उदयपुर। मेवाड़ का एक गौरवशाली और महिमा मण्डित स्वरूप है। यहां बप्पारावल, महाराणा कुंभा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप एवं राजसिंह जैसे पराक्रमी वीर एवं तेजस्वी महापुरूष हुए है, महारानी पद्मिनी, भक्तिमती मीरा एवं हाड़ा रानी तथा पन्नाधाय जैसी दिव्य विभूतियां हुई हैं जिनका नाम लेने मात्र से सिर गर्व से ऊंचा उठ जाता है।
विजयसिंह पथिक, माणिक्यलाल वर्मा एवं मोतीलाल तेजावत आदि स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपने त्याग और बलिदान से मेवाड़ की कीर्ति को उज्ज्वलता प्रदान की है। उसी दौर में स्वतत्रंता की अलख जगाते हुए मेवाड़ के जन-जन की निरक्षरता का अंधकार दूर करने की जो तपस्या पं0 जनार्दनराय नागर ने की, उसे भुलाया नहीं जा सकता।
स्वतंत्रता आंदोलन का समय राष्ट्रीय चेतना एवं जागृति के साथ संस्थाओं के युग निर्माण का समय रहा। महर्षि दयानन्द सरस्वती, महामना मदन मोहन मालवीय, कविवर रवीन्द्र नाथ टैगोर तथा महात्मा गांधी की तरह मेवाड़ में जिन लोगों ने शिक्षा साहित्य और कला के क्षेत्र में संस्था निर्माण की पहल की उनमें डॉ. मोहनसिंह मेहता, भेरूलाल गेलड़ा, जनार्दनराय नागर, दयाशंकर श्रोत्रिय, देवीलाल सामर, शांता त्रिवेदी आदि के नाम उल्लेखनीय है जिनके माध्यम से विद्या भवन, राजस्थान महिला विद्यालय, महिला मंडल, भारतीय लोक कला मंडल एवं महिला परिषद् जैसी संस्थाओं का आविर्भाव हुआ जिनसे मेवाड़ का मस्तक ऊंचा हुआ। मेवाड़ की कुछ संस्थाएं राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय जगत में विख्यात है। उनमें पं. नागर की राजस्थान विद्यापीठ का अपना एक विशेष स्थान है।