तोगड़िया ने दिया मोबाइल पर लाइव संदेष
भारतीय संस्कृति का पर्याय सहिष्णुता विषयक संगोष्ठी
आतंकवाद की जड़ है अध्यात्म का अभाव: राकेष मुनि
उदयपुर। विहिप के अंतरराष्ट्रीय कार्यवाहक अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया ने कहा कि देष में विभिन्न सम्प्रदायों का मिलकर रहना हमारी विशिष्टता है। अलग अलग सोचने वाले लोग भी समाज में एक साथ रहते हैं, उसी से संस्कृति का निर्माण होता है। संस्कृति समाज के लोगों की सोच है।
वे शनिवार शाम आनंद नगर स्थित तातेड़ भवन में तेरापंथी सभा एवं विष्व हिन्दू परिषद के संयुक्त तत्वावधान में भारतीय संस्कृति का पर्याय सहिष्णुता विषयक आयोजित संगोष्ठी को मोबाइल पर लाइव संबोधित कर रहे थे। मुख्य अतिथि एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. परमेन्द्र दषोरा थे। अध्यक्षता पेसिफिक यूनिवर्सिटी के प्रो. प्रेसीडेंट प्रो. बीपी शर्मा थे। विषिष्ट अतिथि विष्व हिन्दू परिषद के उदयपुर प्रांत अध्यक्ष शंकर लोढ़ा थे।
उल्लेखनीय है कि संगोष्ठी में पहले श्री तोगड़िया आने वाले थे लेकिन अचानक तबियत खराब होने के कारण अहमदाबाद में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। शनिवार शाम संगोष्ठी में उन्होंने लाइव मोबाइल से उद्बोधन दिया।
उन्होंने कहा कि समाज के व्यवहार को हम सभ्यता कहते हैं। जहां व्यक्ति रहता है, उसकी सोच वैसी ही हो जाती है। लंदन में रहूंगा तो मेरी सोच भी वैसी ही होगी। आत्मा को अमर-पवित्र मानते हैं, यह हमारी संस्कृति की विषिष्टता है। शरीर मरता है यानी पुनर्जन्म है। कहां होगा, वह कर्म के आधार पर होगा। कर्म पर विष्वास करते हैं तो यही जिंदगी की सफलता है। मूल्ययुक्त सामाजिक जीवन का आधार कर्मों पर विष्वास और आत्मा की अमरता है। हम ही लोग हैं जो इस पर विष्वास करते हैं। दूसरे देषों में लोगों के अनुसार शरीर के साथ आत्मा भी समाप्त हो जाती है। पाष्चात्य में दिखने वाला अंतर सांस्कृतिक चिंतन है। हम भी पष्चिम की सोच स्वीकार कर रहे हैं, यही कारण है कि हमारे यहां भी अपराध बढ़ रहे हैं। पर्यावरण की रक्षा करने वाले भी हम ही हैं। हमारे लिए पेड भी पूजनीय है।
तेरापंथ धर्मसंघ के वरिष्ठ संत मुनि राकेश कुमार ने कहा कि सहिष्णुता भारतीय संस्कृति की मूल प्रेरणा रही है। यदि हम लोग दूसरों के अस्तित्व को महत्व देते हैं, दूसरे लोगांें की विचारधारा को सम्मान देते हैं और मतभेद होते हुए भी दूसरों के विचारों को उदारता, नम्रता और सहिष्णुतापूर्वक सुनते हैं तो कोई भी कुचक्र सामाजिक समरसता को क्षति नहीं पहुंचा सकता। उन्होंने कहा कि मारकाट करना ही हिंसा नहीं बल्कि दूसरों के विचारों का अनादर करना भी हिंसा है। दूसरे के अस्तित्व को नकारना भी हिंसा है, इससे बचना चाहिए। सहिष्णुता के लिए अपेक्षित है कि लोगांें में मैत्री भावना का जागरण हो।
मुख्य अतिथि प्रो. परमेन्द्र दषोरा ने कहा कि इस संगोष्ठी के आयोजक विहिप यानी जिसके आगे ही विष्व है और दूसरा तेरापंथ यानी तेरा, मेरा कुछ नहीं। जहां ऐसे संगठन हैं जहां असहिष्णु की बात करना ही बेकार है। कतिपय राजनीतिक उद्देष्यों की पूर्ति के लिए, वह भी तब जब देष में राष्ट्रवादी सरकार उन्नयन का लक्ष्य लेकर का काम कर रही है। असहिष्णु कहने वालों से सहिष्णु की परिभाषा तो पूछें, उनके पास कोई जवाब नहीं होता। अनगिनत पुरस्कार प्राप्त करने वालों में भी कुछ पुरस्कार लौटाने आ जाते हैं। चुनाव समाप्त होते ही वापस सब कुछ शांत हो जाता है। अब वे इतिहासकार आगे आए हैं जिन्होंने इतिहास को विकृत रूप में पेष किया है।
अध्यक्षता करते हुए पेसिफिक के प्रो. प्रेसीडेंट प्रो. बीपी शर्मा ने कहा कि सभी उपासना स्थलों और पंथों का आदर करना हमारे यहां आदिकाल से परंपरा रही है। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि जो समस्त जीव धारकों के हित में संलग्न है, वही मुझे प्राप्त करता है। समस्त यानी सभी। भारत को असहिष्णु बताना एक अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र है। पारसी समुदाय सिर्फ हमारे यहां ही है। सेना में सिर्फ दो को ही फील्ड मार्षल की उपाधि दी गई बाकी जनरल ही कहा जाता है। विषय बहुत सार्थक है लेकिन इसे आगे बढ़ाने की आवष्यकता है। उपासना पद्धतियों को अलग रखकर धर्म की अलग परिभाषा दी गई है।
वरिष्ठ संत मुनि हर्षलाल ने कहा कि भारतीय संस्कृति त्याग प्रधान है। यहां धनकुबेरों और सत्ताधीषों की नहीं बल्कि अध्यात्म की पूजा होती है। स्वार्थवाद व्यक्ति को असहिष्णु बना देता है।
उर्जावान मुनि सुधाकर ने कहा कि गीता, गंगा और गाय के देष में असहिष्णुता की बात करना बेमानी है। भारत की असली पहचान अषोक चक्र, ताजमहल नहीं बल्कि वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना है। भारत एक धर्म प्राण देष है। सभी धर्मों काआदर करना यहां की विषेषता है। एकांतवादी और आग्रहवादी व्यक्ति की असहिष्णु होता है। मुनि दीप कुमार एवं मुनि यषवंत कुमार ने भी विचार वयक्त किए।
तेरापंथी सभा के अध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने स्वागत उद्बोधन में कहा कि जिस सौहार्दता से यहां लोग रह रहे हैं लेकिन कतिपय कुचक्रों के जरिये देष में असहिष्णुता नामक शब्द का अनपेक्षित प्रयोग यहां हो रहा है। इस समसामयिक विषय के लिए यह आयोजन किया गया।
इससे पूर्व आरंभ में मंगलाचरण शषि चव्हाण, लक्ष्मी कोठारी एवं समूह ने किया। संचालन रवि जैन ने किया। आभार तेरापंथी सभा के मंत्री सूर्यप्रकाष मेहता ने व्यक्त किया।