यदि हम छोटी छोटी बातों का ध्यान रखें तो आने वाली हर परेषानी से बच जाएंगे अन्यथा हमें भी जिंदगी में परेषानियों का सामना करना पड़ेगा।
हिरणमगरी परिवार की ओर से कपिल इंटोदिया ने मुनि राकेष कुमार सहित मुनिवृंदों से कुछ दिन और हिरणमगरी में रुकने का आग्रह किया कि पांच दिन के प्रवास में कई परिवार दर्षन लाभ एवं सेवा से वंचित रह गए हैं। चातुर्मास में भी अभी समय बाकी है, इसलिए अभी यहीं रुकें।
तेरापंथी सभा अध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने बताया कि मुनि राकेष कुमार का मंगल विहार सोमवार सुबह 6.30 बजे होगा। यहां से वे आदर्ष नगर में एक दिन रुकने के बाद 9 जून को महाप्रज्ञ विहार पहुंचेंगे। 14 जून को वहां स्पेस मैनेजमेंट विषयक व्याख्यान होगा जिसमें विषय विशेषज्ञों के विचारों से लाभान्वित किया जाएगा। 21 जून को विष्व योग दिवस के उपलक्ष्य में महाप्रज्ञ विहार में विशेष आयोजन होगा। कार्यक्रम का संचालन सभा मंत्री सूर्यप्रकाश मेहता ने किया।