उदयपुर। नदी की बजरी के खनन की वर्तमान समस्या व इसके सभी विकल्पों पर मंथन व चर्चा करने हेतु माइनिंग इंजीनियर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, राजस्थान चैप्टर, उदयपुर, खान व भू-विज्ञान विभाग, राजथान सरकार तथा खनन अभियांत्रिकी विभाग, सी.टी.ए.ई., उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में 21 अप्रेल से “नदी बजरी (रेती) खनन की समस्याएं एवं विकल्प” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला एवं प्रर्दशनी का आयोजन प्रौद्योगिकी एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय, उदयपुर के सभागार मंे किया जायेगा।
आयोजन की जानकारी देते हुए सीटीएई काॅलेज के अधिष्ठाता डाॅ.एस.एस.राठौड़ ने पत्रकारों को उक्त जानकारी देते हुए बताया कि इस गंभीर विषय पर मंथन करने के लिये राष्ट्रीय कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि पूर्व केन्द्रीय खान सचिव अरुण कुमार एवं बतौर विशिष्ठ अतिथि नीति आयोग के संयुक्त सचिव विक्रम सिंह गौड़ होंगे तथा अध्यक्षता माइनिंग इंजीनियर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरुण कोठारी करेंगें कार्यशाला में बड़ी संख्या में राजस्थान एवं अन्य राज्यों के खान एवं भू-विज्ञान विभाग के अधिकारी, भारत सरकार के खान मंत्रालय, भारतीय खान ब्यूरो, खान सुरक्षा महानिदेशाल के अधिकारी एवं विभिन्न राजकीय संस्थानों के अभियंता, आर्किटेक्ट्स खान व्यवसायी, उधोगपति, बजरी उत्पादक व्यवसायी आदि भाग लेंगे।
माइनिंग इंजीनियर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरुण कोठारी ने बताया कि वर्तमान में नदियों से बजरी खनन पर लगे विभिन्न न्यायालयों के प्रतिबन्ध से राजस्थान ही नहीं पूरे देश में बजरी की उपलब्धता बुरी तरह से प्रभावित हुई है। राजस्थान में तो समस्या अतिगंभीर रूप धारण कर चुकी है, सभी तरह के निर्माण कार्य लगभग बंद पड़े हे तथा निकट भविष्य में इसके समाधान की कोई आशा प्रतीत नहीं होती है, निर्माण कार्य बंद हो जाने से लाखों मजदूर एवं निर्माण कार्य से जुड़े व्यक्ति बेरोजगार हो गए है और यदि यही स्थिति लम्बे समय तक रहती है तो ग्रामीण क्षेत्रों में कानून व्यवस्था भी बुरी तरह से प्रभावित होने से रोका जाना कठिन होगा। अकेले राजस्थान से लगभग 100 मिलियन टन बजरी का उत्पादन प्रतिवर्ष राजस्थान में बहने वाली लगभग 1000 किलो मीटर लम्बी नदियों से होता रहा है।
सभी प्रकार के निर्माण कार्यो बहुमंजिला ईमारत, पुल निर्माण, सड़क निर्माण, बांध-नहरे या तालाब के निर्माण में बजरी का प्रयोग किया जाता है। प्राकृतिक रूप में नदियां पानी के बहाव के साथ बजरी, कंकड़ पत्थर एवं मिटटी अपने साथ बहा कर लाती है और इसी से बजरी का जमाव नदियों में सदियों से अनवरत रूप से होता रहा है।
जहाँ एक तरफ नदियों से बजरी निकालना, प्राकृतिक आपदाओं से बचने, पर्यावरण एवं नदियों के मूल रूप को बनाये रखने के लिए आवश्यक है। वहीं स्थान विशेष से अत्यधिक बजरी दोहन पारिस्थितिकी संतुलन को गंभीर नुकसान का कारण बनती है।
