समण संस्कृति परीक्षा के सफल प्रतिभागियों का पुरस्कार वितरण समारोह
उदयपुर। शासन श्री मुनि राकेश कुमार ने कहा कि जैन विश्वा भारती लाडनूं की समण संस्कृति परीक्षा ऐसी है जिसमें तीन पीढ़ियां एक साथ बैठकर परीक्षा देती हैं। इसमें आयु का कहीं बंधन नहीं है। आज भी सफल प्रतिभागियों में महिलाओं की अधिकता देखकर लगता है कि महिला सषक्तीकरण का युग है।
वे रविवार को तेरापंथ भवन में जैन विष्व भारती लाडनूं द्वारा आयोजित समण संस्कृति संकाय की परीक्षा के सफल प्रतिभागियों के पुरस्कार वितरण समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जैन धर्म तार्किक और कम से कम अंध विष्वास वाला है। आज लोगों में भी जैन धर्म के प्रति रूचि बढ़ रही है। बिना किसी प्रयोगषाला, परीक्षण के जैन तीर्थंकरों ने बहुत पहले ही बता दिया था कि सृष्टि अनादि है। सीखने की जिज्ञासा होनी चाहिए, उम्र कोई बाधा नहीं।
मुनि सुधाकर ने कहा कि त्याग, संयम और वैराग्य का पाठ पढ़ाने वाली यह समण संस्कृति की परीक्षा है। यह व्यक्ति को मोक्ष पाने में सहयोग करती है। आचार्य तुलसी ने कहा था कि जन्म से नहीं बल्कि कर्म से जैन बनें। किसी भी चीज की प्राप्ति के लिए आदर्ष होना चाहिए। क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर, फिल्म में अमिताभ, संगीत में लता मंगेषकर जैसे ही जैन धर्म में आदर्ष वीतराग भगवान हैं। वे आदर्ष जिन्होंने जीवन-मरण को समाप्त कर दिया। जीवन में चार तरह के कारण होते हैं जिनमें से अमूमन तीन ही मिल पाते हैं। कुछ, कुछ कुछ, बहुत कुछ और सब कुछ। सब कुछ पाने वाले वीतराग को प्राप्त कर लेते हैं।
मुनि दीप कुमार ने कहा कि ज्ञान की आराधना जरूरी है। सम्यक ज्ञान का विकास जरूरी है। अगर ये न हो तो दिषा का पता नहीं चल पाता कि कहां जाना है। आचार्य तुलसी ने कहा कि ज्ञान का विकास होना चाहिए। इसीलिए ज्ञानषालाएं स्थापित की। जैन विद्या के माध्यम से जिन्होंने ज्ञान प्राप्त किया, उसे आगे बढ़ाएं। जो जैन विद्या का अध्ययन कर लेता है, वह बहुत आगे बढ़ जाता है। संतों का सपना रहा कि जैन धर्म में विद्वान बनें।
तेरापंथी सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने कहा कि समण संस्कृति परीक्षा में उदयपुर तेरापंथ समाज से विज्ञ, विषारद और स्नातक में सफल होने वाले सभी प्रतिभागियों के सुनहरे भविष्य की समाज कामना कर शुभकामनाएं प्रेषित करता है। फत्तावत ने बताया कि 2 से 9 अगस्त तक प्रतिदिन सुबह 6.30 से 7.30 बजे तक प्रेक्षाध्यान एवं योग के प्रयोग कराए जा रहे हैं। ज्ञानषाला निदेषक फतहलाल जैन ने भी विचार व्यक्त किए।
ज्ञानषाला संयोजिका सुनीता बैंगानी ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए बताया कि ज्ञानषाला प्रषिक्षिकाओं ने जो परीक्षा दी उसमें सफल रही प्रतिभागियों आषा सुराणा, प्रेक्षा नंदावत, मीना नांदरेचा, पुष्पा नांदरेचा, तारा कच्छारा, हेमलता इंद्रावत, कविता बड़ाला, बसंत कंठालिया व प्रियंका इंद्रावत को पुरस्कृत किया गया। अखिल भारतीय स्तर पर अंतिमा सिंघवी के प्रथम रहने पर विषेष पुरस्कार प्रदान किया गया।
चन्द्रप्रकाष पोरवाल ने बताया कि 66 फॉर्म भरे गए थे जिनमें से 41 ने परीक्षा दी और 33 उत्तीर्ण हुए। हर्ष की बात यह कि अखिल भारतीय मेरिट में प्रवीणा सिंघवी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। सुमन डागलिया ने परीक्षा के नौ ही भाग उत्तीर्ण कर विज्ञ की उपाधि प्राप्त की। विषारद, स्नातक एवं विज्ञ के सफल प्रतिभागियों में सुमन डागलिया, पंकज हिरण, मनन सुथार प्रथम, आरती बाबेल, साक्षी जैन, प्रेक्षा बोहरा, रिद्धि मांडोत, विनिमा लोढ़ा, भावना पोरवाल, सीमा मांडोत, धैर्य कंठालिया, लता चव्हाण, सुषीला पोरवाल द्वितीय, आयुषी मेहता, निधि हिरण, दीपक सुथार, खुषी कावड़िया, प्रांजुल जैन, भावना जैन, जय मेहता, हितिक्षा मांडोत, आंचल धाकड़, जया फत्तावत तृतीय तथा आषा कोठारी, धर्मिष्ठा मांडोत व पुष्पा जैन को उत्तीर्ण होने पर पुरस्कृत किया गया। विषिष्ट योग्यता वाले प्रतिभागी हर्षा सिंघवी, सीमा बाबेल, पवन नंदावत, अंजली कंठालिया, हेमलता इंद्रावत, प्रियंका इंद्रावत व प्रवीणा सिंघवी को सम्मानित किया गया। इससे पूर्व सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत एवं उपाध्यक्ष सुबोध दुग्गड़ ने शासन श्री मुनि राकेष कुमार लिखित 43 गीतों की पुस्तिका का विमोचन किया। आभार उपाध्यक्ष अर्जुन खोखावत ने व्यक्त किया।