तीसरे दिन उमड़ा जनसैलाब
रामदेवरा। रामदेवरा में अपनी पहली कथा को बाबा रामदेव को समर्पित करने वाले राष्ट्रीतय संत मुरारी बापू ने कथा के तीसरे दिन कहा कि रामा पीर सत्य, प्रेम और करूणा के प्रतीक है। राम का अर्थ सत्य है, देव का अर्थ प्रेम है और पीर का अर्थ करूणा होता है। बाबा रामदेव पीर का प्रभाव भी सत्य, प्रेम और करूणा की तरह किसी ना किसी रूप में हमेशा रहेगा।
संत कृपा सनातन संस्थान की ओर से आयोजित रामकथा में देश-विदेश से आये हजारों श्रोताओं पर व्यासपीठ से आशीर्वचन प्रदान करते हुए बापू ने कहा कि जो परम व श्रेष्ठह है और ऊचांइयों को छू गये हैं उन विभूतियों का प्रभाव एवं प्रताप हमारे चारों और हमेशा रहेगा। दुनिया मम और अहम से जुडी हुई है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा था कि कलियुग में विशेषतः नाम का प्रभाव रहेगा।
शब्द भ्रमित कर सकते हैं, सत्य नहीं : धर्म धन पर नही मन पर आधारित होता है। जो मन परम से जुड़ता है उसे पीड़ा झेलनी ही पड़ती है लेकिन यह पीड़ा कई दिनों के कई सुखों से ज्यादा अच्छी होती है। बुद्ध पुरूष मार्ग मुक्त मार्ग बताते है। हम जहां भी चलें, वह मार्ग बन जाये वही मार्गी है। यही रास्ता है परम को पाने का।
साधु प्रभावित ही नहीं प्रकाशित भी करता है : गोस्वामीजी ने कहा कि साधु संगति को पहली भक्ति कहते है। जिसने साध लिया, वो साधु है। साधु प्रभावित नहीं करता है बल्कि वह प्रकाषित करता है और प्रकाशित करने के बाद समाज को विकसित करता है। साधु किसी का दिल नही तोड़ता है, व्रत टूटे तो कोई बात नहीं लेकिन ध्यान रखे कि किसी का दिल ना टूटे। साधुता को पकाना बड़ा कठिन कार्य है। साधु संन्याकसियों को किसी के अभिप्राय पर साधना नहीं करनी चाहिए। आप किसी के अनुकूल रहोगे तो आप उसे अच्छे लगोगे लेकिन जैसे ही आप उसके प्रतिकूल होंगे बुरे लगने लग जाओंगे। मौन मुक्त सत्संग है। कोई संत बोले उसे स्वीकार करना भी सत्संग है। सत्य को स्वीकारना सत्संग है। जो सत्य बोली जाए और उसका संग किया जाए वो सत्संग है। सत्य को कबूल करना सत्संग है। गुरू की सेवा उसकी आज्ञा में रहना सत्संग है। मौन, मुक्त एवं वाद परमात्मा की विभुति है, यही सत्संग है और कथा संवाद है। ममता और अहंकार आदमी को अंधा बना देती है। बुद्ध पुरुष कहते है कि जो वस्तु हमारे सम्बन्ध में नही हो उसके लिए बहरे हो जाओ, उनके लिए चिन्तित होने की हमें आवश्यवकता नहीं है।
इंसान की उम्र 24 घण्टे : इंसान को अपनी उम्र 24 घण्टे ही माननी चाहिए। कोई व्यक्ति यदि यह सोचता है कि वह 24 घण्टे से ज्यादा जीयेगा तो यह उसकी अज्ञानता है और इसमें कुछ पल हरि नाम अवष्य लेना चाहिए। चौबीस घण्टे से ज्यादा उम्र समझना अज्ञान ही नही पाप भी है। व्यक्ति मृत्यु से नहीं अपितु मृत्यु के डर से मर जाता है। मरना मीठा है, अमृत है, सद्गुरू है, परमात्मा है।
बीज मंत्र त्रिभुवन के घर से ही मिलता है : त्रिभुवन गुरू महादेव राम मंत्र का एकमात्र घर है। बीज मंत्र का उपदेश सिर्फ और सिर्फ शिव के पास है। हरि सबकों मौका देते है इसलिए मौका पकडों और सात्विक आनंद करो। सांसारिक बंधन में सब कुछ करने के बाद जब हम सोने जाए और नींद नही आये तो हमें कुछ क्षण हरि का स्मरण एवं भजन अवष्य करना चाहिए। इन चंद क्षणों का स्मरण और भजन हमें ऊर्जा प्रदान करते है। भगवान कृश्ण विभु तथा अर्जुन विभूति है।
भक्ति भाव के चार पड़ाव % प्रेम आदि और अंत है लेकिन इनके बीच चार वस्तुयें आ जाती है। पहली वस्तु परिणिता है। चाह मुक्त चित्त में परिणिता की अवस्था आती है। करीब करीब पूर्णता का अहसास ही परिणिता है। जो भक्ति मार्ग पर चलता है वह करीब करीब पूर्णता की ओर बढ़ता है। बुद्ध पुरुष के चरणों में पूर्णता का अहसास होने लगे तो वह पहला पडाव है। नित्य योग दूसरा पड़ाव है। व्याकुलता तीसरा पड़ाव है। व्याकुलता बाहर से नही हमारे मन के अन्दर से आती है। जब प्रीत प्रगाढ़ होंगी, तभी व्याकुलता आयेगी। साधक की काली के प्रति व्याकुलता उनकी कृपा से ही प्राप्त हो सकती है। परम भक्त व्याकुलता है और वे वियोग को ही पसंद करते है। ऐसे भक्तों को आर्क भक्त कहते है। व्याकुलता की दषा में भारी भीड़ में भी निर्जनता का अहसास होता है और आदमी जितना बड़ा होता है वह एकान्त को उतना ही ज्यादा पसंद करता है। भक्ति मार्ग में चौथा पड़ाव मौन है। मौन की पूर्णता पाने के बाद आदमी एक बच्चे की तरह गूंगा हो जाता है।