तेरापंथ समाज ने मनाया ध्यान दिवस, आज संवत्सरी
उदयपुर। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के तत्वावधान में अणुव्रत चौक स्थित तेरापंथ भवन में पर्युषण महापर्व के तहत शुक्रवार को ध्यान दिवस मनाया गया। शनिवार को संवत्सरी पर्व मनाया जाएगा।
शासन श्री मुनि सुखलाल ने कहा कि भगवान महावीर ने बड़ी तपस्याएं की लेकिन ध्यान भी कम नही किया। समय, काल के अनुसार ध्यान का क्रम चला। आम जनता के साथ ध्यान का तारतम्य नही बना। इस दौरान ध्यान की परंपरा छिन्न भिन्न हो गयी। आचार्य महाप्रज्ञ ने जब नथमल के रूप में आचार्य तुलसी के समक्ष ध्यान की बात रखी तो उन्होंने नथमल जी को इस पर विचार करने को कहा। नथमलजी की दृढ़ संकल्पता, प्रज्ञता ने ध्यान पद्धति को प्रेक्षाध्यान के रूप में सृजित किया। उन्होंने भगवान महावीर के 25 वें भव का वर्णन किया।
मुनि मोहजीत कुमार ने कहा कि प्रेक्षाध्यान का उद्देश्य शरीर की साधना है। ध्यान नियंत्रण सिखाता है। कायोत्सर्ग के माध्यम से हम समस्त जगत को पहचान सकते हैं। आत्मा और शरीर की भिन्नता को कायोत्सर्ग के माध्यम से जाना जा सकता है। ध्यान करना और ध्यान को पचाना दोनो अलग बातें हैं। मस्तिष्क पर नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं ध्यान के माध्यम से। आनंद हमारे भीतर है।
ध्यान को प्रेक्षाध्यान में इस तरह बद्ध किया गया है जो किसी धर्म में नही मिलती। एक घंटा आंख बंद कर बैठना यानी समय व्यर्थ करना नही है। धीरे धीरे इसका वैज्ञानिक अर्थ समझ में आया। इसके अच्छे परिणाम आये। मन के मनोबल को बढ़ाने के लिए ध्यान आवश्यक है। इसके तरीके में थोड़ा फर्क है। ध्यान से चलना, ध्यान से बैठना, बिना ध्यान के कुछ नही लेकिन वो भौतिक ज्ञान है। इसके साथ आध्यात्मिक ज्ञान भी जरूरी है। इस अवसर पर उन्होंने ध्यान के प्रयोग भी करवाये। मुनि भव्य कुमार ने भी विचार व्यक्त किये। बाल मुनि जयेश कुमार ने गीत साधना पथ पर प्रगति कर चेतना अपनी जगाएं… प्रस्तुत कर ध्यान की महत्ता प्रतिपादित की।