उदयपुर। आचार्य विजय सोमसुंदर सूरि ने श्रावक को 21 गुण समझाते हुए कहा कि यदि एकदम गर्म पानी वृक्ष के मूल को पोषित नहीं करता तो उसका उग्र स्वभाव कभी सांत्वना नहीं दे सकता।
वे हिरणमगरी सेक्टर 4 स्थित आराधना भवन में श्रावकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि स्वभाव से सौम्य बनें। यदि आप स्वभाव से सौम्य रहेंगे तो आपके भाव-प्रभाव भी सौम्य रहेंगे और आप धार्मिक-सामाजिक कार्यों में आगे बढ़ सकेंगे। उन्हेोंने कहा कि जीवन में हमारी विचार धारा एक पावर हाउस की भंाति से जिससे पूरे जीवन को गति मिलती है। चेतना कि सर्वाधिक शक्तियंा विचार धारा के निर्माण में ही लगी रहती है। ‘मन’ दो अक्षर का छोटा सा शब्द है लेकिन सभी विचारधाराओं का जन्मदाता है। उन्होंने कहा कि मन छोटा हो कर भी शरीर की आन्तरिक एवं बाह्य समस्त शक्तियों में सर्वाधिक शक्तिशाली है। जीवन के उत्थान-पतन का केन्द्र यह विचार धारा ही है।
उन्होंने कहा कि आज चारों ओर जन जीवन संत्रस्त और असुरक्षित है, हताश है क्योंकि मानव ने इस सदी में अपने मन का सर्वाधिकदुरूपयोग किया है। शास्त्रों में मन की विचार की धारा भी एक महत्वपूर्ण अंग बनी हुई है। यदि शास्त्रो में मन के उल्लेख नही मिलते तो पशुओं की तरह मानव भी मन के विषय में अनजान ही रह जाता। अत: मानव की विचारधारा का महत्व मानव जीवन जितना ही स्वीकार का लेना चाहिये। अध्यक्ष सुशील बांठिया ने बताया कि जन्माष्टमी पर पूज्य गुरुदेव क्रोध पाप का मूल विषय पर प्रवचन देंगे।
पुरुषार्थ करें, फल अवश्य मिलेगा: श्रद्धांजना श्रीजी
उदयपुर। साध्वी श्रद्धांजना श्रीजी ने कहा कि ज्ञान सब चाहते हैं लेकिन मेहनत कोई नहीं करना चाहता। अगर कुछ पाना है तो पुरुषार्थ करना होगा। पढ़ाई हो या चुनाव, मेहनत तो सबको करनी पड़ती है।
वे सोमवार को वासुपूज्य मंदिर में चातुर्मासिक प्रवचन के तहत धर्मसभा को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि गुणों को ग्रहण करने, दोषों को दूर करने के लिए पुरुषार्थ तो करें। हम कुछ करें नहीं और सिर्फ ईश्वर को दोष दें कि हमारा तो काम होता नहीं। स्वयं भी तो मेहनत करें। आगम पढऩा तो छोड़ आज प्रतिक्रमण करने की भी किसी को फुर्सत नहीं है। पहले 8 वर्ष के बच्चे को स्कूल भेजते थे जबकि आज दो और ढाई वर्ष के बच्चे को भेज देते हैं। त्रिशला माता के 14 स्वप्न डेडिकेशन एवं डिवोशन टू डेस्टिनेशन के कारण पूरे हो पाए।
उन्होंने कहा कि बिल्ली के पास कौनसी गाय होती है लेकिन वह अपना पुरुषार्थ कर हमेशा दूध पीती ही है। जब आपका कोई पुण्य होगा तो ही आपको देवी-देवता कुछ दे सकते हैं। हमारा पुण्य कैसा है, यह आज का युग बताता है। पहले सोने-चांदी के सिक्के चलते थे और अब कागज के नोट आ गए हैं। पहले के रूपयों की कीमत बढ़ गई है और आज के रूपयों की कीमत कागज की लुग्दी बन जाती है। दान करें लेकिन सुपात्र दान करें।