प्रदेश के सबसे कम वजन वाली जुड़वां बच्ची को बचाया
उदयपुर। हिरण मगरी सेक्टर 5 स्थित जीवन्ता चिल्ड्रन हॉस्पिटल में प्रदेश के सबसे कम वजन के प्री मैचुअर नवजात शिशु का सफल ईलाज कर मात्र 607 ग्राम वजन वाली नवजात बालिका को बचाकर उसे नया जीवनदान दिया। सही समय पर सही ईलाज मिलने से अब उसका वजन 1800 ग्राम हो गया।
नवजात शिशु विशेषज्ञ डॉ.सुनील जांगिड़ ने बताया कि शादी के 15 साल बाद आईवीएफ तकनीक अपनाने के बाद उदयपुर निवासी राजेश लोहार की पत्नी गीता को 27 सप्ताह यानि साढ़े छह महीने में जुड़वाँ बच्चियंा हुई। गर्भावस्था में माँ का रक्तचाप बेकाबू हो गया था और सोनोग्राफी से पता चला की भू्रण को रक्त का प्रवाह कम हो गया है तभी आपातकालीन सीजेरियन ऑपरेशन से जुड़वाँ बच्चियों का जन्म हुआ। गत 11 जून को जन्मी बच्चियों में से एक का वजन 1275 ग्राम और दूसरे का वजन सिर्फ 607 ग्राम था। दोनों बच्चियां ही इस दम्पति की आखरी उम्मीद थी एवं इनका बचना बहुत जरुरी था। शिशु को जन्म के तुरंत बाद जीवन्ता हॉस्पिटल की नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई में स्थानांतरित किया गया।
जीवन्ता हॉस्पिटल में डॉ सुनील जांगिड़, निओनेटोलॉजिस्ट डॉ मणि भटनागर एवं प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ की टीम के द्वारा शिशु की देखभाल की गयी। शिशु को सांस लेने में खाफी कठिनाई हो रही थी। उसे तुरंत वेंटीलेटर पर लिया गया एवं फेफड़े फुलाने के लिए फेफड़ों में दवाई डाली गयी। इतने कम वजन के शिशु को बचाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। राजस्थान में इतने छोटे एवं कम वजन के नवजात शिशु के अस्तित्व की कोई रिपोर्ट नहीं है। ऐसे कम दिन एवं बच्चें का शारीरिक सर्वांगीण विकास पूरा हुआ नहीं होता। शिशु के फेफड़े, दिल, पेट की आते, लिवर, किडनी, दिमाग, आँखें, त्वचा आदि सभी अवयव अपरिपक्व, कमजोर एवं नाजुक होते है और इलाज के दौरान कााफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।
डॉ.जांगिड़ ने बताया कि बेहतरीन इलाज के बावजूद भी मात्र 20 से 30 प्रतिशत शिशुओं के बचने की संभावना होती है और केवल 5 से प्रतिशत 10 शिशु मस्तिष्क क्षति के बिना जीवित रहते है।
प्रारंभिक दिनों में शिशु की नाजुक त्वचा से शरीर के पानी का वाष्पीकरण होने के वजह से उसका वजन 500 ग्राम तक आ गया था। पेट की आंतें अपरिपक्व एवं कमजोर होने के कारण दूध का पचन संभव नहीं था। इस स्थिति में शिशु के पोषण के लिए नसों के द्वारा उसे सभी आवश्यक पोषक तत्व, ग्लूकोज़, प्रोटीन्स एवं वसा दिए गए। धीरे धीरे बून्द बून्द दूध नली द्वारा दिया गया। शिशु को कोई संक्रमण न हो इसका विशेष ध्यान रखा गया। शुरुआती 1 महीने तक श्वसन प्रणाली एवं मस्तिष्क की अपरिपक्वता के कारण शिशु श्वांस लेना भूल जाता था एवं शिशु को कृत्रिम श्वांस की जरुरत पड़ती थी। 35 दिनों के बाद शिशु स्वयं श्वास लेने में समर्थ बना। शिशु की करीब तीन माह तक आईसीयू में देखभाल की गयी। शिशु के दिल, मस्तिष्क, आँखों का नियमित रूप से चेक अप किया गया। आज 3 महीने बाद उसका वजन 1800 ग्राम है और अपने जुड़वाँ बहन के साथ स्वास्थ्य लाभ ले रही है।
डॉ. जांगिड़ ने बताया कि वर्तमान में आधुनिक चिकित्सा पद्धति के चलते अब अनुभवी नवजात शिशु विशेषज्ञ डॉक्टर्स व प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ के सहयोग से 500 से 600 ग्राम के प्रीमैचुअर शिशुओं को बचाना भी सम्भव हो चुका है। जीवन्ता हॉस्पिटल ने पिछले एक साल में कई 6 मासी गर्भावस्था एवं 800 से 900 ग्राम के बच्चों का सफल देकर उन्हें नया जीवनदान देने का प्रयास किया है।
very nice.
Great achievement Team Jivanta. Hats off.
I think this is the best children hospital in south rajasthan. Very good Doctors and nursing team . Jivanta has saved life of my twin babies weighing 820grams and 910 grams.