उन्होंने बताया कि असंतुलित तरीके से अत्यधिक बजरी दोहन के कारण ही विभिन्न न्यायालयों द्वारा बजरी खनन पर रोक लगाई जाती रही है। प्रमुख रूप से उच्चतम न्यायालय द्वारा दीपक कुमार बनाम हरियाणा सरकार एवं अन्य में फरवरी 2012 में महत्त्वपूर्ण निर्णय के तहत दिशा निर्देश जारी करते हुए नदियों से बजरी खनन के नए नियम बनाने के आदेश दिए गए थे। उसके पश्चात उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों एवं नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा समय समय पर निर्णय देते हुए बजरी खनन को प्रतिबंधित किया गया है। वर्तमान में राजस्थान में बजरी खनन पर पूर्णतया प्रतिबन्ध है।
विकल्प-खान विभाग के निदेशक डीएस मारू ने बताया कि वर्तमान परिस्थितियों में पारम्परिक रूप से नदियों से उत्पादित होने वाली बजरी का विकल्प कुछ हद तक मैन्युफैक्चरिंग सेंड हो सकती हे तथा दक्षिण के कई राज्यों में उनकी आवश्यकता की 20 से 30 प्रतिशत आपूर्ति मैन्युफैक्चरिंग सेंड से की जा रही है। राजस्थान में मैन्युफैक्चरिंग सेंड की अपार संभावनाएं है। यहाँ पर हिंदुस्तान जिंक, आर एस एम एम, सीमेंट ग्रेड लाइम स्टोन, हिंदुस्तान कोपर, सोप स्टोन, लिग्नाइट, सैंड स्टोन, मार्बल एवं अन्य खनिजो के खनन के दौरान उत्पादित करोडो टन ओवर बर्डन (मलबा) राज्य के विभिन्न स्थानों पर पड़ा हुआ है, जो पर्यावरण के लिए भी चुनौती बना हुआ है। इस मलबे का उपयोग आसानी से मैन्युफैक्चरिंग सेंड के लिए किया जा सकता है आवश्यकता सिर्फ बड़े उद्योगपतियों की एवं सरकार की मानसिकता बदलने की है।
एम-सेंड अर्थात उत्पादित बजरी (मैन्युफैक्चरिंग सेंड) निर्माण कार्यो के विकल्प पर कितनी खरी है, इस पर भी विवेचन होगा। कई राज्यों में बिल्डिंग डिमोलिशन मटेरियल को भी पुनः कार्य में लेने के कानून बनाये गए है, उन पर भी विचार होगा।
इस राष्ट्रीय कार्यशाला मे पढ़े गए सभी तकनीकी पत्रों का समावेश प्रकाशित समारिका में किया जावेगा स करीब 400 प्रतिभागी देश के विभन्न भागो से भाग लेगें स यह राष्ट्रीय कार्यशाला नदी की बजरी की समस्याओ से झुझते हुए देश के लिए उसके विकल्प एवं नदी बजरी के खनन कि वास्तिवक समस्याओ से रूबरू होने का एक बहुत अच्छा अवसर होगा और बजरी की उपलब्धता सुनिश्चित करने में एक मील का पत्थर साबित होगा। कार्यशाला से निकले निष्कर्ष भारत सरकार एवं राज्य सरकार को नीतियों में संशोधन हेतु भिजवाये जायेंगे। कार्यशाला में पढ़े गए सभी तकनीकी पत्रों का समावेश प्रकाशित समारिका में किया जाएगा। करीब 400 प्रतिभागी देश के विभन्न भागों से भाग लेंगे। यह राष्ट्रीय कार्यशाला नदी की बजरी की समस्याओ से जूझते हुए देश के लिए उसके विकल्प एवं नदी बजरी के खनन की वास्तिवक समस्याओं से रूबरू होने का एक बहुत अच्छा अवसर होगा और बजरी की उपलब्धता सुनिश्चित करने में एक मील का पत्थर साबित होगा। कार्यशाला से निकले निष्कर्ष भारत सरकार एवं राज्य सरकार को नीतियों में संशोधन हेतु भिजवाये जाएंगे। पत्रकार वार्ता को हिन्दुस्तान जिंक के सीओओ शेखावत व कुमावत आदि ने भी संबोधित किया।