चार दिवसीय पर्व रविवार से होगा आरंभ
उदयपुर। चार दिवसीय पावन पर्व छठ/डाला छठ रविवार से मनाया जाएगा। पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी (रविवार) से प्रारम्भ होकर षष्ठी को समाप्त होगा। यह मूलतः सूर्य की आराधना का पर्व है। दिन नहाय-खाय के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन व्रतधारी महिलाएं एवं पुरूष सेंधा नमक, अरवा चावल और लौकी की सब्जी प्रसाद स्वरूप ग्रहण करके महापर्व छठ की शुरूआत करेंगे।
बिहार समाज समिति के सचिव ब्रजेन्द्र सिंह ने बताया कि उदयपुर में रहने वाले बिहार, झारखण्ड एवं पूर्वांचल के निवासी इस पर्व को मनाएंगे। इस वर्ष यह पावन पर्व फतहसागर पाल के देवाली छोर, रानी रोड़ एवं गोवर्धन पाल पर मनाया जाएगा। समिति द्वारा फतहसागर, रानी रोड एवं गोवर्धन पाल पर घाटों की व्यवस्था की जाएगी। घाटों की सफाई एवं रोशनी की व्यवस्था भी की जाएगी। सचिव ने कहा कि छठ पर्व ही एकमात्र पर्व है जिसमें अस्ताचलगामी सूर्य की पूजा-उपासना की जाती है।
पौराणिक कथाएं : एक कथा के अनुसार दुर्योधन ने कर्ण को अपना मित्र बनाकर अंग देश का राजा बना दिया। यह अंग देश आज का भागलपुर है जो बिहार का एक जिला है। कर्ण पांडवों की माता कुंती एवं सूर्यदेव की संतान है। कर्ण सूर्यदेव को अपना आराध्य मानकर नियमित रूप से उनकी आराधना करता था। यह भी उल्लेख है कि षष्ठी एवं सप्तमी तिथि को कर्ण विशेष रूप से पूजा करता था। राजा से प्रभावित होकर अंग देश के निवासी सूर्यदेव की पूजा करने लगे। धीरे-धीरे यह पूरे बिहार एवं पूर्वाचंल में बड़े श्रद्धा एवं उल्लास के साथ मनाया जाने लगा। दूसरी कथा के अनुसार कुंती को पुत्रवधु और पाण्डवों की पत्नी द्रोपदी ने उस समय सूर्य देव की पूजा की थी जब पाण्डव अपना सारा राजपाट गवांकर वन में भटक रहे थे। उन दिनों द्रोपदी ने अपने पतियों के स्वास्थ्य और राजपाट पुनः पाने के लिए सूर्यदेव की पूजा की थी। माना जाता है कि छठ पर्व की परम्परा को शुरू करने में इन सास-बहू का बड़ा योगदान है।
पर्व मनाने का तरीका : यह चार दिवसीय होता है। इस वर्ष यह पर्व 15 नवम्बर से प्रारम्भ होकर 18 नवम्बर को सम्पन्न होगा। पहला दिन (रविवार) नहाय-खाय के रूप में मनाया जाएगा। दूसरा दिन लाहंडा एवं खरना के नाम से जाना जाता है। तीसरा दिन (षष्ठी) अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्ध्य अर्थात् दूध अर्पण किया जाता है। षष्ठी का अपभ्रंश है छठी। इसीलिए इस पावन पर्व को छठी के नाम से सम्बोधित किया जाता है। चौथा दिन सप्तमी उगते हुए सूर्य को अर्ध्य चढ़ाकर चार दिवसीय महापर्व सम्पन्न हो जाता है।
छठ मात्र त्यौहार नहीं, व्रत है : महापर्व छठ/डाला उत्सव के केन्द्र में छठ व्रत है। यह एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता है किन्तु कुछ पुरूष भी यह व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिलाओं को परवैतिन कहकर सम्बोधित किया जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाये गये कमरे में व्रती फर्श पर एक कम्बल या चादर के सहारे ही रात बिताई जाती है। व्रती ऐसे कपड़े पहनती है जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं होती है। महिलाएं साड़ी एवं पुरूष धोती पहनकर छठ करते हैं।