आम कल्याण हेतु भगवान ने दिया था धर्मोपदेश
उदयपुर। श्री जैन श्वेताम्बर वासूपूज्य महाराज का मंदिर ट्रस्ट द्वारा सुरजपोल बाहर स्थित दादाबाड़ी में आज बाल ब्रह्मचारी भगवान नेमीनाथ एंव गिरनार मंदिर की महिमा की संगीतमय आराधना की गई। जिसे सुनकर उपस्थित श्रावक-श्राविका भाव विभोर हो गये।
जोधुपर से आये विजय सत्संगी एवं सौरभ खींवसरा ने आज साध्वी श्रद्धांजनाश्री की निश्रा में आयोजित कार्यक्रम की शुरूआत ‘जग में तीरथ दो भला शत्रुंजय गिरनार, इक घड़ ऋषभ समो सरिया, इक घड़ नेम कुमार’ दोहे से की। तत्पश्चात सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति के बीच ‘जोगी बनने चाला नेम कुमार,धन्य बण्यों रे ओ तो घड़ गिरनार..’, ‘साथ गिरनार नो, हाथ नेमीनाथ नो, ओ ए मस्तक है तो टो टो..,’, ‘वो काला सहसावन वाला-वाला, सुध विसरा गया मोरी रे..’ जयपुर से आये एक अन्य सत्संगी ने ‘झूठी नगरी को छोउ़ कर नेमी चड़े गिरनार,दादा मेरे ऐसे है,झोली भर देते है..’ सहित अनेक भजनों की प्रस्तुति पर श्रोता भाव-विभोर हो गये।
विजय सत्संगी ने बताया कि शास्त्रों में वर्णित लगभग 84790 वर्ष पूर्व गिरनार मंदिर में देश की 14 हजार से अधिक नदियों के जल से अभिषेक किया गया था। मंदिर पर पंहुचने के लिए श्रावक-श्राविका को लगभग साढ़े ग्यारह हजार सीढ़ीयंा चढक़र वहंा पंहुचना होता है। हर भक्त किसी भी तीर्थ स्थल की यात्रा के करने से पूर्व मंदिर में जाने से पूर्व यह जरूर सोचते है कि वहंा सभी प्रकार की सुविधाएं होगी या नहीं,यह गलत है।
उन्होंने बताया कि आने वाले समय में गुजरात के इस गिरनार क्षेत्र में 24 तीर्थंकर के कुल 28 कल्याणक होंगे। यह सभी तीर्थंकारों के मोक्ष की धरती है। दोनों ने संगीत के साथ भजनों की प्रस्तुति में गिरनार की महिमा एवं वहंा की वास्तविक स्थित का वर्णन किया।
इससे पूर्व साध्वी श्रद्धांजनाश्री ने कहा कि जगत की आत्माओं का कल्याण करने हेतु भगवान ने धर्मोपदेश दिया था। जीवन में धर्म को पाने की आवश्यकता क्यों है, इस पर गहन मंथन करना होगा। शासन की प्रभावना करना भी श्रावक का एक कर्तव्य होता है। घर में शादी-समारोह होने पर घर को जिस प्रकार दुल्हन की तरह सजाते है उसी प्रकार पर्युषण पर्व के आगमन पर घर एंव मंदिरों को जाया जाता है, वरघोड़ा निकाला जाता है। स्वाध्याय साधु के प्राण होते है।