शिल्पग्राम उत्सव-2015
उदयपुर। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित राष्ट्रीय हस्तशिल्प एवं लोक कला उत्सव ‘‘शिल्पग्राम उत्सव-2015’’ शनैः शनैः अपने परवान चढ़ रहा है। दस दिनी उत्सव शनिवार को छठवें सोपान तक पहुंचा। जहां हर तरफ खरीददारी, खान-पान और मौज मस्ती का आलम सा था। कोई हाट बाजार में खरीददारी कर रहा था तो कोई खाने-पीने में मशगूल था तो कोई कलाकारों के साथ नाच-गा रहा था।
उत्सव में शनिवार का दिन शिल्पग्राम में कुछ ऐसा बीता कि हर तरफ लोगों चहल कदमी रही। हर तरफ लोगों का जमावड़ा दिखाई पड़ा। मुख्य द्वार के समीप आंगन पर लोक कलाकार राम प्रसाद व उनके साथी कलाकारों के नृत्य को देखने के लिये लोग घेरा बना कर मंच के इर्द-गिर्द एकत्र हुए तथा कुछ एक ने कलाकारों के साथ ठुमके भी लगाये। वहीं शिल्पग्राम में चल रहे विशेष कार्यक्रम हिवड़ा री हूक में शहर के कई छुपे रूस्तमों ने अपने कंठ साधे। शिल्प हाट का आलम यह था कि हर शिल्पकार अपने उत्पादों को बेचने में व्यस्त रहा। वारली झोंपड़ी के समीप बने बाजार में मोजड़ी, पंजाबी जुत्ती, तिल्ला जुत्ती, जूट के बने कलातमक झूले, वॉटर बोटल कवर, हैण्ड बैग्स, कलात्मक व रंगबिरंगी बैडशीट्स व कवर, पिलो कवर, कुशन कवर, विभिन्न प्रकार के परिधान, वस्त्र संसार में राजपूती ड्रेस मटीरियल, कॉटन दरी, चिन्दी दरी, पंजा दरी, खादी के कुर्ते आदि की दूकानों पर लोगों ने खरीददारी की। इसके अलावा मिट्टी के कलात्मक नमूने, इत्र, मधुबनी व फड़ चित्रकारी आदि के साथ-साथ गर्म व ऊनी वस्त्रों की दुकानों पर खरीददारों का जमावड़ा रहा। हाट बाजार में दाल-बाटी, मक्का की रोटी, ढोकला, मक्की की राब, सूप आदि के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के व्यंजनों के बाद कई शौकीनों ने बनारसी पान का बीड़ा मुंह में दबा कर जुगाली की।
याक के बालों का शॉल बना आकर्षण
लद्दाख से दो शिल्पकार ऐसी आई हैं जिने स्टॉल पर याक के बालों से बनी शॉल एक नवाकर्षण है। लद्दाख की डोलमा और डालो शिल्पग्राम में गोवा ब्राह्मण झोंपड़ी के समीप अपने स्टॉल पर बैठी लोगों को अपने विशेष शॉल के बारे में बताती नजर आती हैं। आज कल कश्मीर में रह कर अपना गुजारा करने वाली इन महिलाओं ने बताया कि याक के शरीर से वर्ष में दो बार बाल निकाले जाते हैं। इनमें से बालों का ऊपरी नर्म हिस्से को पानी गला कर उसे पंजेदार औजार से मिलाया जाता है तथा इसे प्रक्रिया से धागा तैयार कर उसका शॉल बनाया जाता है। इस शॉल की कीमत डेढ़ हजार है। इसकी तासीर कड़ाके की सर्दी में जिस्म को गर्माहट देने वाली होती है। डोलमा ने बताया कि याक के बाल के निचले वाले हिस्से को भी इसी प्रकार धागा तैयार कर उससे कारपेट बनाया जाता है।
हरियाणवी घूमर और मलखम्भ ने मंत्रमुग्ध
हरियाणवी नर्तकियों ने अपने ‘‘घूमर’’ तथा महाराष्ट्र के कलाकारों ने मलखम्भ की प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध सा कर दिया वहीं भपंग वादक जुम्मे खां ने अपने चिर परिचित अंदाज में शेरो शायरी से अपना रंग जमाया। कलांगन पर कार्यक्रम की शुरूआत जुगाड़ बैण्ड की प्रस्तुति से हुई जिसमें कोठी, बोतल आदि से बनाये साजों की सिम्फनी रोचक बन सकी। हरियाणा की नर्तकियों ने गीत ‘‘मन्नै झुमको दिलाइदे ओ नणदी के वीरा…’’ गीत पर अपने नर्तन से समां बांध दिया वहीं महाराष्ट्र के मलखम्भ कलाकारों की विभिन्न योग क्रियाओं तथा मलखम्भ पर इनके द्वारा प्रदर्शित आसन को दर्शक टकटकी लगाये देखते रहे इनमें दीपासन में दैहिक लोच तथा संतुलन का सम्मिश्रण उत्कृष्ट बन सका।