धर्मनारायण जोशी का श्री कटारिया के नाम खुला पत्र
उदयपुर। राज्य के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया के कभी राइट हैण्ड कहलाने वाले भाजपा के पूर्व संगठन मंत्री धर्मनारायण जोशी ने उन्हें एक पत्र लिखा है जिसमें उनकी बेबसी, विवशता और कथित रूप से उनके कुकृत्यों को उजागर किया है।
पत्र में आश्चर्य व्यक्त करते हुए जोशी ने कहा कि 40 वर्ष के राजनीतिक कार्यकाल में भी अगर यह कहना पड़े कि आम आदमी को न्याय नहीं मिल रहा, मेरे विभाग के पुलिस अधिकारी जमीनों के धंधे में लगे हैं तो दुर्भाग्य है। हम यहां श्री जोशी के पत्र को हुबहू प्रकाशित कर रहे हैं :
श्री जोशी का श्री कटारिया को भेजा गया हुबहू पत्र
श्रीमान् कटारिया जी,
सादर वन्दे।
इन दिनों समाचार पत्रों में छपे आपके वक्तव्यों को पढ़कर आश्चर्य होता है। कभी आप कहते है, मुझे पुलिस की कार्यप्रणाली आज तक समझ में नहीं आई, कभी कहते हैं मेरी पुलिस के अधिकारी जमीनों के धंधे में लगे हैं। कभी आप कहते हैं आम आदमी को न्याय नहीं मिल रहा, मुझे गृहमंत्री रहने का अधिकार नहीं है।
आप भाजपा की पिछली सरकार में भी गृहमंत्री थे, अभी भी है। आप लगभग चार दशक से सत्ता के गलियारों में है। 1977 में विधायक का टिकट लेकर पार्टी में आये। तब से हर चुनाव आपने लड़ा। 1985 का विधानसभा व 1991 का लोकसभा चुनाव छोड़कर सभी चुनाव जीते भी। जब भाजपा राज में नहीं रही आप नेता प्रतिपक्ष रहकर भी लालबत्ती में रहे।
आप राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्री व पार्टी के वरिष्ठ नेता है। आपने कभी कहा मैनें धोती पहनना बंद कर दिया है। धोती पहनने वाले चोर होते है। आप जहां भी है, केवल अपनी क्षमता व योग्यता से नहीं, उसके पीछे हजारों-लाखों कार्यकर्ताओं के तन, मन, धन और जीवन का समर्पण है। हमारी एक-एक कृति पर जनता व कार्यकर्ताओं की आशा व अपेक्षा टिकी है।
इतने समय सरकार में रहकर आज आप स्वयं को अक्षम व असहाय अनुभव क्यों कर रहे है। विषय गंभीर है। आपने गांव, गरीब और किसान की गरीबी के भावुक भाषण दिये। उसका आपने किया कुछ नहीं। उदयपुर के लिये आपने कोई बडी विकास योजना बनाकर क्रियान्विति की होती तो उदयपुर का चित्र अलग होता। आप तो सुखाडिया जी के सपनों को साकार करने में गौरव का अनुभव करने लगे।
मैं विद्यार्थी जीवन से आपसे परिचित हूं। आपके मन का बोझ मैं समझ सकता हूं कभी-कभी आत्मा की आवाज को सुन लेना चाहिये। आपकी आत्मा ने क्यों कहा? मुझे मंत्री नही रहना चाहिये।
चालीस वर्ष के राजनैतिक जीवन में कोई बडी उपलब्धि जनता को न दे सकने का मलाल मन में होना स्वाभाविक है। आपकी उपलब्धि यह जरूर है चुनाव में टिकट लेकर चुनाव लडना। अपनी नापसन्द के व्यक्ति को येन-केन टिकट से वंचित करना, संगठन से दूर करना। इस विषय पर आपको सफलता भी मिली।
