हिन्दू अध्यात्म एवं सेवा संगम-2016
गूंजे वेद मंत्र, हुआ कन्या वंदन
उदयपुर।
या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्व लक्ष्मीः, पापात्मना कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः।
श्रद्धा सतां कुलजन प्रभवस्य लज्जा, तां त्वां नताः स्म परिपालय देविविश्वम्॥
जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं श्री लक्ष्मी के रूप में, पापियों के यहां दरिद्रता के रूप में, शुद्ध अंतःकरण वाले व्यक्तियों के हृदय में सदबुद्धि रूप में, सतपुरुषों में श्रद्धा रूप में, कुलीन व्यक्तियों में लज्जा के रूप में निवास करती है। उसी भगवती दुर्गा को हम सभी नमस्कार करते हैं। हे देवी! आप ही विश्व का पालन पोषण कीजिये।
बीएन विश्वविद्यालय के मैदान पर चल रहे हिन्दू अध्यात्म एवं सेवा संगम में शुक्रवार को इस विचार के साथ कन्या वन्दन किया गया। आचार्य भगवतीषंकर व्यास के पौरोहित्य में वेद मंत्रों के पाठन के साथ 457 कन्याओं का वन्दन इतने ही बालकों ने किया। बालकों ने बालिकाओं का दाहिने पैर का अंगूठा धुलवाया, तिलक किया, दाहिने हाथ पर मौली बंधन किया, अर्घ्य समर्पित किया और बालिकाओं ने जल अंजुरी में भरकर आचमन किया। पुष्पह वंदन किया गया और मिश्री का भोग लगाया गया। दीपक प्रज्वलित कर शक्ति स्वरूपा कन्या की हाथ जोड़कर प्रार्थना की गई और मां भगवती, महाकाली, मां सरस्वती के रूप कन्या की आरती की गई।
शहर में अपनी ही तरह के अनूठे आयोजन को देख हर कोई अभिभूत हो उठा। कई तो यह तक बोल उठे कि उन्हें इसका अंदाजा नहीं था, वरना वे भी इस वंदन का हिस्सा बनते। इस मौके पर व्यवस्थाओं में लगीं कॉलेज की छात्राओं ने भी कहा कि यह कार्यक्रम बेटियों का मान बढ़ाने वाला है। मुख्य वक्ता पूज्य योगी रमणनाथ ने कहा कि भारत में ही नारी पर प्रश्नक नहीं है, शेष दुनिया की नारी पर प्रश्नर है। उन्होंने कहा कि भारत में नारी का हर वक्त सम्मान है। हाल ही गए करवाचौथ व्रत के पर्व का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि उस दिन सुहागिन ने व्रत रखा तो पति ने उनके व्रत खुलवाए। यह नारी के प्रति सम्मान ही है। भारत के हर धार्मिक अनुश्ठान में पत्नी की उपस्थिति जरूरी मानी जाती है। यह हमारी संस्कृति हमें युगों-युगों से सिखा रही है। उन्होंने कहा कि किसी का भी वंदन हमें उर्जा प्रदान करता है। तुलसी की परिक्रमा, गाय की परिक्रमा, कन्या की वंदना, चरण स्पर्श आदि संस्कार उर्जा से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि इससे व्यक्ति का औरा मजबूत होता है। सकारात्मकता बढ़ती है और जहां सकारात्मकता का संचार होता है, वहां शांति और सुकून का वास होता है।
कार्यक्रम अध्यक्ष सेंगरा आश्रम रकमपुरा की भुवनेश्वोरी देवी ने कहा कि भारत में नारी का सम्मान हमारी सनातन परम्परा से किया जाता है। यहां पर नारियों को वेद रचने वाली माना गया है, उन्हें ब्रह्वादिनियां कहा गया है, वहीं यूरोप में मध्यकाल तक महिलाएं सिर्फ वस्तु मानी गई हैं। उन्हें काला जादू करने वाली मानकर धार्मिक आदेश से जिन्दा जलाया गया। यहां तक कि पतित चरित्र की कहकर उनके लिए अलग से आश्रम बनाए गए जिन्हें कॉन्वेंट्स का नाम दिया गया।
