जनार्दनराय नागर संस्कृति अलंकरण समर्पण पुरस्कार समारोह
उदयपुर। जनार्दनराय नागर संस्कृति अलंकरण समर्पण पुरस्कार ‘‘संस्कृति रत्न वरिष्ठन पत्रकार डॉ. गुलाब कोठारी को बुधवार को राजस्थान विद्यापीठ के प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में प्रदान किया गया।
यह पुरस्काार उन्हेंर कुलाधिपति एचसी पारख, कुलप्रमुख भंवरलाल गुर्जर, कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत, प्रसार भारती नई दिल्ली के निदेशक डॉ ए. सूर्यप्रकाश, सांसद अर्जुन लाल मीणा, राज्य सभा सांसद डी.पी. त्रिपाठी, समाजसेवी अशोक वाजपेयी, रजिस्ट्रार प्रो. सी.पी. अग्रवाल ने प्रदान किया। पुरस्कार स्वरूप प्रशस्ति पत्र, उपरणा, पगड़ी एवं एक लाख रू. का चेक एवं जनुभाई द्वारा रचित ग्रंथ शंकराचार्य की प्रतियां भेट की गई। डॉ. कोठारी ने कहा कि आध्यात्मिक ज्ञान जीवन की एक सबसे बड़ी आवश्यकता है। इस देश में ज्ञान से ज्यादा पवित्र कोई चीज हो ही नहीं सकती। शंकराचार्य ने कहा था कि ज्ञान के अलावा इस दुनिया में कुछ नहीं है। जिन व्यक्ति ने शरीर, मन, बुद्धि एवं आत्मा चारों धरातल को समझ लिया वह भगवान हो गया। उन्होंने शिक्षा को अध्यात्म से जोड़ने की अपील करते हुए कहा कि आज जरूरत इस बात की है कि माता पिता अपने बच्चों में संस्कारेां के बीज डाले। आज की भावी पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति की ओर अग्रसर हो भारतीय संस्कृति को भुलता जा रहा है। जिन्दगी का पर्याय है संस्कृति – मनुष्य प्राणी मात्र जो साहित्य को लेकर सुसंस्कृत हो रहे हैं उसी का नाम संस्कृति है। उन्होंने संस्कृति शिक्षण के लिए विद्यापीठ को डिग्री कोर्स शुरू करने का सुझाव दिया।
पाठ्यक्रम में भाषा व संस्कृति शामिल हो:-उन्होने कहा कि आज जरूरत इस बात की है कि इतिहास संस्कृति भूगोल, हमारी भाषा, सभ्यता, आदि को हमारी किताबों में शामिल किया जाये जिससे भावी पीढी हमारी देश की सभ्यता व संस्कृति से परिचित हो सके।
कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि 1937 में मनीषी पं. जनार्दनराय नागर द्वारा स्थापित संस्था मेवाड़ के सुदूर ग्रामीण अंचलों में शिक्षण, रोजगारोन्मुखी कार्य कर रही है और आज यह छोटी सी संस्था आज अपना विराट स्वरूप लिये खड़ी है। मुख्य अतिथि प्रसार भारती केन्द्र के निदेशक डॉ. ए. सूर्यप्रकाश, राज्यसभा सांसद डीपी त्रिपाठी, कुल प्रमुख भंवर गुर्जर ने भी विचार व्यरक्तस किए।
अध्यक्षता करते हुए कुलाधिपति एचसी पारख ने कहा कि सांस्कृतिक धरातल से शिक्षण संस्थान को जोड़ने की आवश्यकता है। इस हेतु नवीन पाठ्यक्रमों में भारतीय कला, शिक्षा, संस्कृति का ज्ञान दिया जाये। वरिष्ठ साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने कहा कि प्रत्येक भारतीय अपनी परम्पराओं से जुड़ने का आव्हान किया। संस्कृति को अपनाने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि संस्कृति का मूल उद्देश्य है समावेश। हमने सदियों तक चलते हुए कितने नये नये तत्वों को अपने में समावेश किया। समारेाह से पूर्व डॉ. कोठारी ने पंडित नागर की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की। संचालन डॉ. अनिता राठौड़ ने दिया जबकि धन्यवाद रजिस्ट्रार प्रो. सी.पी. अग्रवाल ने किया।