देश में प्रति घंटा पैदा हो रहा थेलिसिमिया बालक
सीबीसी जांच से रूकेगा थेलिसिमिया बालक का पैदा होना
उदयपुर। ओर्थाेपेडिक सर्जन डॉ. दीपक बाबेल ने कहा कि थेलिसिमिया वो लाईलाज बीमारी है जो आनुवंाशिकी मिलती है और थेलिसिमिया बालक के जिम्मेदार सिर्फ उसे माता-पिता ही है। देश में प्रति घंटा एक थेलिसिमिया बालक का जन्म हो रहा है। इसे सिर्फ जागरूकता से ही रोका जा सकता है। इसके लिये दम्पत्ति को सीबीसी नामक खून की जांच करानी होती है।
वे आज रोटरी क्लब एलीट द्वारा एक रेस्टोरेंट में आयोजित थेलिसिमिया से बचाव नामक वार्ता में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। ओर्थोपेडिक सर्जन होने के बावजूद थेलिसिमिया रोग के विशेषज्ञ बन चुके डॉ. बाबेल ने बताया कि खून की सीबीसी नामक जंाच कराने से पता चल जाता है कि यदि दम्पत्ति के वह जांच पॉजीटिव आती है तो उन्हें बालक को जन्म नहीं देना चाहिये जबकि दोनों में से एक के पॉजीटिव होने पर बालक थेलिसिमिया से ग्रसित नहीं होगा।
उन्होेंने बताया कि भारत, पाकिस्तान एवं मध्यपूर्वी देशों में थेलिसिमिया से ग्रस्त बच्चें अधिक संख्या में है। भारत में वर्तमान में 30 मिलीयन बालक थेलिसिमिया रोग से ग्रसित है। इस रोग में प्रत्येक 15-20 दिन में रोगी का पूरा खून बदलना होता है। इसका पता बालक के जन्म लेने के 8-9 माह पता चलता है जब उसका हिमोग्लोबिन कम हो जाता है। जैसे-जैसे बालक बढ़ा होता जाता है उसका हिमोग्लोबिन कम होता जाता है लेकिन ऐसी स्थिति में रोगी का हिमोग्लेाबिन का स्तर 9 से कम नहीं होना चाहिये। हिमोग्लेाबिन कम होने से उसके खून में आयरन की मात्रा ओवरलोड़ हो़ जाती है जो उसके लिये जहर का काम करती है। चिकित्सक ऐसी परिस्थिति में भी उसे आयरन की गोलियंा या सीरप लिखते है, जो आश्चर्यजनक है।
डॉ. बाबेल ने बताया कि भारत में इस रोग की दवाओं का निर्माण नहीं होता है इसलिये इस रोग की दवाएं बाहर से आती है जो काफी मंहगी होती है। ऐसे बच्चों को चोकलेट भी नहीं देनी चाहिये। डॉ. बाबेल ने ऐसे बच्चों के घरों में परिवारों का विघटन बढ़ता जा रहा है। दम्पत्तियों के बीच तलाक के मामले बढ़ते जा रहे है। डॉ. बाबेल ने ऐसे बच्चों के संरक्षण के लिये पहल नामक एक संस्था का गठन किया है। इस संस्था में वर्तमान में 140 बच्चों का ईलाज किया जा रहा है।
थेलिसिमिया बच्चों को बराबर खून मिलता रहे इसके लिये रक्तदान शिविरों की संख्या बढ़ानी चाहिये। उन्होेंने बताया कि महाराणा भूपाल सार्वजनिक चिकित्सालय मंे थेलिसिमिया बच्चांे के लिए लगभग सभी सुविधायंे मौजूद है और वहंा पूरा ईलाज किया जा रहा है। रक्तदान करने से एक थेलिसिमिया बालक को एक माह की जिदंगी अधिक मिलती है। थेलिसिमिया बालक जब तक जीेयेगा तब तक दवाओं के सहारंे रहेगा।
उन्होेंने बताया कि सरकार को भी दम्पत्तियों के लिये सीबीसी की जांच अनिवार्य कर देनी चाहिये ताकि देश में थेलिसिमिया बालकों का जन्म ही नहीं हो।
मोदी ने गुजरात में लिया था इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में- प्रधनमंत्री नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब वर्ष 2008 में गुजरात से थेलिसिमिया रोग का उन्मूलन करने के लिये इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लिया था और लगभग 10 वर्ष के अन्तराल में यह प्रतिशत 7 से घटकर 1.6 प्रतिशत तक आ गया है।
प्रारम्भ में क्लब अध्यक्ष कमलेश तलेसरा ने बताया कि क्लब थेलिसिमिया बच्चों के लिये प्रोजेक्ट बनाकर उस पर कार्य करेगा। थेलिसिमिया बच्चों के लिये अधिकाधिक रक्तदान शिविर आयोजित किये जायेंगे। प्रारम्भ में अनिता जैन ने ईश वंदना प्रस्तुत की। सुधीर दुगड़ ने डॉ. बाबेल का सम्मान किया एवं रमेश मोदी ने परिचय दिया। अंत में क्लब सचिव सुनील वस्तावत ने आभार ज्ञापित किया।