महाप्रज्ञ विहार में बाल संस्कार निर्माण शिविर का उद्घाटन
उदयपुर। शासनश्री मुनि राकेश कुमार ने कहा कि बच्चों के लिए लगाए गए इस षिविर को बच्चे सिर्फ संस्कार षिविर नहीं बल्कि धार्मिक शिविर के रूप में भी लें और भगवान महावीर की वाणी का सार समझने का प्रयास करें। हम जैसा कर्म करेंगे, वैसा फल भुगतना पड़ेगा। जो जितना क्रोध करेगा उतना स्वयं का ही नाश होगा।
वे गुरुवार को श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा की ओर से महाप्रज्ञ विहार में पहली बार आयोजित दो दिवसीय बाल संस्कार निर्माण शिविर के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बिना आचरण, विवेक, विनय और सहनषीलता के धर्म का विकास नहीं हो सकता। दो घंटे तक बच्चे बिना शोर किए शिविर में बैठे हैं, पहला संस्कार यही है। जैसा आचरण कर रहे हैं, वैसा ही फल भुगतना पड़ेगा। गाली का जवाब गाली नहीं ठीक उसी प्रकार गुस्से का जवाब गुस्सा नहीं हो सकता। पढ़ाई जरूरी है लेकिन साथ ही रहन-सहन, बोलना भी आना चाहिए। जैन धर्म का यही उपदेश है कि ज्ञानशाला में नियमित आकर महावीर का उपदेष समझें। जीवन में विवेक, विनय और षिक्षा का अभ्यास करें। मन को शांत करें और प्रतिदिन नया विकास करें। जब खेलने का समय हो तो खेलें भी लेकिन जब षिविर में ध्यान का समय हो तो पूर्ण मन से ध्यान लगाएं।
इससे पूर्व मुनि दीप कुमार ने कहा कि अगर नींव मजबूत न हो तो महल कभी नहीं टिक सकता। बचपन में यदि अच्छे संस्कार डाल दिए तो उन पर महल अच्छा बनेगा और वे नींव के पत्थर बनेंगे। सद्संस्कारों का जागरण ही समाज में चल रही ज्ञानशालाओं का उद्देश्य है। संस्कारों का जागरण होने पर जीवन सफल हो जाएगा। विद्यार्थी को तीन वी का ध्यान रखना चाहिए। विवेक, विनय और विद्या। विद्या से आवष्यक है विनय और विवेक। जहां तीनों होंगे जीवन सुषोभित होगा। डिसीप्लिन को अल्फाबेटिकल काउंट करें तो इसका टोटल 100 आता है। इसका अर्थ ही यही है कि रिजल्ट के लिए अनुषासन जरूरी है। शिक्षा जॉब तो दिला देगी लेकिन संस्कार नहीं देती।
मुनि सुधाकर ने कहा कि बच्चे की परिभाषा ही कच्चा, अच्छा और सच्चा है। कच्चा यानी कच्ची मिट्टी जिसको जैसा चाहें ढाल सकें। अगर कार में ब्रेक नहीं होगा तो वह बेकार होगी ठीक उसी प्रकार जीवन में बिना संस्कार बेकार है। संस्कार निर्माण के लिए बच्चों को तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए। सकारात्मक सोच, समय का सदुपयोग और क्रोध प्रबंधन। दिमाग में आइस और मुंह में शुगर फैक्ट्री रखें।
तेरापंथी सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने कहा कि जब शिविर की परिकल्पना रखी गई थी तो 50 बच्चों के आने की संभावना थी लेकिन आज सुबह तक कुल 92 रजिस्ट्रेशन देखकर आचार्य वृंद भी प्रसन्न हैं। बच्चों को यहां टीवी, वीडियो गेम्स, मोबाइल नहीं मिलेंगे लेकिन जो मिलेगा, वे जीवन भर याद रखेंगे। भावी पीढ़ी को संस्कारित करने के उद्देष्य से गठित ज्ञानशालाएं आज सुचारू काम कर रही हैं। इनमें संतों का क्या महत्व है, नमस्कार महामंत्र का क्या महत्व है आदि बच्चों को सिखाया जाता है। बच्चों को आज संस्कारों की आवष्यकता क्यों है, इनमें अभिभावकों का क्या भूमिका है आदि पर दो दिन में चर्चा की जाएगी।
दोपहर के सत्र में लक्ष्य निर्धारण पर विषेषज्ञ डॉ. एमके जैन ने विचार व्यक्त किए। उन्होंने सफलता के छह मंत्र बताते हुए कहा कि अपना लक्ष्य तय करें। सपना और लक्ष्य दोनों में अंतर है। सपनों पर योजना बनाते हैं तो वो गोल बन जाता है। लक्ष्य के पीछे कारण क्या है? सभी कॉम्प्लेक्षन में घूमते हैं। अच्छी संगत होगी तो आपका काम भी अच्छा होगा। लक्ष्य तक पहुंचने के लिए योजना बनानी जरूरत है। असफल हो भी जाएं तो हार नहीं मानें। आगे की प्लानिंग तय करें। खुद पर विष्वास रखें, अवष्य ही काम सफल होगा। हमें अपना लक्ष्य प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता सिवाय स्वयं के।
रमेशचंद्र भट्ट ने समय प्रबंधन पर कहा कि सभी के पास वही 24 घंटे हैं लेकिन उन्हें किस तरह मैनेज करते हैं ताकि सभी को समय भी दे सकें, अपने काम भी कर सकें और अपने शरीर को भी आराम भी दे सकें। शाम को बच्चों के लिए गेम्स व सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन हुए। मुनि सुधाकर ने कहा कि यदि कोई काम नहीं होता है तो उसके चार कारण माने जा सकते हैं। बहाने बनाना, स्वयं को योग्य न समझना, अपने लक्ष्य पर एकाग्र न रहना तथा समय प्रबंधन का अभाव। नो पेन नो गेन।
मंत्री सूर्यप्रकाश मेहता ने डिसीप्लीन की तरह नॉलेज को 96 हार्ड वर्क को 98 तथा एटीट्यूड का जोड़ 100 बताते हुए व्यवहार को सर्वोपरि बताया। उद्घाटन सत्र के अंत में बच्चों से कार्यक्रम के दौरान हुए व्याख्यान से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर किए गए। सही जवाब देने पर पुरस्कृत भी किया गया। षिविर में दीपक सिंघवी, विनोद मांडोत, विकास बोथरा के सहयोग के लिए तेरापंथी सभा के मंत्री सूर्यप्रकाष मेहता ने आभार व्यक्त किया। आरंभ में मंगलाचरण आदिनाथ ज्ञानषाला के बच्चों ने प्रस्तुत किया। ज्ञानशाला निदेशक फतहलाल जैन ने तेरापंथी सभा अध्यक्ष राजकुमार फत्तावत के उदयपुर में पहली बार इस तरह का आवासीय षिविर के आयोजन पर साधुवाद जताया। संयोजिका सुनीता बैंगानी ने शिविर की भूमिका प्रस्तुत की। आभार तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष अभिषेक पोखरना ने जताया। संचालन ज्ञानशाला की सहसंयोजिका संगीता पोरवाल ने किया।