उदयपुर। अन्तर्मना मुनि प्रसन्न सागर महाराज ने कहा कि आज व्यक्ति पुण्य करना नहीं चाहता लेकिन पुण्य का फल भोगने चाहता है। मन की सरलता, चित्त की निर्मलता और हृदय की पवित्रता का नाम ही धर्म है।
वे गुरुवार को सर्वऋतु विलास जैन मंदिर में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि इसके विपरीत व्यक्ति पाप कर्म करना नहीं छोड़ता और पाप कर्म का फल भोगना नही चाहता। जब पाप कर्म को पुण्य कर्म सपोर्ट करे तब पाप कार्य भी पुण्य के समान दिखते हैं। आज शराब की दुकान पर भीड़ लगी रहती है और दूध वाला घर घर फेरी लगाता है। कई पापी जीव फल फूल रहे हैं वहीं पुण्यात्मा कष्ट पा रही है। यह सब पूर्व अर्जित पुण्य-पाप का खेल है। हमें प्रयास करने चाहिए कि हम पुण्य संचय का कार्य करें। उन्होंने कहा कि सरल बनने की इच्छा करना पुण्य है। अच्छा दिखने की इच्छा करना पाप है।