तातेड़ भवन में अध्यात्म और राजनीति विषयक संगोष्ठी
उदयपुर। तेरापंथ धर्मसंघ के वरिष्ठ संत राकेष मुनि ने कहा कि राजनीति लोकतंत्र की रीढ़ है। राजनेताओं की स्वार्थपरायणता और सिद्धांतहीनता के कारण आज राजनीति का स्तर गिर रहा है। राष्ट्र की एकता और पवित्रता की रक्षा के लिए राजनेताओं का आध्यात्मिक प्रषिक्षण जरूरी है।
वे शनिवार शाम आनंद नगर स्थित तातेड़ भवन में राजनीति और अध्यात्म विषयक आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।
मुख्य अतिथि सामाजिक एवं न्याय अधिकारिता मंत्री डॉ. अरूण चतुर्वेदी थे। अध्यक्षता महापौर चन्द्रसिंह कोठारी ने की। विषिष्ट अतिथि अतिथियों के रूप में जिला प्रमुख शांतिलाल मेघवाल, ग्रामीण विधायक फूलसिंह मीणा, भरतपुर के अतिरिक्त जिला कलक्टर ओपी जैन, गिर्वा प्रधान एवं भाजपा देहात जिलाध्यक्ष तख्तसिंह शक्तावत मौजूद थे।
मुनि राकेष कुमार ने कहा कि अपने स्वार्थ के लिए समाज में जातिवाद और साम्प्रदायिकता का जहर घोल हिंसा व भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं। एकता और अनुषासन का आधार कमजोर हो रहा है।
मुख्य अतिथि श्री चतुर्वेदी ने कहा कि राज और नीति से बनी राजनीति है। जिस राज में नीति नहीं वह आमजन के लिए सुखी नहीं हो सकती। महाभारत में युधिष्ठिर और दुर्योधन दो चरित्र से कोई अनजान नहीं हैं। श्रीकृष्ण ने पांच गांव पाण्डवों के लिए मांगे थे लेकिन दुर्योधन ने नहीं दिए और महाभारत हुई। जिस तरह का समाज होगा, वैसी ही राजनीति होगी। समाज को तय करना होगा कि वे कैसी राजनीति चाहते हैं और आज के दौर में परिवर्तन हो रहा है। युवाओं में यह चेतना आई है कि कैरियर बनाया जा सकता है। अब तक हर जगह फेल्योर ही सिर्फ राजनीति में आते थे। राजनीति को साध्य नहीं साधन मानकर चलें और समाज की सेवा करें।
महापौर चन्द्रसिंह कोठारी ने कहा कि राजनीति और अध्यात्म दोनों अलग अलग पथ हैं। अध्यात्म स्वयं के विकास व मोक्ष का मार्ग है वहीं राजनीति समाज के लिए सद्भावना का मार्ग है। पूर्व में शासकों के साथ धर्मगुरु रहता था जिसके हाथ में दण्ड रहता था। गलती करते ही धर्मगुरु शासक को दण्ड देता था अर्थात सजग करता था। यह प्रथा आदिकाल से चली आ रही है। शासन पर विपत्तियां आई तो धर्म ने ही मार्ग दिखाया। चाणक्य और चन्द्रगुप्त का उदाहरण हमारे समक्ष है। व्यक्ति पद पर चढ़ते हुए अहंकारी और कठोर होता जाता है। जिसके पास ताकत होती है वह उसका अधिकांशतः दुरुपयोग करता है, यह अंग्रेजी की प्रसिद्ध कहावत है। गुरुजनों का मार्गदर्षन आज भी राजनीतिज्ञों के लिए जरूरी है।
उर्जावान मुनि सुधाकर ने कहा कि राजनीति पर धर्म का अनुषासन जरूरी है लेकिन राजनीति में धर्म का उपयोग न हो। स्वयं पर नियंत्रण रखने वालों को ही सत्ता का अधिकार होना चाहिए अन्यथा सत्ता का दुरुपयोग होता है। राजनीति का अपराधीकरण हो रहा है। इससे देष का भला नहीं होगा। अपराधीकरण नहीं बल्कि राजनीति का अध्यात्मकरण हो।
मुनि हर्षलाल ने संयमे खलु जीवनम का संदेष देते हुए कहा कि राजनीति का नाम आते ही हमेषा दिमाग में गंदगी का चित्र बनता है। राजनीति का अर्थ जनता को सुविधा उपलब्ध कराने में हो। लेकिन जब जनप्रतिनिधि कर्तव्य भूलकर स्वार्थ की दिषा में बढ़ते हैं तो वह राजनीति कभी श्रेष्ठ नहीं हो सकती। इस दौरान यषवंत मुनि एवं मुनि दीप कुमार ने भी विचार व्यक्त किए।
सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने स्वागत उद्बोधन में कहा कि राजनीति के गिरते स्तर को देखते हुए मुनि राकेष कुमार की ऐसे संगोष्ठी की इच्छा थी जो आज ऐसे महंगे मेहमानों की उपस्थिति में सफल हुई।
इससे पूर्व अतिथि परिचय भाजपा नेता प्रमोद सामर ने दिया। अतिथियों का स्मृति चिन्ह, उपरणा ओढ़ा साहित्य भेंटकर सम्मान किया गया। मंगलाचरण शषि चव्हाण एवं समूह ने किया। संगोष्ठी का सफल संचालन उपाध्यक्ष सुबोध दुग्गड़ ने किया। आभार सभा मंत्री सूर्यप्रकाष मेहता ने व्यक्त किया।