एग किंग : जय कुमार वालेचा, रुक्मिणी फाउंडेशन और उदयपुर न्यूज की पहल
बचपन ऐसा मुफलिसी में गुजरा लेकिन मेहनत की तो ऐसी कि आज उन्हें लोग एग किंग के नाम से जानते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं जय कुमार वालेचा की जो अपने पिता के व्यापार को आगे बढ़ा रहे हैं और इस कदर बढ़ा दिया है कि उनके हाथ के बने अंडों से बने उत्पाद खाकर लोग अपनी उंगलियां चाटते रह जाते हैं।
हम रुक्मिणी फाउंडेशन के माध्यम से शहर की ऐसी ही नवप्रतिभाओं को उभारकर एक मंच प्रदान करने के उद्देश्य से यह कॉलम आरंभ कर रहे हैं। फाउंडेशन के निदेशक संतोष कालरा का मानना है कि इससे उन्हें अपने शहर के साथ बाहर भी प्रोत्साहन मिलेगा और वे अपना मुकाम हासिल करने में कामयाब होंगे।
उदयपुरन्यूज डॉट इन से एक विशेष भेंट में जय कुमार से हुई बातचीत :
स. अपनी शिक्षा के बारे में कुछ बताएं।
उ. कम उम्र में ही पिताजी के बीमार होने के कारण परिवार के पालन-पोषण का भार मुझ पर आ गया, इसलिए शिक्षा सिर्फ औपचारिक रूप से ही हो पाई।
स. अपने बचपन और परिवार के बारे में थोड़ा बताएं।
उ. जब पिताजी बीमार पड़ गए थे तब दो बहनें और हम दो भाई थे। तीन बहनों की शादी हो चुकी थी। बचपन तो देखा ही नहीं कि कैसा होता है। परिवार के भरण-पोषण के लिए 12 वर्ष की उम्र में ही रावजी का हाटा से लॉरी खींचकर चेटक सर्किल तक ले जाना और रात को वापस लाना, यही क्रम बन गया था।
स. वर्तमान व्यवसाय से पूर्व आप क्या करते थे।
उ. मैंने बचपन से ही इस व्यवसाय में काम किया है। पिताजी को देखते देखते ही सीखा। पहले पिताजी भी साधारण रूप से एग्स से जो बनता है, वही बनाते थे।
स. अपने व्यवसाय के बारे में हमारे पाठकों को बताइये।
उ. एग्स से विविध आइटम बनाने का मुझे शौक लग गया। मैंने प्रयोग किए और वे सफल रहे। आज की स्थिति में मैं वर्ष भर तक प्रतिदिन एग्सु से नई डिश बना सकता हूं।
स. व्यवसाय शुरू करने में या चलाने में आपको आर्थिक समस्याएं या जरूरतें पड़ी होंगी, वो आपने कैसे पूरी की।
उ. एकबारगी तो मकान का किराया चुकाने तक के पैसे नहीं थे तब अपने छोटे भाई को समस्या बताई। उस समय मकान मालिक ने घर वालों को बाहर निकालकर ताला लगा दिया कि जब तक किराया नहीं दोगे, अंदर नहीं जा सकते। इस पर भाई कहीं से उधार लेकर आया और काम चलाया।
स. अपने व्यवसाय को स्थापित करने में सभी को संघर्ष करना पड़ता है, आपके संघर्ष के बारे में हमारे पाठकों को अवगत करायें।
उ. सुबह 11 बजे रावजी का हाटा से जगदीश चौक की घाटी चढ़ाकर प्रतिदिन चेटक तक मैं और मेरा भाई रूप कुमार लारी को खींच कर लाते थे और रात्रि 12.30 बजे बाद प्रतिदिन वापस लाते। छोटे से बच्चे को लॉरी खींचते देख कई बार पर्यटक तो कोई बाइक सवार भी धक्का देते। आरंभ में एग्स की नई डिश बनाने सम्बान्धीो किसी से बात भी करता तो मजाक उड़ाते थे लेकिन अब वे ही मुझे कॉपी करने की कोशिश भी करते हैं लेकिन उपर वाले का आशीर्वाद है कि हाथ हाथ का फर्क तो रहता ही है।
स. आपके आदर्श कौन हैं, ऐसे व्यक्ति जिनसे आपको प्रेरणा प्राप्त होती है।
उ. आर्थिक परेशानी के समय मेरे पिताजी के मित्र हरीश चावला ने न सिर्फ मेरी मदद की बल्कि मुझे आत्म विश्वास से काम करना भी सिखाया। में उनका जीवन भर आभारी रहूँगा।
स. प्रत्येक व्यक्ति की सफलता में कुछ लोगों का योगदान होता है, आप अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहेंगे।
उ. अभी तो आंशिक सफलता ही मिली है, काफी कुछ करना बाकी है, पर जितना भी मैंने प्राप्त किया है, उसके लिए मैं सर्व प्रथम अपने माता पिता का आशीर्वाद, अपने भाई रूप कुमार के साथ और मेहनत को और हमारे कस्टमर्स के प्यार और सम्मान को धन्यवाद देना चाहूंगा। ये लारी मेरे लिए मंदिर के समान है। और जैसे वो कहते है न “Customer is the King” मैं कहता हूं “Customer is The God.”
