आचार्य तुलसी के 103 वें जन्म दिवस पर एकत्र हुई सभी सम्प्रदायों की चारित्रात्माएं
उदयपुर। हम धर्म को तो मान रहे हैं लेकिन धर्म की नहीं मान रहे हैं। यही कारण है कि आज धर्मसभाओं में से युवा पीढ़ी गायब है। सिर्फ सेवानिवृत्त लोग ही धर्मसभाओं में दिखते हैं। आचार्य तुलसी ऐसे संत हुए जो पहले मानव थे, बाद में जैन और फिर अंत में तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य।
ये विचार विभिन्न वक्ताओं ने मंगलवार को आचार्य तुलसी के 103 वें जन्म दिवस पर जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा की ओर से तेरापंथ भवन में अणुव्रत दिवस के रूप में आयोजित समारोह में व्यक्त किए।
कार्यक्रम संयोजक राजकुमार फत्तावत ने कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए आचार्य तुलसी का जीवन परिचय देते हुए बताया कि समारोह में उदयपुर में विराजित जैन धर्म के विभिन्न पंथों, सम्प्रदायों की चारित्रात्माओं ने हिस्सा लिया। फत्तावत ने बताया कि आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन, प्रेक्षाध्यान जैसे अवदान दिए जिनसे आज भी हजारों, लाखों लोग लाभान्वित हो रहे हैं।
साध्वी कीर्तिलता ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ को गरीब की झोंपड़ी से राष्ट्रपति भवन तक पहुंचाने वाले, पंजाब के लोंगोवाल समझौते में अहम भूमिका निभाने वाले आचार्य तुलसी की जयंती पर सभी पंथों के साधु-संत यहां एकत्र हुए हैं जो हमारी एकता को प्रदर्शित करता है। उनके किए कार्य किसी से छिपे नहीं हैं।
आचार्य अभयसेन सूरिश्वर ने कहा कि आज के युग में शिक्षा अत्यावश्यक हो गई है। आचार्यों के नाम पर मार्ग, भवन बनाना आसान है लेकिन उनके बताए आदर्शों, शिक्षा पर चल पाना उतना ही कठिन है। अपने नाम के आगे जैन लिखना आरंभ करें। कलयुग में अगर कोई शक्ति है तो संगठन की।
दिगम्बर सम्प्रदाय के उपाध्याय अनुभव सागर ने कहा कि दो दिन पूर्व भगवान महावीर के निर्वाण उत्सव पर दिगम्बर सम्प्रदाय ने लड्डू चढ़ाया था न कि कोई काजू कतली या बरफी चढ़ाई थी क्योंकि लड्डू जोड़ने का प्रतीक है और बरफी काटने का। हमारा धर्म जोड़ना सिखाता है। आचार्य तुलसी ने भी जोड़ने का ही काम किया था। उन्होंने अणुव्रत क्रांति के माध्यम से नया संदेश दिया। हम चित्र तो लटका सकते हैं लेकिन चरित्र में सुधार लाने की कोशिश नहीं करते।
उन्होंने कहा कि चारित्रात्माओं को तो मैंने नहीं देखा लेकिन उनके शिष्यजनों को देखते हुए निश्चय ही गुरु की प्रवृत्ति का अंदाज लगाया जा सकता है। अगर सही मार्ग पर लाना है तो टीवी को घर से निकालना होगा। घर में टीवी रहेगा तब तक भविष्य खतरे में है।
श्रमणसंघीय चन्द्रेश मुनि ने कहा कि आचार्य तुलसी अनुशासनयुक्त जीवन जीने की प्रेरणा देने वाले थे। हमारा रूप् अलग अलग हो सकता है लेकिन स्वभाव एक ही है। आचार्य तुलसी में कोई भिन्नता नजर नहीं आती। आत्मीयतापूर्ण व्यवहार के कारण हर किसी को वे अपना बना लेते थे। आचार्य तुलसी ने कहा कि श्रमणोपासक वही होगा जो अणुव्रत में विश्वास करता हो, जो अनुशासन में रहेगा। अब संस्कृति बदल गई है। जन्मदिन मनाने के नाम पर मोमबत्तियां बुझाते हैं, केक काटते हैं।
अचलगच्छ के देवरक्षित सागर मुनि ने कहा कि आज यहां आकर खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं। आचार्य तुलसी से मिलना तो कभी हुआ नहीं लेकिन उनके सिद्धांतों को देखकर महसूस किया जा सकता है। संसार में तीन तरह के जीव हैं एक जमा करने वाले, दूसरे जीमने वाले और तीसरे जागने वाले। जमा करने वाले जमलोक जाते हैं, जीमने वाले जसलोक हॉस्पिटल और जागने वाले जगदीश बन जाते हैं। आदर्शों की सराहना करना सरल है लेकिन उन आदर्शों की पालना करना बहुत मुश्किल है।
रवीन्द्र मुनि ने काली अंधियारी रातों में, चन्दा थे लाखों सितारों में, दुनिया को राह दिखाई थी तुलसी थे लाख हजारों में सुनाई। इससे पूर्व आचार्य तुलसी की 103 वीं जयंती पर 103 श्रावक-श्राविकाओं ने मंगलपाठ किया। साध्वी शांतिलता एवं समूह ने गुरुवर तो प्यारे हैं… मधुर गीतिका प्रस्तुत की वहीं सभाध्यक्ष सूर्यप्रकाश मेहता ने स्वागत उद्बोधन दिया। आभार मंत्री राजेन्द्र बाबेल ने व्यक्त किया।