मुख्य अतिथि राधिका लढ्ढा ने कहा कि गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने बेटी को स्त्रियों में कीर्ति, वाक् स्मृतिमेधा, धृति और क्षमा कहा है। बेटियां हमारे देश में सम्मान का प्रतीक हैं, उन्हें लक्ष्मी का स्वरूप मानकर पूजा की जाती है। विशिष्टि अतिथि बीएन कन्या महाविद्यालय राजसमंद की डॉ. अर्पणा शर्मा, कन्या महाविद्यालय उदयपुर की वाइस प्रिंसिपल डॉ. रेणु राठौड़, पेसिफिक विवि की सा.विभाग अधिष्ठााता प्रो. भावना देथा, हिन्दू अध्यात्म सेवा संगम फाउण्डेशन चेन्नई की सदस्य राजलक्ष्मी, बाबा निरंजननाथ, यशवंत सिंह शक्तावत आदि ने विचार व्यक्त किए। संचालन डॉ. लोकेश जैन, धन्यवाद ज्ञापन रानू सिंघवी ने किया। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी आए और संतों का चरण वंदन किया। राष्ट्रीूय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख गुणवंत सिंह कोठारी ने सभी संतजन का चरण छूकर अभिनंदन किया। कार्यक्रम में 25 स्कूलों की भागीदारी रही।
श्रीफल से ज्यादा पसंद रंगीन पेंसिल : कन्या वंदन की एक खास बात यह रही कि पूजन की थाली में श्रीफल के बजाय रंगीन पेंसिल का बॉक्स रखा गया। नन्हीं बालिकाओं से जब पूछा गया कि पेंसिल अच्छी या श्रीफल, बालिकाओं ने पेंसिल को ज्यादा अच्छा बताया। उन्होंने कहा कि वे इससे सुंदर पेंटिंग बनाएंगी। वाकई उनके जवाब ने यह साबित कर दिया कि संसार को नारी ही संवार सकती है वही उसमें रंग भर सकती है, वहीं संस्कृति की प्रवाहक है।
बेटियां तो बाबुल की रानियां हैं : अरावली टेक्नीकल स्टडीज के छात्र-छात्राओं ने बेटियां तो बाबुल की रानियां हैं.., निशाद संगीत नाट्य प्रषिक्षण केन्द्र की छात्राओं ने नारी के विविध रूपों पर आधारित नृत्य नाटिका की प्रस्तुति से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
दोपहर में नन्हीं प्रतिभाओं से सजा मंच : दूसरा दिन पूरी तरह बच्चों के नाम रहा। सुबह कन्या वंदन हुआ तो दोपहर बच्चों की रंगारंग प्रस्तुतियों से सजी। दोपहर में पुरस्कार वितरण समारोह हुआ। इसमें श्रेश्ठ रहीं प्रस्तुतियों का एक बार पुनः मंचन भी हुआ। देषभक्ति से ओतप्रोत सामूहिक नृत्यों की प्रस्तुतियों के दौरान सभी बच्चे उत्साह से भर गए। रंग दे बसंती चोला गीत पर छोटे तो क्या बड़े भी रुक नहीं पाए और मंच के पास आकर झूमकर नाचे। भारत माता के जयकारों से संगम प्रांगण गूंज उठा। संगम में स्टाल्स पर घूम रहे लोग भी इस माहौल को देखने तेज कदमों से मुख्य समारोह पाण्डाल में चले आए और इस माहौल में शामिल हो गए। कार्यक्रम संयोजक सत्यप्रकाश मूंदड़ा ने परिणामों की जानकारी दी। इनके अतिरिक्त खेल प्रतियोगिताओं के विजेताओं को भी पुरस्कार प्रदान किए गए।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने मन मोहा : जयपुर घराने की युवा नृत्यांगना प्रियंका कंसारा (बीकानेर) द्वारा कत्थक नृत्य, युवा षास्त्रीय गायक पंकज राव (मुम्बई) का षास्त्रीय गायन, सौरभ देहलवी उदयपुर का सितार वादन और स्वाति दवे (जोधपुर) ने भरत नाट्यम की प्रस्तुतियों ने मन मोहा।