राष्ट्र-संतों के सुखेर पहुंचने पर श्रद्धालुओं ने किया भावभीना स्वागत
उदयपुर। राष्ट्रसंत चन्द्रप्रभ सागर ने कहा कि वे लोग तकदीर वाले होते हैं जिनके घर में बूढ़े-बुजुर्गों का साया होता है। जिस दिन वे चले जाते हैं घर अनाथ हो जाता है। आपसे धर्म-कर्म हो तो ठीक अन्यथा कोई दिक्कत नहीं, पर माता-पिता की सेवा में कभी कोई कमी मत छोड़ना।
किसी लायंस क्लब, रोटरी क्लब, सोश्यल गु्रप के सदस्य बनकर शहर की सेवा करना सरल है, पर अपने घर में रहने वाले बूढ़े-बुजुर्गों की सेवा करना मुश्किल है। संस्थाओं के सदस्य बनने की बजाय पहले घर के सदस्य बनें और घरवालों की सेवा संभालें। उदाहरण देते हुए संतप्रवर ने समझाया कि आपके पास एक घंटा हो, उसमें एक तरफ मंदिर जाकर परमात्मा की पूजा करनी हो और दूसरी ओर घर में बीमार दादीजी की सेवा करनी हो तो आप खुद सोचें आपका पहला धर्म कौनसा है?
संत ललितप्रभ सुखेर स्थित वी आई पी मारबल पर आयोजित प्रवचन समारोह में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। संतप्रवर ने कहा कि जब भगवान को प्रणाम करवाना होता है तो वह मंदिर में जाकर बैठता है, पर जब उसे प्रणाम का परिणाम देना होता है तो हमारे घर में माता-पिता के रूप में अवतार लिया करता है। उन्होंने कहा कि कभी पत्नी ने तलाक ले लिया और आपके एक्सीडेंट हो गया तो वह बिल्कुल नहीं आएगी, पर आप माँ-बाप से अलग भी क्यों न हो गए हों, बोलचाल भी नहीं रखते फिर भी आपके कभी एक्सीडेंट हो गया तो वे आपको संभालने जरूर आ जाएँगे। हम खुद सोचें कि हमारे लिए पहले महत्त्वपूर्ण कौन हैं?
जीवन को प्रभु का प्रसाद मानें-संतप्रवर ने कहा कि जीवन को विषाद न बनाएँ वरन् इसे प्रभु का प्रसाद मानें। उन्होंने कहा कि जब आप 21 साल के हो जाएं तो शादी की तैयारी करें, पर जब 51 साल के हो जाएँ तो शांति की तैयारी करना शुरू कर दे। संतप्रवर ने जिंदगी का गणित समझाते हुए कहा कि हम सोमवार को जन्मे, मंगलवार को बड़े हुए, बुधवार को विद्यालय गए, गुरुवार को शादी की, शुक्रवार को बूढ़े हुए, शनिवार को बीमार पड़े और रविवार को मर गए। सात दिनों की यह छोटी-सी जिंदगी है फिर क्यों न हम संसार में उलझने की बजाय अनासक्त भाव से जीवन जीएं।