जन-जन चेतना के प्रतीक है हनुमान
उदयपुर। अपने को श्रेश्ठ समझने की भावना व्यक्ति को घमंडी, अभिमानी बनाती है। व्यक्ति के विकास को रोक देती है। अहंकार विसर्जन गिरने का कोई काल नहीं होता कभी भी गिर जाता है। कभी अहंकार मत करिये। उक्त विचार आज आलोक संस्थान के व्यास सभागार में हनुमान और जीवन जीने का महामंत्र पर डॉ. प्रदीप कुमावत ने सभी छात्र-छात्राओं को कहें।
उन्होंने हनुमान जी का परिचय देते हुये कहा कि हम ज्यादातर बन्दर समझ जाते है लेकिन वे वानर है। वानर अर्थात वा और नर । जो वन में रहते है वो। संकट कटे मिटे सब पीरा के बारे में डॉ. कुमावत ने कहा कि स्वयं को भरोसा दिलाओ हनुमान चालीसा साथ है यानी संकट से भागो मत। आत्म विष्वास पैदा करो। हमारी अधिकांष समस्याएं हमारे अपने दिमाग की उपज होती है।
उन्होंने श्रृद्धा के बारे में कहा कि श्रृद्वा एक बहुत ही पवित्र और पूज्य भाव है। यह आदर की भावना से भी ऊपर की भावना है। जरूरी नहीं कि हमारे लिये जो आदरणीय है वह श्रद्वेय भी है। जब कोई अपने कार्य और गुणों से हमें इतना अधिक प्रभावित कर दें कि हमारा मन उसे पूजना चाहे तो समझ लेना चाहिये कि हमारे मन में उसके लिए श्रद्धा की भावना पैदा हो गई है।
डॉ. कुमावत ने जीवन की सफलता के बारे में कहा कि बल नहीं ज्ञान और गुण जीवन की सफलता है। उन्होंने कहा कि केवल ज्ञान ही सब कुछ नहीं होता ज्ञान के साथ-साथ गुण भी आवष्यक है। गुण का अर्थ उस चरित्र से है उस प्रवृति से है जिसके आधार पर कोई भी अपने इस ज्ञान का उपयोग करता है।
उन्होंने आस्था को समझाते हुये गाड़ी का उदाहरण देते हुये कहा कि आस्था एक चाबी है जिसे एक बार घुमा देने से इंजन स्टार्ट हो जाता है। उससे गाड़ी के चलने की षुरूआत हो जाती है। फिर एक बार जब गाड़ी सड़क पर निकल ही गई तो देर सवेरे अपनी मंजिल पर पहुँच ही जाती है। सामर्थ्य के ईंधन में आग लगाकर उसे ऊर्जा में बदलने वाली चिंगारी आस्था ही होती है।