जब जीवन में वाणी व व्यवहार व भाषण और जीवन में दोहरापन होता है तो व्यक्ति की वही स्थिति होती है, जो आज आपकी है। आपकी पीड़ा स्वाभाविक है।
आपसे सम्बन्धित कुछ बिन्दुओं पर ध्यानाकर्षण कर रहा हूं :
1. आप हमेशा संगठन निष्ठा का भाषण देते रहे। सन् 2008 के विधानसभा चुनाव में आपने मेरे विरूद्ध मावली के कांग्रेस प्रत्याशी के साथ उदयपुर में मीटिंग की और उसे कहा आपको जो मदद चाहिये मै तैयार हूं। धर्मनारायण जोशी नही जीतना चाहिये। आपने कई कार्यकर्ताओं व नेताओं को मेरे विरूद्ध फोन भी किये। मैं इस विषय पूर्व में भी आपके निवेदन कर चुका हूं। हर विषय पर तुरन्त व बेबाक प्रतिक्रिया देने वाले आप श्री इस विषय पर मौन क्यों हैं, आपका मौन स्वयं आपके विरूद्ध गवाही दे रहा है।
2. आपने भीण्डर में संघ के कार्यकर्ता की हत्या के विषय का उपयोग अपने राजनैतिक विरोधी रणधीर सिंह भीण्डर के विरोध में बखूबी किया। इस प्रकरण की विभिन्न स्तरों पर तीन बार जांच हो चुकी है। जांच के निष्कर्ष पर आपने कोई वक्तव्य से संतुष्ट नहीं है तो दो कार्यकाल से आप गृहमंत्री है स्वयंसेवक की हत्या से जुडे विषय पर निष्पक्ष जांच करवाकर दोषियों के पकडे जाने की आपने कोई पहल क्यों नहीं की।
3. सन् 2008 के विधानसभा चुनाव में मावली व वल्लभनगर में भाजपा प्रत्याशियों के विरूद्ध काम करने वालों को आपने हमेशा प्रोत्साहित किया। क्या यही संगठन निष्ठा है, जो आपको पसन्द हो, वहीं भाजपा है।
4. उदयपुर में शिवकिशोर सनाढ्य को यूआईटी चेयरमैन बनाने जाने के विरोध में आपके नेतृत्व में भाजपा कार्यालय में हुई जिला बैठक में प्रदेश भाजपा सरकार व संगठन के कार्यक्रमों का बहिष्कार करने का प्रस्ताव पारित हुआ।
5. गत सरकार में कोटा में आयोजित केबिनेट बैठक का आपने बहिष्कार किया। उस बैठक में गृहकर समाप्ति का निर्णय हुआ। आप बैठक में तो नहीं गये। लेकिन गृहकर समाप्ति पर उदयपुर में अपना नागरिक अभिनन्दन करवा लिया।
6. सांवलिया जी भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में जाने के लिये उदयपुर आये आड़वाणी जी के स्वागत में आप नहीं गये। प्रेस में कहा-यही मान लो जानबूझ कर नहीं गया। आपने सांवलिया जी की कार्यसमिति का बहिष्कार किया। उस समय आप उदयपुर ही रहे।
मान्यवर,
आप प्रायः अपने भाषण में स्वयंसेवक होने के दुहाई देते है, लेकिन व्यवहार उसके विपरीत करते है। उदयपुर भाजपा में कई स्वयंसेवक कार्यकर्ता आपके व्यवहार व उपेक्षा के कारण दायित्वों से मुक्त है। उन्हें बैठक व कार्यक्रमों की सूचना तक नहीं होती। संघ ने हमें व्यक्ति-व्यक्ति जोडना सिखाया है। आपकी वाणी व व्यवहार ने कई कार्यकर्ताओं को आहत किया है।
आपके वक्तव्यों से लगता है जैसे कोई अपात्र व्यक्ति बडा पद पा गया हो और उसे बार-बार मैं स्वयंसेवक हूं कि दुहाई देनी पडे। वास्तव मंे स्वयंसेवक वह है जिसके जीवन में स्वयंसेकत्व स्वयं प्रकट हो।