भगवान महावीर के दीक्षा दिवस पर कार्यक्रम
उदयपुर। शासन श्री मुनि राकेश कुमार ने कहा कि भगवान महावीर सकल जैन समाज के लिए आदर्ष हैं। उन्होंने गृहस्थ जीवन में भी निर्लिप्तता की साधना की। कुल 72 वर्ष के चरम शरीरी जीवन (मोक्ष) में 30 वर्ष उन्होंने गृहस्थ और बाद के 30 वर्ष तीर्थंकर के रूप् में गुजारे। बीच के 12 वर्ष का छदमस्त साधना काल का रहा जिसमें उन्होंने दीक्षा लेने के बाद की साधना की।
वे रविवार को आनंद नगर स्थित श्रावक के निवास पर भगवान महावीर के दीक्षा दिवस पर आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भगवान किसी के भाग्य का निर्माण नहीं करता बल्कि व्यक्ति के स्वयं के कर्मों के अनुसार उसका भाग्य निर्धारित होता है। प्रकृति से ही कर्म परिवर्तन होता है। सृष्टि का कर्ता भगवान नहीं बल्कि जड़-चेतन के संयोग से हुआ है। पहले भगवान की मर्जी से बारिश होना कहते थे लेकिन आज विज्ञान ने कृत्रिम बारिष करवाकर साबित कर दिया है। मनुष्य में अनंत विकास की संभावना है। मनुष्य सर्वज्ञानी नहीं बन सकता। अतीन्द्रिय ज्ञान की चहुंओर चर्चा है। जब अषुभ कर्म का उदय होता है तब दवा भी प्रतिकूल असर दिखाती है। अपने सुख दुख का कर्ता व्यक्ति स्वयं है। पापों से बचें, अपने दोषों को देखें। कोई इंसान जाति धर्म से बड़ा नहीं होता बल्कि अपने गुणों के कारण पूजा जाता है। नमस्कार महामंत्र में इसलिए किसी व्यक्ति विषेष की नहीं बल्कि गुणों के बारे में कहा गया है। यह गुणवाचक मंत्र है।
मुनि सुधाकर ने कहा कि अनेकांतवाद के प्रदाता भगवान महावीर का दिखाया गया पथ आज हमारा पथ प्रदर्षित कर रहा है। वर्तमान में उनकी बातों की प्रासंगिकता पर विचार करना आवष्यक है। परिवार, समाज, राष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में उनका पहला वाक्य ही प्रासंगिक है। उन्होंने कहा था कि संयम बनो-सफल बनो। आज असंयम के कारण ही हर तरह की समस्या है। संयम चाहे खाने-पीने पर हो, चाहे कहने-सुनने पर हो या किसी ओर पर..। आज की समस्याओं के मूल में असंयम ही व्याप्त है। इसीलिए समस्याएं फैल रही है। विरोधी के विचारों को सुनना और सकारात्मक दृष्टि से विचार करना भी सहिष्णुता है। जब तक हम दूसरे के विचारों का सम्मान करना नहीं सीखेंगे तब तक असहिष्णुता रहेगी। हर ‘ही’ के साथ ‘भी’ भी जरूरी है। चार ग्रहों से मुक्त रहने के लिए भगवान महावीर ने कहा है। आग्रह, पूर्वाग्रह, दुराग्रह और परिग्रह। इसी तरह किसी को कुछ मिलता है तो किसी को कुछ-कुछ। किसी को बहुत कुछ भी मिल जाता है लेकिन सब कुछ किसी को नहीं मिलता। अनेकांत पर चलकर केवल्य ज्ञान प्राप्त करता है। इसके बाद भी मोक्ष नहीं मिलता। चार कषायों से दूर रहें और सिद्धत्व की प्राप्ति हो, यह सबकी इच्छा रहती है।
मुनि दीप कुमार ने कहा कि भगवान महावीर ने गर्भ में ही संकल्प कर लिया था कि माता-पिता के बाद वे दीक्षा लेंगे। 28 वर्ष की आयु में उन्हंे दीक्षा लेनी थी लेकिन भाई नंदीवर्धन के आग्रह पर 2 वर्ष का समय और उन्होंने गृहस्थ में बिताया और 30 वर्ष की आयु में दीक्षा ली। दो वर्ष उन्होंने बिल्कुल दीक्षा की तरह ही बिताए। भगवान महावीर ने श्रावक के 12 नियम बताए। अगर इनकी भी पूर्ण रूप् से पालना कर लें तो भी जीवन सफल है। उन्होंने इच्छाओं का संयम करना सिखाया। उनके बताए मार्ग पर चलकर हम भ्रष्टाचार, भुखमरी जैसी समस्याओं से निजात पा सकते हैं।
तेरापंथी सभा के अध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने बताया कि जिस महामानव के सिद्धांतों पर जैन धर्म की नींव टिकी है, आज उनके दीक्षा दिवस पर यहां मुनिवृंदों के श्रीमुख से सुनकर समस्त समाज उल्लासित है। उन्होंने बताया कि नाथद्वारा में चातुर्मास के बाद मुनि हर्षराज ईसवाल तक तथा नांदेषमा से विहार कर साध्वी विषदप्रज्ञा उदयपुर पधार चुके हैं। आगामी दिनों में कई मुनि-साध्वीवृंदों का आना होगा। आरंभ में मंगलाचरण सीमा सोनी ने किया। आभार तेरापंथ युवक परिषद अध्यक्ष दीपक सिंघवी ने व्यक्त किया।