दादू को समर्पित नादब्रह्म का आयोजन रंगांजलि
उदयपुर। नादब्रह्म, मदनलीला परवार सेवा संस्थान एवं मोहन सिह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के संयूक्त तत्वावधान में नाट्य समारोह “रंगांजलि” में दो नाटकों का सशक्त मंचन किया गया।
प्रसिद्ध रंगकर्मी एवं बांसुरी वादक स्व. हेमंत पंड्या को समर्पित “रंगांजलि” में पहली प्रस्तुति के रूप राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षित मनोहर तेली स्व. कामतानाथ जी की कहानी “संक्रमण” को सधे अंदाज़ में पेश किया गया। भावप्रणवता, संवाद संप्रेषण और मंझे हुए अभिनय से इस नाटक के विभिन्न पात्रों को जीवंत बनाते हुए दर्शकों से सीधा संवाद स्थापित करने में सफलता पायी। उल्लेखनीय है की “संक्रमण” मनोहर तेली द्वारा निर्देशित और अभिनीत एकल नाट्य प्रस्तुति है, जिसमे मनोहर ने एक परिवेश में रोज़मर्रा के आचार व्यहवार से दो पीढ़ियों की सोच एवं मूल्यों के अंतर को बड़े रोचक तरीके से दर्शाया। संक्रमण में मनोहर तेली स्वयं के निर्देशन में लाज़वाब अभिनय करते हैं, उनका व्यंग्य दर्शकों को चिकोटी काटता है वहीँ ज़रूरी मौको पर वे संवेदना भरा अभिनय कर दर्शक की आँख को नम भी कर देते हैं।
प्रस्तुति में बाप-बेटे के किरदार में मनोहर का अभिनय लाजवाब बन सका, वहीँ माँ की भूमिका को भी उन्होंने बखूबी निभाया। यह नाट्य प्रस्तुति कहानी के मूल प्रभाव को बचाये रखती है। जो कहानी के रंगमंच के मुख्य तत्व है कामतानाथ बेहद सादे कहानी कार हैं। वहाँ कोई मुल्लमा या कलाकारी नक्काशी जैसा कुछ नहीं है, उनका अंदाज़ ठेंठ रहता है। मनोहर तेली उसी अंदाज़ में कहानी को प्रस्तुत करते हैं, बगैर तामझाम के सीदे सादे लहजे में, किन्तु अभिनय में उनकी टाइमिंग और एनर्जी दर्शक को मन्त्र मुग्ध किये रहती है, कथा के अंत में यही दर्शाया गया कि ज़िम्मेदारी का बोझ सोच में बदलाव लाता है।
“रंगांजलि” की दूसरी प्रस्तुति थी असगर वज़ाहत लिखित लघु नाटक “सबसे सस्ता गोश्त” जिसे निर्देशित किया उदयपुर के युवा रंग निर्देशक शिबली खान ने। धर्म की आड़ में सियासी तिकड़म करती देशविरोधी ताकतों पर इस नाटक द्वारा करारी चोट की गयी। ये नाटक धर्म के नाम पर उन्माद फैलाती सांप्रदायिकता के विरुद्ध आगाह तो करता ही है इस मानसिकता पर करारी चोट भी करता है नाटक “सबसे सस्ता गोश्त”नाटक में दिखाया गया कि किस तरह कुछ लोग धार्मिक संवेदनाओं को उदवेलित कर दंगे फसाद की भूमिका तैयार करते हैं। राजनीतिक स्वार्थ के लिए समाज को दंगे की आग में किस तरह से झोंक दिया जाता है। नाटक के अन्तिम चरण में दिखाया गया कि आदमी की जान की कीमत जानवर की जान से कम है। मानवीय संवेदनाओं को झकझोरती इस साहसिक नाट्य प्रस्तुति में भव्यता चौहान, प्रशांत पुरोहित, शिबली खान, अमित व्यास, रमेश नागदा, यश नरुका, सचिन भंडारी, प्रकाश धाकड़, रक्षित परमार, सुखदेवसिंह राव, घनश्याम नागदा, पार्थ पंड्या, आदि युवा कलाकारों ने अपने प्रभावी अभिनय से दर्शकों को बांधे रखा। इस प्रस्तुति का अंत इतना प्रभावी है कि ये दर्शको के मन-मस्तिष्क में देर तक कौंधती रहती है।
दोनों ही नाटकों में प्रकाश महेश आमेटा एवं संगीत संचालन दीक्षांत राज सोनवाल का था। आरम्भ में स्वागत मोहनसिंह मेमोरियल ट्रस्ट के सचिव नंद किशोर ने किया। सामजिक संस्था मदन लीला परिवार सेवा संस्थान के संस्थापक कमलेश शर्मा ने नादब्रह्म के कलाकारों युवा कलाकारों को इस अनूठी प्रस्तुति लिए बधाई दी। रंगांजलि के संयोजक एवं शहर के रंग निर्देशक शिवराज सोनवाल ने दादू को समर्पित प्रस्तुतियों में दर्शकों की सहभागिता के लिए उनको धन्यवाद दिया।