50 लाख बच्चों में से एक में होती है इस तरह की बीमारी
उदयपुर। पेसिफिक मेडीकल कॉलेज एवं हॉस्पीटल के यूरोलॉजी विभाग के यूरोलॉजिस्ट एवं रिकन्स्ट्रक्षनल सर्जन डॉ.हनुवन्त सिंह राठौड, ऐनेस्थेटिक डॉ. प्रकाष औदित्य एवं उनकी टीम ने 10 वर्षीय मोहित का सफल ऑपरेषन कर पेषाब का नया रास्ता बनाकार जन्मजात बामारी से छुटकारा दिलाकर भविष्य में होने वाली शर्मिन्दिगी से र्मुिक्त दिलाई।
दरअसल पाली जिले की वाली तहसील के गॉव सनेटा निवासी 10 वर्षीय मोहित को जन्म से ही मूत्रवाहिका नहीं थी। जिसके चलते उसका पेषाब अण्डकोष के नीचे एक छिद्र में होकर निकलता था। परिजनों ने मोहित को कई जगह दिखाया लेकिन अषिक्षा और गरीबी के चलतें विषेषज्ञ चिकित्सक को नहीं दिखाया जिसके चलते इसका लम्बें समय तक इलाज नहीं हो सका।
परिजनो ने पेसिफिक मेडीकल कॉलेज एवं हॉस्पीटल के यूरोलॉजिस्ट एवं रिकन्स्ट्रक्षनल सर्जन डॉ.हनुवन्त सिंह राठौड को दिखया तो पता चला कि मोहित के मूत्र मार्ग ही नहीं है। जिसका कि ऑपरेषन द्वारा ही इलाज सम्भव था। लगभग चार घण्टे तक चले इस सफल ऑपरेषन को अंजाम दिया यूरोलॉजिस्ट एवं रिकन्स्ट्रक्षनल सर्जन डॉ.हनुवन्त सिंह राठौड,ऐनेस्थेटिक डॉ.प्रकाष औदित्य,चन्द्रमोहन शर्मा,अजय चौधरी एवं अनिल भट्ट की टीम नें
डॉ.हनुवन्त सिंह राठौड ने बताया कि इस ऑपरेषन में मरीज का मूत्र का रास्ता नया बनाया है इस रास्तें को वनानें के लिए मरीज के मुॅह के अन्दर की चमडी ली गई। दरअसल मुॅह के अन्दर की चमडी एवं षिष्न के उॅपर की चमडी एक ही होती है। मुॅह के अन्दर की चमडी लेने का फायदा यह है कि वहॉ चमडी स्वतः पुनः निर्माण कर चेहरें एवं मुॅह के भीतरी भाग में कोई विकार नहीं आने देती।
डॉ.राठौड ने बताया कि पेरिनियल हाइपेरिस्पडिया नामक यह बीमारी 50 लाख बच्चों में से किसी एक बच्चें में देखने को मिलती है। इस बीमारी मंें पेषाब का छिद्र षिष्न में न होकर अण्डकोष के नीचे की तरफ होाता है जो कि गर्भावस्था के दौरान मूत्र का रास्ता विकसित नहीं होने के कारण होता है। मोहित अभी पूरी तरह से स्वस्थ्य है।