श्री महावीर युवा मंच संस्थान व जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में सकल जैन समाज का सामूहिक क्षमायाचना समारोह
शहर में विराजित चारित्रात्माओं ने बताया एकता का मंत्र
उदयपुर। संवाद भले ही हो या नहीं लेकिन संवेदनशीलता खत्म नहीं होनी चाहिए। भगवान महावीर ने भी यही कहा है कि कुछ भी पालो, लेकिन मन में किसी के प्रति वैर मत पालना। राग, द्वेष मत रखो। किसी ने कहा कि संत एक हों तो समाज भी एक हो जाए तो इसके विपरीत किसी चारित्रात्मा का मानना था कि समाज एक हो जाए तो संतों को एक होने में देर नहीं लगेगी।
ये विचार उभरकर आए श्री महावीर युवा मंच संस्थान व जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में रविवार को आयड़ तीर्थ पर आयोजित सकल जैन समाज के सामूहिक क्षमायाचना समारोह में जहां चातुर्मास के लिए शहर में विराजित विभिन्न पंथों की चारित्रात्माओं ने शिरकत की। समारोह में जैन एकता: वर्तमान समय में प्रासंगिकता पर चारित्रात्माओं ने अपने अपने विचार व्यक्त किए।
स्वागत उद्बोधन में संस्थान के संरक्षक राजकुमार फत्तावत ने कहा कि शहर में एक लाख से अधिक जैन धर्मावलम्बी हैं। कई बार अनुशासन के लिए कटु बातें भी कहनी पड़ती हैं। उन्होंने खमतखामणा करते हुए कहा कि यह संस्थान का 22वां पर्व है। 5 बड़े 60 से 70 हजार लोगों के स्वामी वात्सलय हो चुके हैं। सामूहिक विवाह प्रतिवर्ष करते हैं। हम जैन एकता के लिए कितनी आहूति दे सकते हैं, इस पर विचार करना होगा। मेवाड़ की धरा से यह आवाज निकली है तो निश्चय ही दूर तक जानी चाहिए। अपने जैन भाइयों को किस तरह सहयोग कर सकते हैं, इस पर विचार करें। महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने भी स्वागत उद्बोधन दिया।
आयड़ में विराजित विजय अभयसेन सूरिश्वर ने कहा कि मैं सिर्फ जैन साधु हूं। एक मंच पर इतने बैठे हैं, क्या यह प्रासंगिकता नहीं है। संवत्सरी को हमने एकता का मानक क्यों बना लिया है। यह तो सिर्फ एक क्रिया है। एकता तो हम में है इसलिए यहां बैठे हैं। चिंतन वहां जरूरी है कि साधु-साध्वियों, आचार्य भगवंतों का अपमान होता है, जैन बहू बेटियों को छेड़ता है तब जैन क्या करते हैं? एकता नहीं बल्कि हमें अपने अस्तित्व पर विचार करना चाहिए। दोनों पंथों के संत अपनी अवस्था नहीं बदल सकते लेकिन इस अवस्था के संरक्षण की बात कर लें, यही बहुत है।
जैन मुनि अनुभव सागर ने कहा कि व्यक्ति के व्यक्तित्व में सुंदरता हो तो विश्व में सुंदरता दिखेगी। सभी जगह शांति होगी लेकिन शुरूआत खुद से करनी होगी। मन में धूल रखे लेकिन आईना साफ करते रहे। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि आपकी मां आपकी और मेरी मां मेरी। आप कपड़े उतार नहीं सकते और हम पहन नहीं सकते क्योंकि जैन धर्म तो अनेकांतवाद का पर्याय है। न आप गलत हैं और न हम। सभी के अपने अपने धर्म हैं और अपने अपने सिद्धांत। अनेकंातवाद इम्पासिबल को इट मे पॉसिबल भी बना देता है। जब सीरियल के पात्रों के प्रति आपमें संवेदना जाग रही है तो इसका मतलब भी गलत रास्ते पर जा रहे हैं। मैं शब्द से नहीं खेलता बल्कि भावनाओं का संवाहक हूं।
