उदयपुर। साड़ी, सूट एवं अन्य परिधानों में दिनों-दिन केमीकल युक्त रंगो का प्रयोग होने से चर्म रोगियों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे में जनता को केमीकल फ्री यानि वेजीटेबल रंगों से बने वस्त्रों की पहिचान अब सिर्फ राजस्थान में हीं नहीं वरन् देश की सीमा लांघकर विदेशों में भी होने लगी है। यह संभव हो पाया है बगरू प्रिन्ट के कारण।
इन प्रिन्टों को देख ग्रामीण गैर-कृषि विकास अभिकरण (रूडा) एवं विकास आयुक्त (हस्तशिल्प), भारत सरकार, नई दिल्ली की ओर से टाऊनहॉल में आयोजित किये जा रहे 10 दिवसीय राष्ट्रीय क्राफ्ट मेला ‘गांधी शिल्प् बाजार-2016’ में महिलाओं का मन ललचा गया। कॉटन, टसर सिल्क, कोटा डोरिया कपड़े पर निर्मित इन प्रिन्टों ने महिलाओं के दिलों में जगह बनानी प्रारम्भ कर दी है।
बगरू से आये दस्तकार नाथूलाल छीपा ने बताया कि किसी समय बगरू में छपाई करने वाले मात्र 55 घर हुआ करते थे लेकिन आज यहंा पर करीब 300 परिवार इस कार्य में लगे हुए है जो 25 हजार लोगों को रोजगार दे रहे है। वेजीटेबल रंगों के बनाने की प्रक्रिया बताते हुए बताया कि काला रंग का निर्माण में लोहा,पानी एवं गुड़,लाल रंग का निर्माण फिटकरी एंव ब्राऊन रंग का निर्माण लाल एवं नीला थोथा से होता है। काले रंग के निर्माण में 15 दिन का समय लगता है।
बगरू से प्रतिदिन होता है 10 हजार मीटर कपड़े का निर्यात- गत 40 वर्षो से छपाई का कार्य करने वाले छीपा ने बताया कि जापान से बगरू में नील का आयात किया जाता है और उस नील का विशेष रूप से इन्डिगों कपड़े में काम में लेकर उस वस्त्र का प्रतिदिन 10 मीटर कपड़े का जापान को निर्यात किया जाता है। इन्डिगों कपड़े को जलाने पर इस वस्त्र में काम में आयी नील अलग हो जाती है। बगरू से वहीं कपड़ा निर्यात हो सकता है जब उस कपड़े पर यूरोपिय संघ द्वारा स्थापित टेक्सटाईल पार्क की छाप लगी हो। यह टेक्सटाइल पार्क कुछ समय पूर्व यूरोपिय संघ ने ही स्थापित किया था।
नाथूलाल उदयपुर में इस मेले में बगरू प्रिन्ट की टसर सिल्क एंव कोटा डोरिया की साडिय़ा, कोटा डोरिया कपड़े के सलवार सूट,कॉटन की साडिय़ा ले कर आये है। उन्होंने बताया कि एक माह में लगभग 70 से 80 साडिय़ंा हाथ से तैयार होती है। गोंद के साथ इन रंगों को बनाने पर ये रंग पक्के होते है।
केन्द्र सरकार से मिलता है ऋण,सिर्फ ब्याज चुकाओं किश्त नहीं- केन्द्र सरकार ने दस्तकारों को बढ़ावा देने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने वर्ष 2009 में दस्तकारों की कार्यक्षमता अनुरूप बैंक से ऋण उपलब्ध करवानें की योजना शुरू की। इस योजनान्तर्गत उन्हें ऋण की वापसी के रूप में सिर्फ ब्याज ही बैंक को चुकाना होता है किश्त नहीं। इससे बगरू के दस्तकारों की आर्थिक स्थिति में काफी बढ़ोतरी हुई है। केन्द्र सरकार द्वारा बगरू क्षेत्र में अब तक लगभग साढ़े तीन करोड़ रूपयें के ऋण वितरीत किये जा चुके है।
रूडा के महाप्रबन्धक दिनेश सेठी ने बताया कि मेलें में दूसरे दिन से जनता की भीड़ उमडऩे लगी है। प्रतिवर्ष जनता इस मेले का बेसब्री से इन्तजार करती है। इस मेले में उनकी आवश्यकताओं की हर वस्तु वाजिब दाम में उपलब्ध है।