देशभर के इतिहासविदों ने माना स्वतंत्रता आंदोलन में मेवाड़ी सपूतों का योगदान
उदयपुर। मेवाड़ी सपूतों ने एक ओर जहां जन जागरण के माध्यम से स्वतंत्रता की अलख जगाई, वहीं दूसरी तरफ जीवन की परवाह नहीं करते हुए स्वतंत्रता आंदोलन में जीत दर्ज की। यही कारण है शताब्दी के इस संघर्ष में मेवाडी सपूतों का विशिष्ट स्थान रहा है।
इनमें महाराणा प्रताप, केसरी सिंह बारहठ, जोरावर सिंह, गोविंद गुरू, मोतीलाल तेजावत, जनार्दनराय नागर हो या विजयसिंह पथिक। सभी सपूतों ने अपने अपने स्तर पर इस शताब्दी संघर्ष में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह बात शुक्रवार को राजस्थान विद्यापीठ के संगठक श्रमजीवी महाविद्यालय के इतिहास एवं संस्कति विभाग द्वारा शताब्दी संघर्ष एवं राजस्थान विषयक राष्टीय सेमिनार में जुटे देशभर के इतिहासविदों ने कही। समापन समारोह में दांतीवाडा विवि के पूर्व कुलपति प्रो बीएस चूंडावत ने कहा कि शताब्दी के इस संघर्ष में मेवाड का विशेष योगदान रहा। इतिहास के पन्नों को पलटे तो पाएंगे कि किस तरह केसरी सिंह बारहठ, जोरावरसिंह व प्रतापसिंह ने कैसे जन जागरण की दिशा को अपनाया। लोगों को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करना उनका मुख्य उदृदेश्य रहा। इसी तरह महाराणा फतहसिंह को दिल्ली दरबार में जाने से रोका गया। जबकि तत्कालीन वायसराय ने उन्हें वहां बुलाने के लिए खासा प्रभाव भी बनाया था। तत्कालीन साहित्यकारी आंदोलनकारियों ने इस समय अपनी कलम की ताकत दिखाई, जिससे प्रभावित होकर महाराणा फतहसिंह ने दरबार नहीं जाने का निर्णय किया था।
समापन समारोह के मुख्य अतिथि जयनारायण व्यास विवि के पूर्व आचार्य प्रो एसपी व्यास ने कहा कि इतिहास लेखन को लेकर विशिष्ट जानकारियां देते हुए कहा कि वर्तमान में इतिहास लेखन और पठन में उपयोगितावादी दष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। इससे फायदा यह होगा कि हम वर्तमान परिप्रेक्ष्य में होने वाली प्रमुख समस्याओं का आंकलन किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य देशों में इतिहास की उपयोगिता निरंतर बढती जा रही है। अध्यक्षता करते हुए प्रो एसएस सारंगदेवोत ने कहा कि वर्तमान में इतिहास लेखन और पठन के साथ साथ इसके संरक्षण को लेकर विशेष प्रयास किए जाने चाहिए। इतिहास से संबंधित दष्टिकोण में नए बदलाव की आवश्यकता है। इस दिशा में शोध कर्म की भी कोई सीमा नहीं है। शोधार्थियों को चाहिए कि वे इस दिशा में अधिक से अधिक शोध कर्म करें। समारोह के विशिष्ट अतिथि प्रो पीके पंजाबी थे। प्रारंभ में संगोष्ठी निदेषक डॉ निलम कोशिक ने अतिथियों का परिचय दिया तथा आयोजन सचिव डॉ हेमेंद्र चौधरी ने दो दिवसीय संगोष्ठी का प्रतिवदेन पेश किया। समापन पर इतिहास की शोध पत्रिका विरासत का विमोचन किया गया। दो दिनों में 63 पत्रों का वाचन किया गया। संचालन डॉ नम्रता शर्मा ने किया व धन्यवाद डॉ हेमेंद्र चौधरी ने दिया।