उपाध्याय नरेन्द्र विजय ने कहा कि जैन एकता की बात को सामने रखना है तो आत्मा को पवित्र करने के लिए आग्रह से, आवेश से, आकांक्षाओं से खुद को मुक्त करना होगा। जैन समाज के कल्याण के लिए आडम्बरमुक्त होना पड़ेगा। प्रेम से बढ़कर कोई पंथ नहीं। जीवन में कभी आवेश में न आएं। समाज में एकता की बात करें और परिवार में भी एकता नहीं है। अभिमान का क्षय करें तभी क्षमा कर सकेंगे।
मुनि देवरक्षित ने कहा कि संस्थान ने बहुत पुनीत कार्य किया है कि विभिन्न पंथों की चारित्रात्माओं को एक मंच प्रदान किया। नौ और नौ के बीच कोई भी चिन्ह प्लस, माइनस, मल्टीप्लाई या डिवाइड करो लेकिन बिना किसी चिन्ह के दोनों को पास बिठा दो तो वह संख्या सबसे बड़ी हो जाती है।
पंचायती नोहरा में विराजित विजय मुनि ने गीतिका प्रस्तुत करते हुए कहा कि जो बताया है, उसे आत्मसात करें। पांडव पांच थे लेकिन सौ कौरव के आगे भारी पड़े। आचार संहिता भिन्न हो सकती है, सत्य, अहिंसा, सद्कर्म हमारे श्रावक के धर्म हैं। संथारा पर सकल देश में जैन एक हुए, उसी तरह हम एक हो जाएंगे।
तेरापंथ भवन में विराजित साध्वी कीर्तिलता ठाणा-4 ने कहा कि आचार्य तुलसी ने सबसे पहले जैन एकता का संदेश दिया था। तेरापंथ एक आचार्य: एक अनुशासन की परंपरा पर चलता है। समाज एकजुट हो जाएगा तो साधु-संतों को भी एक होना पड़ेगा। टूटे दिलों में मैत्री का पुल बनाना मुश्किल है लेकिन दिलों में एकता सूख जाती है तो अंदर वैमनस्य की दरारें पड़ जाती है। उनसे जाकर क्षमायाचना करें और अपने दिल खोलें।
वासुपूज्य मंदिर मंें विराजित मुनि मनीषप्रभ सागर ने कहा कि क्षमा के साथ मन में परमात्मा के प्रति श्रद्धा के भाव होने चाहिए। भाषण तो सभी देते हैं कि एक होने चाहिए लेकिन जब सिद्धांत की बात आती है तो सभी दूर हो जाते हैं। इससे हम जैन धर्म से दूर हो रहे हैं। विचार अवश्य करना होगा। समाज भी साधु-भगवंतों से आगे नहीं हैं। अगर हम एक हो गए तो समाज तो स्वतः एक हो जाएगा। शुरूआत तो किसी को करनी होगी।
अहिंसापुरी में विराजित सुलोचना श्रीजी ने संगठन की वीणा बजने दो.. गीतिका प्रस्तुत करते हुए कहा कि हम सभी के अंदर एकता है, आज इसीलिए यहां एकत्र हुए हैं। भगवान महावीर के वटवृक्ष के हम सभी अनुयायी हैं। अगर पर्यूषण एक हो जाएं, संवत्सरी एक हो जाए तो फिर कहीं देखने जाना नहीं पड़ेगा। दूध में शक्कर डाल दो लेकिन हिलाओ नही ंतो वह मीठा नहीं होता, ठीक उसी प्रकार मन को नहीं हिलाया तो जीवन में कभी एक नहीं हो सकते।
महावीर युवा मंच संस्थान के अध्यक्ष चन्द्रप्रकाश चोरडिया ने स्वागत करते हुए अल्प निवेदन पर सभी चारित्रात्माओं के एक स्थान पर एकत्र होने पर अभिवादन करते हुए आभार व्यक्त किया। आरंभ में मंगलाचरण प्रमिला दलाल, विजयलक्ष्मी गलुण्डिया, सुशीला इंटोदिया, आशा कोठारी ने किया। आभार महासभा के कुलदीप नाहर ने जताया।