अर्ध्य बिहार समाज ने मनाया
उदयपुर। बिहार समिति द्वारा आज दूसरा दिन लोहंडा और खरना के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनाया। व्रत का तीसरा दिन 6 नवम्बर संध्या अर्ध्य के रूप में मनाया जायेगा।
विपिन कुमार संयोजक छठ पूजा समिति ने बताया कि तीसर दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी या खजूर भी कहते है। (ठेकुआ पर लकडी के सांचे से सूर्य भगवान के रथ का चक्र भी अंकित होता है) के अलावा चावल के लड्डू बनाते है। इसके अलावा सभी प्रकार के मौसमी फल, ईख, केले, पाईनेपल, सिंघाडा, सरिफा, नारियल, मूली, सुथनी, अदरक, गागर, नींबू, अखरोट, बदाम, ईलाइची, लोंग, पान सुपारी एवं अन्य। अर्घ्यकपात (लाल रंग), धगनी, लाल/पीले रंग का कपड़ा, एक बडा गडा जिस पर 12 दीप लगे हो। गन्ने के बारह पेड़ आदि छठ प्रसाद के रूप में शामिल होते हैं। शाम को पूरी तैयारी के और व्यवस्था कर बॉंस की टोकरी में अर्ध्य का सूप सजाया जाता है और व्रती के साथ परिवार तथा पडोस के सारे लोग अस्ताचगामी सूर्य को अर्ध्य देने घाट की ओर चल पड़ते है सभी छठव्रती एक नियत तालाब या नदी के किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्ध्य दान सम्पन्न करते है। सूर्य को जल और दूध अर्ध्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस प्रकार भगवान सूर्य के इस पावन व्रत शक्ति और ब्रहमा दोनों की उपासना का फल एक साथ प्राप्त होता है। इसलिए लोक में यह सूर्यषष्ठी के नाम से विख्यात है।