पूर्व संगठन मंत्री ने प्रदेश निर्वाचन अधिकारी को लिखा पत्र
कटारिया पर साधा निशाना
उदयपुर। भाजपा के संगठन चुनाव को लेकर खड़ा हुआ बवाल जिलाध्यक्ष बनने के बाद भी ठंडा नहीं हुआ है। पहले बूथ, फिर मंडल और अब जिलाध्यरक्ष के चुनाव को भी पार्टी के संविधान विरुद्ध बताते हुए निरस्तो करने की मांग करते हुए हाईकमान को पत्र लिखा गया है। बताया गया कि पार्टी संविधान के अनुसार अध्येक्ष पद पर एक ही व्यहक्ति का लगातार दो बार ही निर्वाचन संभव है जबकि श्री भट्ट का यह तीसरी बार निर्वाचन हुआ है। यही नहीं पत्र में निर्वाचन अधिकारी के मूक दर्शक बने रहने के साथ कटारिया को निशाना बनाया गया है।
राज्य क्रीड़ा परिषद के पूर्व अध्यक्ष धर्म नारायण जोशी ने प्रदेश के संगठन निर्वाचन अधिकारी को लिखे पत्र में कहा कि भट्ट का पद पर पुनः निर्वाचन पार्टी संविधान के विरूद्ध है। पार्टी संविधान के पृष्ठ़ 13 पर वर्णित धारा-21 ‘अध्यक्ष का कार्यकाल’ में लिखा है कि ‘कोई भी पात्र सदस्य तीन-तीन वर्ष के लगातार दो कार्यकाल तक अध्यक्ष रह सकेगा।’ भट्ट 2009 में पहली बार और फिर 2013 में फिर जिलाध्यक्ष बने। वे इस पद पर तीन-तीन वर्ष के दो कार्यकाल पूर्ण कर चुके हैं। संगठन में कोई भी व्यक्ति नियम व विधान से परे नहीं है, लेकिन उदयपुर में विधान की अवहेलना की जा रही है।
जोशी ने पत्र में लिखा कि जिला चुनाव अधिकारी मेघराज लोहिया पूरी प्रक्रिया में मूकदर्शक रहे। अन्ततः उन्होंने जिलाध्यक्ष पद पर भी विधि विरूद्ध निर्वाचन पर भी मुहर लगा दी। लोहिया जी से विधि व्यवस्था की कोई उम्मीद नहीं है। मुझे पूरी संगठन चुनाव प्रक्रिया देखकर लगा कि उदयपुर संगठन में न्याय व विधान बंदी बनकर रह गया। पूर्व में भी बूथ समितियों के चुनाव धांधलीपूर्ण होने, तीन को छोड़कर अन्य मण्डलों में घरों व दुकानों पर बैठकर हस्ताक्षर करवाकर जिलाध्यक्ष के निर्वाचन में विधान की धज्जियां उड़ाकर पराकाष्ठा कर दी है।
संगठन में विधान के व्यवस्था के अनुरूप अनुशासन परम आवश्येक है। भट्ट या किसी अन्य कार्यकर्ता से कोई व्यक्तिगत द्वेष या अनुराग नहीं लेकिन पार्टी में विधान की व्यवस्था सर्वोपरि है और उसे मानना हमारी जिम्मेदारी है। समाचार पत्रों में कटारिया ने भट्ट को फिर जिलाध्यक्ष बनाने पर दी सहमति विषयक वक्तव्य पढ़कर भी मैं अचंभित हूं। लिखा गया कि मेरी ब्राह्मण विरोधी छवि बन गई है, इसलिये ब्राह्मण को जिलाध्यक्ष बनाना मेरी मजबूरी है। क्या पार्टी संविधान से परे हम किसी नेता की मंशानुरूप निर्णय को स्वीकार कर मौन रहे, विचारणीय विषय है? इसके अलावा कटारिया पर यह गलत परम्पयरा वागड़ में भी फैलाने का आरोप लगाया गया है।