उदयपुर। दिगम्बर जैन संत अन्तर्मना प्रसन्न सागर ने कहा कि संसार में भव्य और अभव्य जीव की परिभाषा यही है कि भव्य जीव को अंत समय में परमात्मा की याद आती है जबकि अभव्य जीव अंत समय में अपने परिवार, संपत्ति और शरीर के बारे में सोचता है।
वे बुधवार सुबह सेक्टर 11 स्थित महावीर नगर में मंगल प्रवेश के बाद आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रत्येक मनुष्य को अपने कान यानी सुनने की शक्ति को संभाल कर रखना चाहिए जिससे चित्त अंतिम समय तक प्रभु भक्ति और धर्म चर्चा में लगा सके। सुनने की क्षमता रखनी चाहिए ताकि णमोकार महामंत्र सुनकर परमात्मा तक पहुंच सके। पहले लोग 23 घंटे भक्ति में लगे रहते थे जबकि अब 23 घंटे पाप के आस्रव में लगे रहते हैं और उनके पास एक घंटा भी प्रभु भक्ति के लिए नही है। वह पुण्य के समय में कटौती कर पाप में लगाता है। यही कारण है कि वह धार्मिक कार्य करते हुए भी परेशान और दुखी है। संचित पुण्य खर्च हो रहा है और नया पुण्य अर्जित नही हो रहा है। संत को सुनने आये लोग शरीर से यहां हैं लेकिन मन से अपने सांसारिक प्रयोजनों में लगे हैं।
यहां बैठे प्रत्येक व्यक्ति लिए हुए नियमों में 16 प्रकार के दोष लगाते ही हैं अतः एक प्रकार से सभी पापी हैं। इन दोषों के प्रक्षालन के लिए अल्प प्रवास में 30 अप्रेल से 3 मई तक वृहद चारित्र शुद्धि विधान पूजन होगा जिसमें सभी को भाग लेना चाहिए।
आदिनाथ दिगम्बर जैन चेरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष अशोक शाह ने बताया कि इससे पूर्व मुनिश्री गोवर्धनविलास स्थित प्रगति आश्रम से हिरणगमरी से.11 स्थित महावीर नगर में बैण्ड बाजों, हाथी,घोड़ो एवं सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं के साथ शोभायात्रा के रूप में पंहुचे। महिलायें केसरिया साड़ी में सिर पर कलश लिये जबकि पुरूष धवल वस्त्र पहने साथ चल रहे थे।