स. आपके जीवन का मूल मंत्र और फेवरेट।
उ. मेरा लक्ष्या सिर्फ और सिर्फ लॉरी पर आने वाले हर ग्राहक को संतुष्टि प्रदान कर सकूं। अंडा बनाना एक कला है। मेरे लिए यह सिर्फ व्यापार नहीं बल्कि ग्राहक मेरे भगवान हैं।
स. व्यवसाय के अलावा, आपके क्या शौक है।
मुझे रोज़ 12 घंटे अपनी लारी पर काम करना पसंद है, देर रात 11 और कभी कभी 12 बजे तक। मेरा काम ही मेरे लिए पहली हॉबी है। काम मेरे लिए पूजा और कला साधना के समान भी है। मुझे ख़ुशी होती है जब में एग डिशेस बनाता हूं और हमारे कस्टमर्स आ आ के मुझसे मिलते हैं और मेरे बनाये डिशेज़ की तारीफ करते हैं, मुझे मेरी मेहनत का फल मिल जाता है।
स. सुना है कि आपके कस्टमर्स में कई सेलिब्रिटीज भी हैं।
उ. इतने सालों में उनके हाथों का कमाल उदयपुर में आने वाली प्रत्ये क फिल्म क्रू ने देखा है और वे आज भी जय के हाथों के दीवाने हैं। इनमें शेफ संजीव कपूर, मुकेश खन्ना , विवेक वासवानी, झलक दिखला जा की विनर वैशाली जैसे कई ख्या तनाम कलाकार शामिल हैं। मेरे आदर्श शेफ संजीव कपूर है, उन्होंने कुकिंग की कला को नयी उचाईयों पर पहुचाया है। मुझे उनसे मिलने का सौभाग्य भी मिला है। उन्हें यह जानकार बड़ी ख़ुशी हुई की मैंने कई नयी डिशेस की खोज की है। उन्होंने मुझसे इस विषय पर चर्चा भी की और मेरे काम की तारीफ भी की है। उन जैसे बड़े कद्रदानों और मोटिवेटर्स के कारण ही मेने मास्टर शेफ के फोर्थ सीजन में पार्टिसिपेट किया और सेकंड लेवल तक भी गया।
स. आपने कितनी नई डिशेस की खोज की है।
उ. कई हैं, नाम इतने कि गिना नहीं सकता। प्रतिदिन वर्ष भर तक अंडे से रोजाना नई डिश खिला सकता हूं।
स. नई डिशेस की प्रेरणा आपको कहां से मिलती हैं।
उ. मुझे लारी पर आकर रोज़ नए नए डिशेस के आइडियाज मिलते है। हमारे कस्टमर्स हमें काफी कुछ सिखाते भी है। उनकी रिएक्शन, पसंदगी और नापसंदगी से हमें दिशा मिलती है। नई डिशेज़ की ट्रायल में अलावा मुझे फिल्मे देखने का और डांस का भी शौक है। जब भी मौका मिलता है मैं परिवार के साथ फिल्म देखने चला जाता हूं या फैमिली डिनर पर चले जाते है। परिवार और दोस्तों की शादी में डांस कर मैं अपने डांस के शौक को भी पूरा कर लेता हूं।
स. आपकी एग डिशेस की सफलता का राज क्या है।
उ. अंडों की भुर्जी सभी बनाते हैं लेकिन उन्होंने भुर्जी में सॉस डालकर उसका टेस्ट ही बदल दिया। अब तो प्रतिदिन अंडे की नई डिश बनाकर पेश कर सकता हूं।
स. आप के व्यवसाय में आपने कितने लोगों को रोजगार दे रखा है।
उ. फिलहाल मेरे साथ भाई रूप कुमार मिलकर हम दो लॉरी चलाते हैं और करीब आठ लोग हमारे साथ जुड़े हुए हैं। रोजगार देने वाले हम कौन, उपर वाले ने हाथ भेज दिए, जिनके साथ मिलकर समाज को कुछ अच्छा। देने का प्रयास कर रहे हैं।
स. क्या आपकी वेबसाइट भी है।
उ. जी हां, हमारी वेबसाइट भी है। अभी वेबसाइट पर काम चल रहा है। साथ ही समय की मांग के अनुसार हम फेसबुक से भी जुड़े हैं और यूट्यूब का उपयोग भी करने की सोच रहे हैं।
स. आपको नहीं लगता कि अब आपको रेस्टोरेंट खोलने का विचार करना चाहिए।
उ. लॉरी हो या रेस्टोरेंट, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। ग्राहक हमारे लिए भगवान का स्वरूप है, वह कहीं भी आए, उसे अपना मनपसंद स्वाद मिलना चाहिए।