गंदे पानी के सुरक्षित उपचार पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का तीसरा दिन
उदयपुर। गंदे पानी के सुरक्षित उपयोग विषयक अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला के तीसरे दिन देश विदेश के विशेषज्ञ आयड़ नदी के गंदे पानी से हो रही खेती का हालचाल जानने कानपुर गांव पहुंचे।
भारतीय किसान संघ के सुहास मनिहार की अगुवाई में किसानो ने गंदे पानी से हो रही पीड़ा का वर्णन किया जिसे सुनकर कार्यशाला के प्रतिभागी द्रवित हो उठे। किसानों ने कहा कि शहर तथा कतिपय उद्योगों से आने वाले गंदे पानी ने उनकी जमीन को ऊसर बना दिया है तथा कुवों का पानी बदबू दार तथा बीमारीकारक हो गया है। सब्जियों के उत्पादन तथा गुणवत्ता में भरी गिरावट आई है लेकिन किसान मजबूर है इस गंदे पानी के बीच रहने को।
लगभग तीन घंटे चले संवाद में सिडनी यूनिवर्सिटी के डॉ बसंत माहेश्वरी तथा डॉ क्रिस डेरी ने कहा कि स्थिति भयावह है लेकिन समाधान परस्पर सहभागिता में है। जीयो और जीने दो के सिद्धांत को उद्योग जगत को समझाना होगा। उन्होंने कहा कि सरकार ,प्रशासन, उद्योग जगत, शहर वासी तथा ग्राम वासी सभी रचनात्मक साझेदारी से ही उदयपुर स्मार्ट बनेगा तथा गंदे पानी एवं कचरे कि समस्या का सही निदान होगा।
ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने कहा कि वे किसानो के पीड़ा का हल करने में उनकी यथासंभव मदद करना चाह्ते है। इससे पूर्व वोल्केम इंडिया के सभागार में आयड़ नदी सहित भारत कि नदियों में गिर रहे गंदे पानी पर विशेष सत्र हुआ। अध्यक्षता करते हुए प्रबंध निदेशक अरविन्द सिंघल ने कहा कि गंदे पानी एवं कचरे से हो रहे पर्यावरणीय नुकसान एवं मानव स्वास्थय पर मंडरा रहे खतरे को गंभीरता से लेना होगा। सिंघल ने कहा कि माइंडसेट अर्थार्त दृश्टिकोण में बदलाव तथा जिम्मेदार नागरिक बनने का भाव विकसित करने के लिए मिलजुल कर काम करना होगा।
डॉ तेज राज़दान डॉ. सयाली जोशी, डॉ आशा अरोरा ने आयड़ के गंदे पानी के उपचार कि सरल विधियों को प्रस्तुत किया। किशनगढ़ तथा जैसलमेर में काम कर रहे आईसीएलईआई साउथ एशिया संगठन के राहुल राठी तथा महाराष्ट्र विकास केंद्र के अनिल पाटिल ने देश में विभिन्न स्थानों पर चल रहे सरल एवं जनसहभागिता मूलक उपचार पर प्रस्तुतिकरण दिया।